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जनरल सुलेमानी की हत्या के बाद क्या ईरान करेगा अमेरिकी ठिकानों पर हमला?

ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के सबसे प्रमुख अंग कुद्स फ़ोर्स के मुखिया मेजर जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद ईरान में शोक का माहौल तो है ही, उससे ज़्यादा गुस्सा है। ईरानी सरकार पर दबाव बढ़ रहा है कि वह जल्द से जल्द इसका बदला ले। डोनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही ईरान-अमेरिका तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है।
ट्रंप ने पहले परमाणु संधि को एकतरफ़ा ख़त्म कर दिया और उसके बाद तेहरान पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए, जिससे ईरानी अर्थव्यवस्था बदहाल है। ऐसे में अपने देश में बेहद लोकप्रिय जनरल की हत्या से लोगों में इतना गुस्सा है कि सरकार चाहे भी तो चुप नहीं रह सकती।

ईरान की ताक़त

अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की भाषा में जिसे असाइमेट्रिकल वारफेअर कहते हैं, उसके तहत अपने से बहुत बड़े देश पर यकायक ज़ोरदार ग़ैर पारंपरिक तरीके से हमला किया जाता है। ईरान इसमें सक्षम है।
इसके अलावा सीरिया, लेबनान और इराक़ में उसके लड़ाके जगह-जगह मौजूद हैं। उसके लोग ही नहीं, ड्रोन और मिसाइल तक उसके पास है, जिससे वह बहुत कम समय के नोटिस पर हमला कर सकता है।
लेबनान में नसरल्ला की अगुआई वाले हिज़बुल्ला शिया मिलिशिया है तो यमन में हूती विद्रोही उसके साथ हैं। इराक़ में शिया समुदाय में उसकी अच्छी पकड़ है। वह इन जगहों में कहीं से अमेरिकी ठिकानों पर हमला कर सकता है।

अमेरिकी सैनिकों की वापसी?

इकोनॉमिक टाइम्स की ख़बर के मुताबिक़, वाशिंगटन स्थित थिंकटैंक मिडल ईस्ट इंस्टीच्यूट के अलेक्स वतांका ने पत्रकारों से कहा, ‘इराक़ में मौजूद अमेरिकी सैनिकों को वापस भेजने का ज़बरदस्त दबाव बनेगा। इन सैनिकों को हटाना अमेरिका के लिए बड़ा रणनीतिक नुक़सान होगा।’

यदि ईरान ने तय कर लिया तो अगली युद्ध भूमि इराक़ होगी, जहाँ अभी भी अमेरिकी सैनिक मौजूद हैं। बग़दाद पर दबाव बढ़ सकता है कि वह अपने यहाँ से अंतिम अमेरिकी सैनिक को विदा करे। इससे इराक़ी सरकार अस्थिर होगी, जो अमेरिका नहीं चाहेगा। इसे देखते हुए ही इराक़ सरकार ने सुलेमानी की हत्या की निंदा कर दी थी। इराक के कार्यवाहक प्रधानमंत्री अब्देल मेहदी ने कहा कि अमेरिकी हमला एक ‘आक्रमण’ है जिससे विनाशकारी युद्ध भड़क सकता है। इन हमलों में एक इराकी कमांडर की भी मौत हुई है।

मिसाइल हमला?

ईरान खाड़ी में खड़े अमेरिकी जहाज़ पर मिसाइल हमला कर सकता है, सऊदी अरब के तेल ठिकानों पर ड्रोन हमला कर सकता है। न्यूयॉर्क स्थित थिंकटैंक सूफ़ान सेंटर ने कहा है कि ईरान जो भी कार्रवाई करेगा, उससे पूरे इलाक़े में तनाव बढ़ेगा।

साइबर हमला?

इसके अलावा ईरान अमेरिकी हितों पर साइबर हमला कर सकता है। बीते कुछ सालों में ईरान ने अपनी सेना में अलग साइबर सेल बना कर उसे मजबूत किया है।
ईरान अमेरिकी साइटों को हैक करने से लेकर किसी तरह की विध्वंसक कार्रवाई करने में सक्षम है। इससे सामरिक, औद्योगिक और सामाजिक क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं।
फ्रांस के सूचना प्रौद्योगिकी समूह क्लूसिफ़ के लोइक ग्वेज़ो ने पत्रकारों से कहा है, ‘इसकी पूरी आशंका है कि इस तरह के साइबर हमलों का असर समाज पर पड़ेगा, बिजलीघर बंद हो सकते हैं, गैस हमला हो सकता है, परिवहन व्यवस्था चौपट हो सकती है, विस्फोट हो सकता है।’ 

हमला कब?

सबसे बड़ी बात यह है कि क्या तेहरान ऐसा कुछ करेगा, यदि हां तो कब करेगा? कासिम सुलेमानी मामूली जनरल नहीं थे, वह मेजर जनरल रैंक के डेकोरेटेड कमान्डर थे, ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामनेई के बेहद क़रीब थे, कुशल प्रशासक थे, उनके नेतृत्व में ही सीरिया में ईरान ने राष्ट्रपति बशर अल असद के समर्थन में अभियान चलाया था। 

खामनेई ने सुलेमानी को शहीद करार देते हुए ट्विटर पर कहा, ‘यह शहादत उन्हें इन तमाम वर्षों के दौरान किये गए उनके अथक प्रयासों के ईनाम के तौर पर मिली है।’ उन्होंने तीन दिन के शोक की भी घोषणा की। 

ईरानी सरकार की मजबूरी है हमला?

सुलेमानी की हत्या पर ईरान इसलिए भी चुप नहीं रह सकता कि उसने पूरे देश को अमेरिका के ख़िलाफ़ जिस तरह लामबंद कर रखा है, चुप्पी साधने पर आम लोगों में गुस्सा बढ़ेगा। लोग सरकार से ही नाराज़ होंगे। 
अमेरिका विरोध पूरे ईरान को एक सूत्र में बाँधे रहता है, एक तरह का राष्ट्रवाद खड़ा करता है। यह अमेरिका विरोध कम से कम 40 साल पुराना है। यह ईरानी सत्ता प्रतिष्ठान के मुफ़ीद तो है ही, उससे वापस लौटने के ख़तरे भी हैं।

ट्रंप को फ़ायदा?

अमेरिकी ठिकानों पर हमला राष्ट्रपति ट्रंप को भी फ़ायदा पहुँचाएगा। इस साल के नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव हैं और ट्रंप इसके उम्मीदवार निश्चित तौर पर होंगे। वह ईरान का भूत खड़ा कर अमेरिकी समाज के बड़े हिस्से को अपने साथ जोड़ पाएंगे। यह छद्म राष्ट्रवाद का नैरेटिव तो तैयार करता ही है, प्रशासन की नाकामियों और व्यक्तिगत तौर पर ट्रंप के अति आक्रामक कार्यशैली को भी छुपाता है। वह चाहें जितना विरोध करें, चोट सहलाने में ही उन्हें लाभ है। 

ईरान ने तीन दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित कर रखा है। वह ख़त्म होते-होते कही हमले की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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