ईरान ने बुधवार को वैश्विक कूटनीति में तब तूफ़ान ला दिया जब इसकी संसद ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु निगरानी संगठन यानी आईएईए के साथ सहयोग निलंबित करने का विधेयक पास कर लिया। ईरान का फ़ैसला तब आया है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह तबाह हो चुका है।
ट्रंप ने एक दिन पहले ही दावा किया था कि ईरान अब कभी भी परमाणु कार्यक्रम नहीं कर पाएगा। इसी बीच, ईरान की संसद ने बुधवार को आईएईए के साथ सहयोग निलंबित करने वाला विधेयक भारी बहुमत से पारित कर दिया। ईरान की इस्लामिक परामर्श सभा यानी संसद के 223 सांसदों में से 221 ने पक्ष में वोट किया। इसमें कोई विरोधी वोट नहीं पड़ा और केवल एक सांसद ने मतदान से दूरी बनाई। इस विधेयक के तहत ईरान अब आईएईए के साथ निरीक्षण, निगरानी और रिपोर्टिंग गतिविधियों में सहयोग बंद कर देगा। ये गतिविधियाँ परमाणु अप्रसार संधि यानी एनपीटी के तहत अनिवार्य हैं। ईरान की सरकारी समाचार एजेंसी नूरन्यूज़ के अनुसार, यह कदम तब तक लागू रहेगा जब तक ईरान की परमाणु फ़ैसिलिटी की सुरक्षा की गारंटी नहीं दी जाती।
ईरान के परमाणु ऊर्जा संगठन को निर्देश दिया गया है कि वह निगरानी कैमरे लगाने और आईएईए को डेटा देने जैसे क़दमों को तुरंत रोक दे। इसके साथ ही ईरान ने घोषणा की है कि वह अपने नागरिक परमाणु कार्यक्रम को तेजी से आगे बढ़ाएगा। कुछ सांसदों ने यह भी संकेत दिया है कि ईरान एनपीटी से पूरी तरह बाहर निकलने पर विचार कर सकता है, जो वैश्विक परमाणु निगरानी के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है।
यह निर्णय हाल के घटनाक्रमों का नतीजा है, जिसमें ईरान और इसराइल के बीच लगभग दो सप्ताह तक चले हवाई और मिसाइल हमले शामिल हैं। इन हमलों में ईरान की परमाणु फ़ैसिलिटीज को निशाना बनाया गया था। अमेरिका ने इन हमलों के बाद युद्धविराम की घोषणा की थी, लेकिन ईरानी नेताओं ने आईएईए पर अमेरिकी हमलों की निंदा न करने का आरोप लगाया।
तो सवाल है कि ईरान ने आईएईए के साथ परमाणु सहयोग को निलंबित क्यों किया? ईरान का कहना है कि आईएईए ने पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया और वह उसकी परमाणु फ़ैसिलिटी पर हमले की निंदा करने में विफल रहा।
ईरानी सांसदों ने 12 जून को एक नई भूमिगत संवर्धन फ़ैसिलिटी में उन्नत आईआर-6 सेंट्रीफ्यूज लगाने की योजना की घोषणा की थी, जिसे आईएईए को बताया नहीं गया। आईएईए के महानिदेशक राफेल ग्रॉसी ने ईरान की परमाणु फ़ैसिलिटीज पर हमलों के बाद आपातकालीन बैठक बुलाई थी। बैठक के बाद उन्होंने कहा था कि परमाणु फ़ैसिलिटी को नुक़सान पहुँचा है, लेकिन यह भी कहा था कि नुक़सान का अभी आकलन नहीं किया जा सकता है।
ट्रंप का दावा और उस पर विवाद
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि अमेरिका द्वारा 30,000 पाउंड के बमों का उपयोग करके ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह तबाह कर दिया गया है। उन्होंने इसे सभी के लिए ऐतिहासिक जीत क़रार दिया। हालाँकि, अमेरिकी खुफ़िया एजेंसियों की एक हालिया रिपोर्ट ने ट्रंप के दावे को खारिज किया है और कहा गया है कि उतना ज़्यादा नुक़सान नहीं हुआ है। इसने कहा है कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम अभी भी सक्रिय है, हालाँकि कुछ फ़ैसिलिटीज़ को नुक़सान पहुँचा है।
ईरान के इस फ़ैसले के बाद क्या फिर हमला होगा?
आईएईए के साथ सहयोग निलंबित करने के ईरानी संसद के इस फ़ैसले पर तीखी प्रतिक्रिया हुई। इसराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि यदि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को फिर से शुरू करता है तो इसराइल दोबारा हमला करेगा। उन्होंने ट्रंप के दावों का समर्थन करते हुए इसे ऐतिहासिक जीत बताया।
डोनाल्ड ट्रंप ने भी कुछ ऐसी ही बात कही है। पत्रकारों ने सवाल किया कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम शुरू करने पर क्या अमेरिका फिर से हमला करेगा तो ट्रंप ने कहा कि 'बिल्कुल'। इधर, अमेरिकी अधिकारियों ने आईएईए के साथ सहयोग निलंबित करने के ईरान के फ़ैसले की निंदा की है। उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन फाइनर ने इसे खतरनाक कदम करार दिया।
इस पर चीन और रूस ने अभी तक आधिकारिक तौर पर प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन माना जा रहा है कि वे ईरान के इस कदम का समर्थन कर सकते हैं, क्योंकि दोनों पहले भी आईएईए के खिलाफ ईरान का पक्ष ले चुके हैं।
एनपीटी के लिए बड़ा झटका?
ईरान का यह क़दम वैश्विक परमाणु अप्रसार यानी एनपीटी व्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है। आईएईए के साथ सहयोग बंद करने से ईरान की परमाणु गतिविधियों की निगरानी में पारदर्शिता कम हो जाएगी, जिससे यह अनुमान लगाना मुश्किल हो जाएगा कि ईरान कितनी तेजी से परमाणु हथियार विकसित कर सकता है। कुछ जानकारों का मानना है कि यह कदम ईरान की ओर से एक रणनीतिक जवाब है, जिसका उद्देश्य पश्चिमी देशों पर दबाव बनाना और अपनी मोलभाव की स्थिति को मजबूत करना है।