सऊदी अरब ने कफाला प्रणाली को समाप्त कर दिया है। यह श्रमिकों के लिए स्पान्सर मॉडल था। जिसने लाखों विदेशी श्रमिकों के जीवन और अधिकारों को नियंत्रित कर रखा था। सऊदी शासन में प्रवासी कल्याण और श्रम अधिकारों को बेहतर बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। इस सुधार से लगभग 1.3 करोड़ प्रवासी श्रमिकों, जिनमें अधिकांश दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया से हैं, को लाभ होने की उम्मीद है।

क्या है कफाला 

कफाला शब्द, जो अरबी में "प्रायोजन" (स्पान्सर) के लिए है, खाड़ी देशों में जीवन-शैली का प्रतीक बन गया था। जिसमें शेखों यानी कफील (भर्ती करने वाला Employer) का अपने कर्मचारियों पर लगभग पूर्ण नियंत्रण था। जो यह तय करते थे कि कर्मचारी नौकरी बदल सकते हैं या नहीं, देश छोड़ सकते हैं या नहीं,  कानूनी सहायता ले सकते हैं या नहीं। इससे भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों के मजदूर वहां के शेखों के पास बंध कर रह जाते थे। बिना कफील से अनुमति लिए वो भारत या पाकिस्तान में अपने घर भी नहीं आ सकता था।
1950 के दशक में शुरू की गई कफाला प्रणाली को मूल रूप से तेल-समृद्ध गल्फ अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिए सस्ते विदेशी श्रम के प्रवाह को प्रबंधित करने के लिए डिज़ाइन किया गया था। इस प्रणाली के अनुसार, हर प्रवासी श्रमिक एक स्थानीय स्पान्सर, जिसे कफील के रूप में जाना जाता है, से जुड़ा होता था, जो उनकी निवास, रोजगार और कानूनी स्थिति पर अधिकार रखता था।
ताज़ा ख़बरें
हालांकि, यह ढांचा व्यापक दुरुपयोग का स्रोत बन गया। शेख श्रमिकों के पासपोर्ट जब्त कर सकते थे, वेतन में देरी या इनकार कर सकते थे, और उनकी आवाजाही को प्रतिबंधित कर सकते थे। कफील की अनुमति के बिना, श्रमिक नौकरी नहीं बदल सकते थे, घर नहीं लौट सकते थे, या दुर्व्यवहार के मामले में अधिकारियों से संपर्क नहीं कर सकते थे।
मानवाधिकार समूहों ने अक्सर कफाला प्रणाली की तुलना "आधुनिक गुलामी" से की, जिसमें कहा गया कि यह श्रमिकों से उनकी मूलभूत स्वतंत्रता छीन लेती थी और उन्हें शोषण के प्रति असुरक्षित बना देती थी।

अंतरराष्ट्रीय सुधार की मांग 

कफाला प्रणाली को मानवाधिकार संगठनों, अंतरराष्ट्रीय श्रम निकायों और विदेशी सरकारों से बढ़ती आलोचना का सामना करना पड़ा। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और कई गैर-सरकारी संगठनों ने खाड़ी देशों पर प्रायोजन के नाम पर जबरन श्रम और मानव तस्करी को बढ़ावा देने का आरोप लगाया।
लगभग 1.34 करोड़ प्रवासी श्रमिकों के साथ, जो इसकी आबादी का लगभग 42 प्रतिशत हैं, सऊदी अरब घरेलू काम, निर्माण, कृषि और अन्य क्षेत्रों के लिए विदेशी श्रम पर निर्भर रहा है। इनमें से कई श्रमिक भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और फिलीपींस से आए थे।
सबसे ज्यादा प्रभावित घरेलू श्रमिक, विशेष रूप से महिलाएं थीं, जो अक्सर एकांत में रहती थीं और उनके पास सीमित कानूनी सुरक्षा थी। वैश्विक मानवाधिकार समूहों की रिपोर्टों में अत्यधिक काम, गैर-भुगतान और दुर्व्यवहार के मामले दर्ज किए गए।
सऊदी अरब का इस प्रणाली को खत्म करने का निर्णय वर्षों की अंतरराष्ट्रीय जांच और सुधार की मांगों के बाद आया है। यह अन्य खाड़ी देशों, जैसे कतर, के समान कदमों का अनुसरण करता है, जिसने 2022 FIFA विश्व कप की मेजबानी से ठीक पहले अपने श्रम कानूनों में बदलाव किया था।

इसका प्रवासी श्रमिकों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? 

कफाला प्रणाली का अंत क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के विजन 2030 योजना का हिस्सा है। एक महत्वाकांक्षी प्रयास जिसका उद्देश्य सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था को विविधता देना, तेल पर निर्भरता कम करना और दुनिया को एक आधुनिक, प्रगतिशील छवि प्रस्तुत करना है।
नए ढांचे के तहत, सऊदी अरब एक अनुबंध-आधारित रोजगार प्रणाली की ओर बढ़ेगा, जिसे श्रमिकों को अधिक स्वतंत्रता और उनके जीवन पर नियंत्रण देने के लिए डिज़ाइन किया गया है। प्रवासी कर्मचारी अब अपने वर्तमान शेख या कफील की मंजूरी के बिना नौकरी बदल सकेंगे।
दुनिया से और खबरें
वे बिना निकास वीजा या अपने कफील की सहमति के देश छोड़ने के लिए भी स्वतंत्र होंगे, जिससे उन प्रतिबंधों का अंत होगा जो कई लोगों को अपमानजनक या शोषणकारी परिस्थितियों में फंसाए रखते थे। इसके अलावा, श्रम न्यायालयों और शिकायत तंत्र तक पहुंच का विस्तार किया गया है, जिससे श्रमिकों को उल्लंघनों की रिपोर्ट करने और अधिक सुरक्षित रूप से न्याय प्राप्त करने की अनुमति मिलेगी।