loader

तालिबान-अमेरिका वार्ता रद्द होने से भारत को राहत, पाक को झटका!

अमेरिका की ओर से तालिबान के साथ शांति वार्ता रद्द किये जाने के बाद यह सवाल खड़ा हो रहा है कि भारत पर इसका क्या असर होगा। ट्रंप के फ़ैसले के बाद तालिबान ने उसे इसके नतीजे भुगतने की चेतावनी दी है। ट्रंप ने शांति वार्ता को रद्द करने का एलान ऐसे समय में किया है जब पाकिस्तान, चीन और अफ़ग़ानिस्तान इस्लामाबाद में भविष्य के बारे में बातचीत करने के लिए इकट्ठा हुए हैं। 

ट्रंप के इस फ़ैसले को पाकिस्तान के लिए झटका क्यों माना जा रहा है, पहले इसे समझने की कोशिश करते हैं। पिछले कुछ समय से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता को लेकर बयान दे रहे थे बावजूद इसके कि भारत ने उन्हें साफ़ कर दिया था कि यह दोनों देशों के बीच का मसला है और इसमें तीसरे पक्ष की मध्यस्थता क़तई स्वीकार नहीं है। इसका जो कारण समझ में आता है वह यह कि इसमें अमेरिका और पाकिस्तान, दोनों बहुत चतुराई से ‘खेल’ खेल रहे थे। 

ताज़ा ख़बरें

पाकिस्तान को इससे झटका लगना इसलिए तय माना जा रहा है क्योंकि तालिबान के साथ शांति वार्ता में अमेरिका पाकिस्तान की मदद लेता रहा है और इसके बदले में पाकिस्तान अमेरिका से आर्थिक मदद लेने की कोशिश में था।

पाकिस्तान पर यह आरोप लगता है कि वह अफ़ग़ानिस्तान में भारत के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए तालिबान को समर्थन देता रहा है।
पाकिस्तान का जोर इस पर था कि बातचीत के लिए तालिबान को शामिल किया जाना बेहद ज़रूरी है और वह ख़ुद को इस रूप में दिखा रहा था कि वह अफ़ग़ानिस्तान में शांति प्रक्रिया में हिस्सेदार है लेकिन ट्रंप के इस एलान के बाद वॉशिंगटन में उसे अब तक मिल रही अहमियत भी ख़त्म हो जाएगी। इससे कश्मीर के मुद्दे पर जिस समर्थन की उम्मीद वह अमेरिका से कर रहा था, वह भी अब उसे नहीं मिलेगा। 
दुनिया से और ख़बरें

लेकिन अब जब ट्रंप के एलान के बाद तालिबान और अमेरिका के एक बार फिर आमने-सामने आने और अफ़ग़ानिस्तान में संघर्ष तेज़ होने की उम्मीद है, ऐसे में भारत पर इसका क्या असर पड़ेगा, अब इस पर बात करते हैं। 

भारत को उम्मीद है कि ट्रंप के इस फ़ैसले के बाद क्षेत्र में शांति स्थापित और स्थायित्व आएगा। भारत, अफ़ग़ान सरकार और लगभग सभी मध्य एशियाई गणराज्यों का यह मानना रहा है कि तालिबान के साथ बातचीत सही नहीं है। लेकिन दूसरी ओर रूस का यह मानना था कि तालिबान के साथ शांति वार्ता सफल होने के बाद ही अफ़ग़ानिस्तान में शांति आएगी। पिछले 19 सालों में किसी भी भारतीय सरकार ने तालिबान से कोई बातचीत नहीं की।

भारत का यह मानना था कि पाकिस्तान, तालिबान और अमेरिका के बीच चल रही बातचीत के कारण इस क्षेत्र में अशांति पैदा हो सकती है और स्थायित्व में कमी आ सकती है।

अंग्रेजी अख़बार ‘द इकनॉमिक टाइम्स’ के मुताबिक़, शांति वार्ता सफल होने के बाद अगर अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान से निकलता तो दो बातें हो सकती थीं। पहली यह कि अफ़ग़ानिस्तान में एक बार फिर से गृह युद्ध होने का ख़तरा था और दूसरी यह कि पाकिस्तान जिहादियों को भारत में भेजने की कोशिश करता विशेषकर कश्मीर में। भारत को यह भी डर था कि अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत संघ के बाद वाली स्थिति फिर से बन सकती है और यह आगे जाकर कश्मीर में भी फैल सकती है। 

संबंधित ख़बरें

अफ़ग़ानिस्तान का सहयोगी है भारत

भारत पड़ोसी देशों में अफ़ग़ानिस्तान का सबसे बड़ा आर्थिक सहयोगी है। अफ़ग़ानिस्तान को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच यह होड़ रही है कि और यह कहा जाता है कि दोनों ही देश वहाँ अपनी पसंद की सरकार चाहते हैं। इसलिए ही भारत ने अफ़ग़ानिस्तान के कई स्कूलों, अस्पतालों में पैसा लगाया है और इसके अलावा भी कई विकास कार्य कराये हैं। 

याद दिला दें कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के बाद जब पाकिस्तान सरकार ने कश्मीर को अफ़ग़ानिस्तान से जोड़ने की कोशिश की थी तो तालिबान ने इस पर उसे कड़ी फटकार लगाई थी।

अमेरिका में अगले साल राष्ट्रपति चुनाव होने हैं और ट्रंप चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। ट्रंप प्रशासन अफ़ग़ानिस्तान से अपनी फ़ौज़ें वापस बुलाने के लिए तालिबान से वार्ता में इसलिए भी जुटा था क्योंकि वह इसका चुनाव में लाभ ले सके। शांति वार्ता रद्द होने से पहले यह माना जा रहा था कि अगले डेढ़ साल में अमेरिकी सैनिक पूरी तरह से अफ़ग़ानिस्तान से चले जाएंगे और बदले में तालिबान ने आश्वासन दिया था कि वह आईएस और अल-कायदा जैसे संगठनों से कोई संबंध नहीं रखेगा। तालिबान और अमेरिका के बीच 8 दौर की बातचीत पूरी हो चुकी थी और अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाने ही वाला था लेकिन काबुल में हुए हमले जिसमें एक अमेरिकी सैनिक और 11 अन्य लोगों की मौत हो गयी थी, इसके बाद ट्रंप ने शांति वार्ता को रद्द करने का फ़ैसला कर दिया। 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

दुनिया से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें