डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल का शांति पुरस्कार नहीं मिलने पर व्हाइट हाउस भड़क गया। इसने आरोप लगा दिया है कि 'नोबेल समिति ने यह साबित कर दिया कि वे शांति से ज़्यादा राजनीति को तरजीह देते हैं'। नॉर्वेजियन नोबेल समिति द्वारा वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना मचाडो को 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार देने की घोषणा के कुछ घंटों बाद ही व्हाइट हाउस ने इस फ़ैसले पर कड़ा ऐतराज़ जताया है। 

पुरस्कार की घोषणा ओस्लो के नोबेल इंस्टीट्यूट में लाइव प्रसारण के माध्यम से की गई, जहां समिति ने साफ़ किया कि 2025 के लिए 338 उम्मीदवारों में से मचाडो का चयन उनकी वेनेजुएला में तानाशाही विरोधी शांतिपूर्ण लड़ाई के लिए किया गया। नोबेल समिति के चेयरमैन जॉर्गेन वाट्न ने घोषणा के दौरान मचाडो को लोकतंत्र की लौ बताते हुए कहा कि पुरस्कार उन व्यक्तियों को दिया जाता है जो भाईचारे और शांतिपूर्ण संघर्ष को बढ़ावा देते हैं। 
यह ट्रंप की लंबे समय से चली आ रही पुरस्कार की चाहत को झटका है, जिन्होंने मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में कई युद्धों को ख़त्म करने का श्रेय खुद को दिया था। ट्रंप ने खुद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, 'मैंने आठ युद्ध रोके हैं, जो पहले कभी नहीं हुआ। लेकिन वे जो करेंगे, ठीक है। मैंने पुरस्कार के लिए नहीं किया, बल्कि जानें बचाने के लिए किया।'

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को पुरस्कार नहीं देने को व्हाइट हाउस के कम्युनिकेशंस डायरेक्टर स्टीवन चेउंग ने राजनीतिक पूर्वाग्रह बताया है। उन्होंने एक पोस्ट में कहा, 'राष्ट्रपति ट्रंप शांति समझौते करते रहेंगे, युद्ध समाप्त करते रहेंगे और जानें बचाते रहेंगे। उनका दिल एक मानवतावादी है और उनके जैसा कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छाशक्ति के बल पर असंभव को संभव नहीं कर सकता।'

ट्रंप के दावे क्या

ट्रंप प्रशासन ने 2025 में कई कूटनीतिक सफलताओं का दावा किया है, जिन्हें नोबेल के लिए आधार बनाया गया। ट्रंप की मध्यस्थता से 10 अक्टूबर को ही ग़ज़ा में इसराइल-हमास युद्धविराम पर समझौता लागू हुआ है। इसराइल-हमास युद्ध 2023 से चला आ रहा था। इसराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ट्रंप को नामित किया। ईरान-इसराइल तनाव कम किया गया। जुलाई 2025 में ट्रंप की फोन डिप्लोमेसी से मिसाइल हमलों को रोका गया।

ट्रंप भारत-पाकिस्तान युद्धविराम की वाहवाही लेते रहे, जबकि भारत ने उनके दावे को खारिज किया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और फील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने ट्रंप की सराहना की। इसके अलावा ट्रंप थाईलैंड-कंबोडिया सीमा विवाद, रूस-यूक्रेन में संभावित मध्यस्थता को लेकर भी दावे करते रहे हैं।

मचाडो को नोबेल: लोकतंत्र की जीत या राजनीति?

मारिया कोरिना मचाडो वेनेजुएला की 'आयरन लेडी' के नाम से जानी जाती हैं। उनको पुरस्कार वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो के तानाशाही शासन के खिलाफ शांतिपूर्ण संघर्ष के लिए मिला। 2024 चुनावों में विपक्ष की उम्मीदवार के रूप में अयोग्य घोषित होने के बावजूद, उन्होंने लाखों को एकजुट किया। समिति ने कहा, 'मचाडो ने लोकतंत्र को हथियार बनाया, जो शांति का आधार है।' मचाडो ने बधाई स्वीकारते हुए कहा, 'यह वेनेजुएला के लोगों की जीत है, जो स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे हैं।'

ट्रंप समर्थक नेताओं ने इसे समिति का पूर्वाग्रह कहा, लेकिन जानकारों का मानना है कि माचाडो का चयन अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत के अनुरूप है।

लंबे समय से है ट्रंप की यह चाहत

ट्रंप की नोबेल चाहत 2018 से चली आ रही है, जब उन्हें कोरियाई प्रायद्वीप प्रयासों के लिए नामित किया गया। लेकिन उनको तब भी यह सम्मान नहीं मिल पाया था। 2024 अभियान में उन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध को एक दिन में सुलझाने का वादा किया। लेकिन 2025 के लिए नामांकन जनवरी के अंत में बंद हो चुके थे, जब ट्रंप का दूसरा कार्यकाल शुरू ही हुआ था। नोबेल समिति के फैसले को गोपनीय रखा जाता है, लेकिन जानकारों का कहना है कि ट्रंप की विवादास्पद छवि बाधा बनी हो सकती है। बहरहाल, विश्लेषकों का अनुमान है कि 2026 नोबेल में ट्रंप की दौड़ मजबूत हो सकती है, यदि उनके प्रयास बने रहें।