Xi Jinping- राष्ट्रपति शी जिनपिंग का गायब होना क्या चीन में सत्ता परिवर्तन का संकेत है। पश्चिमी मीडिया ने इस खबर को जोरशोर से चला रखा है। इससे पहले भी जिनपिंग के गायब होने की खबरें आ चुकी हैं लेकिन हर बार गलत साबित होती हैं।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सार्वजनिक अनुपस्थिति ने पश्चिमी मीडिया में सनसनीखेज अटकलों को जन्म दे दिया है। पश्चिमी मीडिया से चलकर ये खबर अब भारतीय मीडिया में भी सुर्खियां बना रही है। CNN-News18 और इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि शी की अनुपस्थिति चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) और केंद्रीय सैन्य आयोग (CMC) में सत्ता परिवर्तन का संकेत हो सकती है। सत्ता परिवर्तन में पूर्व राष्ट्रपति हु जिंताओ और उनके समर्थक, जैसे जनरल झांग युशिया प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। हालांकि, ऐसी खबरें पश्चिमी मीडिया में बार-बार उछलती रही हैं। लेकिन हर बार गलत साबित हो जाती हैं।
2022 में भी शी की थोड़े दिनों के लिए अनुपस्थिति को तख्तापलट की अफवाहों से जोड़ा गया था, जिसे बाद में चीन ने कोविड-19 क्वारंटीन नियमों से जोड़कर खारिज कर दिया था। चीन में शी जिनपिंग की सत्ता को CCP और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) का मजबूत समर्थन प्राप्त है। उनकी विचारधारा ‘शी जिनपिंग थॉट’ को पार्टी संविधान में शामिल किया गया है, जो उनकी मजबूत स्थिति को बताने के लिए काफी है। इस संबंध में जब तक चीन सरकार या पार्टी का बयान न आ जाए, ऐसी खबर को सही नहीं माना जा सकता।
खबरों के मुताबिक शी की अनुपस्थिति के दौरान PLA में उच्चस्तरीय उथल-पुथल, जैसे कि जनरल ही वेइडॉन्ग और एडमिरल मियाओ हुआ की बर्खास्तगी, ने सत्ता संघर्ष की संभावना को बल दिया है। दूसरी तरफ ये भी कहा जा रहा है कि ये कदम शी की अपनी रणनीति का हिस्सा हों, क्योंकि उन्होंने पहले भी भ्रष्टाचार विरोधी अभियानों के जरिए अपने विरोधियों को हटाया है। पश्चिमी मीडिया की प्रवृत्ति चीन को अस्थिर दिखाने की रही है, और ऐसी खबरें अक्सर बिना पुष्टि के सनसनीखेज बनाई जाती हैं।
2022 का वह पल जो अब नया अर्थ ले रहा है
2022 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) की 20वीं पार्टी कांग्रेस में एक घटना ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा था। हु जिंताओ को कैमरों के सामने मंच से बाहर ले जाया गया। उस समय चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने दावा किया कि हु की तबीयत खराब थी। हालांकि, बीबीसी के पत्रकार स्टीफन मैकडोनेल ने नोट किया कि "79 वर्षीय हु जाने के लिए अनिच्छुक दिख रहे थे।" हु ने शी जिनपिंग के नोट्स की ओर हाथ बढ़ाया, जिसे शी ने तुरंत रोक दिया। उस समय इसे शी की सत्ता की मजबूती के रूप में देखा गया, लेकिन अब इसे एक बड़े सियासी खेल की शुरुआत के तौर पर देखा जा रहा है।
किस कारण से हैं अटकलें
सूत्रों के मुताबिक, फिलहाल चीनी सेना की केंद्रीय सैन्य आयोग (CMC) के प्रथम उपाध्यक्ष जनरल झांग यौशिया के हाथों में असली शक्ति केंद्रित है, जिन्हें पूर्व राष्ट्रपति हू जिंताओ के गुट का समर्थन प्राप्त है। खुफिया रिपोर्टों में यह भी खुलासा हुआ है कि शी जिनपिंग की विचारधारा ‘शी जिनपिंग थॉट’ का प्रचार अब सरकारी मीडिया में न के बराबर हो गया है, और पार्टी के पुराने वरिष्ठ चेहरे एक बार फिर उभर रहे हैं।
हु जिंताओ और उनके समर्थकों का यह कथित गठजोड़ कितना प्रभावी होगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है। लेकिन यह साफ है कि चीन की सियासत में बदलाव की हलचल शुरू हो चुकी है। अगर वांग यांग को अगले नेता के रूप में स्थापित किया जाता है, तो यह चीन की नीतियों, खासकर आर्थिक और विदेश नीति में बड़े बदलाव का संकेत हो सकता है।
शी के प्रभाव में इस कथित गिरावट के बीच, वांग यांग को पार्टी के भीतर एक तकनीकी एवं सुधारवादी नेता के रूप में तैयार किया जा रहा है। पार्टी नेतृत्व परिवर्तन की पारंपरिक शैली के अनुरूप, शी को सीधे पदच्युत करने के बजाय धीरे-धीरे निर्णय क्षमता से दूर किया जा रहा है।
भारत के लिए सतर्कता क्यों जरूरी
शी से जुड़े सेना अधिकारियों को हटाने या दरकिनार करने की घटनाएं इस ‘साइडलाइनिंग’ की पुष्टि करती हैं। विशेष रूप से PLA की वेस्टर्न थिएटर कमांड, जो भारत से लगी सीमाओं की निगरानी करता है, में 2024 के अंत से अब तक कई बार नेतृत्व बदला जा चुका है। भारत को हर बार नए नेतृत्व से बात करना पड़ती है। ऐसे में पिछला नेतृत्व जो फैसला लेता है, उसे वर्तमान नेतृत्व बदल देता है।
शीर्ष खुफिया सूत्रों का मानना है कि LAC पर चीन आक्रामक गतिविधियों को अंजाम दे सकता है। विशेषकर अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख क्षेत्रों में खतरा बना हुआ है। चीन की सेना के ओर से ऐसा इसलिए हो सकता है, ताकि सेना के नए कमांडर अपनी निष्ठा साबित कर सकें या आंतरिक संकट से ध्यान भटका सकें।
इतिहास भी यही बताता है कि 2012 में बो शिलाई संकट के समय दक्षिण चीन सागर में आक्रामकता, 2020 में कोविड महामारी के दौरान लद्दाख में झड़पें और 2014 के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के दौरान सैन्य हलचल, सब इसी रणनीति का हिस्सा रहे हैं।
बहरहाल, चीन की आंतरिक आर्थिक स्थिति भी डांवाडोल है। युवा बेरोजगारी दर 15 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है, रियल एस्टेट क्षेत्र ठहराव में है और सेमीकंडक्टर उद्योग को दिए गए निवेश नाकाम रहे हैं। भारत के लिए यह एक दोहरी चुनौती है: एक तरफ चीन के अंदरूनी संकट का बाहरी असर, और दूसरी तरफ सीमा और डिजिटल मोर्चे पर बढ़ती आक्रामकता। इसलिए हालात पर नज़र रखना अब और ज़रूरी हो गया है।