इमरान खान और नवाज शरीफ
पाकिस्तान का चुनाव एक मजाक बन गया है। पूरी दुनिया में राजनीतिक विश्लेषक वोट की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि इमरान खान के बिना चुनाव कैसा। इमरान संभवतः जिन्ना के बाद देश के सबसे लोकप्रिय राजनेता हैं, जिनके सहयोगियों पर व्यापक कार्रवाई के कारण अधिकारियों पर "चुनाव पूर्व धांधली" के आरोप लग रहे हैं। सेना और पाकिस्तान की कार्यवाहक सरकार दोनों ने खान या उनकी पार्टी पीटीआई को दबाने से इनकार किया है।
इमरान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी (पीटीआई) ने मतदान में उनकी अनुपस्थिति के बावजूद चुनाव लड़ने की कसम खाई है। हालांकि उसके पास पार्टी का अधिकृत चुनाव निशान नहीं है। खान, जिन्होंने 1992 में पाकिस्तान को क्रिकेट विश्व कप का गौरव दिलाया और चार साल बाद राजनीति में प्रवेश किया, भ्रष्टाचार विरोधी लहर पर सत्ता तक पहुंचे। उनकी पार्टी ने 2018 में चुनाव जीता, जो कई विश्लेषकों का कहना है कि तब वहां की सेना का उसे समर्थन था। पाकिस्तान में सेना एक ताकत है जो 1947 में पाकिस्तान बनने के बाद प्रत्यक्ष शासन के जरिए या पर्दे के पीछे से राजनीति पर हावी रही है।
पीटीआई को मतपत्रों पर अपने प्रसिद्ध क्रिकेट बैट प्रतीक का उपयोग करने से प्रतिबंधित कर दिया गया है, जिससे उन लाखों अशिक्षित लोगों को झटका लगा है जो इसका उपयोग वोट डालने के लिए कर सकते हैं। टेलीविजन चैनलों पर इमरान खान के भाषणों को चलाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इस्लामाबाद में चुनाव को लेकर उदासीनता का माहौल साफ दिख रहा है। दर्जनों निवासियों ने सीएनएन से कहा कि इन हालात के लिए पाकिस्तान की सेना जिम्मेदार है, जिसने खान की पार्टी पर एकतरफा कार्रवाई की है। 22 वर्षीय छात्र राजा इकराम ने सीएनएन से कहा, "हम खान को चाहते हैं क्योंकि वह ऐसा व्यक्ति है जो हमारा प्रतिनिधित्व कर सकता है और दुनिया भर में खुलकर बात कर सकता है।" उन्होंने कहा कि उनकी पीढ़ी के लिए एकमात्र मुद्दा इमरान खान की जेल से रिहाई है। उन्होंने कहा, ''हम बिकाऊ प्रधानमंत्री नहीं चाहते।'' यह इशारा नवाज शरीफ की तरफ था।