राहुल गांधी जहां अपनी कन्याकुमारी से कश्मीर तक 3570 किलोमीटर लंबी पदयात्रा के जरिए कांग्रेस को उसकी खोई जमीन और जन मानस में अपनी स्वीकार्यता बनाने की कवायद में जुट गए हैं तो नीतीश कुमार अलग अलग सुर वाले विपक्षी दलों और उनके नेताओं को एक मंच पर लाकर 2024 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के सामने कड़ी चुनौती पेश करने के सियासी पथ पर हैं।
राहुल को जहां जन मानस में अपनी स्वीकार्यता बनानी है तो वहीं नीतीश कुमार को विपक्षी दलों के बीच सर्व स्वीकार्य होना है।
भारत जोड़ो यात्रा से पहले राहुल गांधी और नीतीश कुमार की दिल्ली में मुलाकात भी हुई और सूत्रों का यह भी कहना है कि दोनों की यह मुलाकात बेहद सौहार्दपूर्ण और कई मुद्दों पर सहमति वाली रही है।कहा तो यहां तक जा रहा है कि राहुल ने नीतीश से कहा है कि वह कांग्रेस को मजबूत करने में जुटे हैं और नीतीश विपक्षी खेमें को गोलबंद करने मे जो भी प्रयास कर रहे हैं उनका उसे पूरा समर्थन है।
राहुल गांधी यानी कांग्रेस की हरी झंडी मिलने से उत्साहित नीतीश कुमार ने विपक्षी खेमें के दिग्गजों के.चंद्रशेखर राव, शरद पवार, अरविंद केजरीवाल, सीताराम येचुरी, अखिलेश यादव, ओम प्रकाश चौटाला और शरद यादव से भेंट करके अपने विपक्ष पथ पर पहला पड़ाव लगभग पूरा कर लिया है।हालांकि उन्हें अभी एम.के.स्टालिन नवीन पटनायक उद्धव ठाकरे और ममता बनर्जी से भी मिलना है।
नीतीश के दाहिने हाथ माने जाने वाले जद(यू) के प्रधान महासचिव के.सी.त्यागी कहते हैं कि नीतीश कुमार की जो साख और वरिष्ठता है उसका सम्मान सारे राजनीतिक दल करते हैं और अगर नीतीश जी कोई पहल कर रहे हैं तो निश्चित रूप से उसे सभी विपक्षी नेताओं ने बेहद गंभीरता से लिया है और उनकी सभी नेताओं के साथ बेहद सौहार्दपूर्ण मुलाकात सकारात्मक बातचीत हुई है जिसके जल्दी ही उत्साहवर्धक नतीजे देखने को मिलेंगे। खुद नीतीश कुमार ने बार बार कहा है कि उनका एजेंडा प्रधानमंत्री बनना नहीं बल्कि भाजपा के खिलाफ सभी गैर भाजपा दलों को एकजुट करना है जिससे 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा और मोदी को केंद्र से हटाया जा सके।
इसमें कोई शक नहीं है कि पाला बदल कर नीतीश कुमार ने निराश विपक्ष में जान डाल दी है। नीतीश भले ही प्रधानमंत्री पद की अपनी दावेदारी या उम्मीदवारी से इनकार करें लेकिन तमाम विपक्षी दल और गैर भाजपा ताकतें नरेंद्र मोदी के मुकाबले उन्हें ही विपक्ष के चेहरे के रूप में देखती हैं।
![2024 Lok sabha election and narendra Modi - Satya Hindi 2024 Lok sabha election and narendra Modi - Satya Hindi](https://satya-hindi.sgp1.cdn.digitaloceanspaces.com/app/uploads/10-09-22/631c35bc2552b.jpg)
नीतीश की दूसरी चुनौती है कि वह ममता और वाम दलों, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी और टीआरएस,जगन रेड्डी और कांग्रेस जैसे धुर विरोधियों और प्रतिद्वंदियों को एक साथ लाना। इस लिहाज से नीतीश कुमार को 1989 के चौधरी देवीलाल और विश्वनाथ प्रताप सिंह दोनों की भूमिका निभानी है। जैसे देवीलाल ने तब विपक्ष के तमाम दिग्गजों चंद्रशेखर, बीजू पटनायक, एनटी रामराव, रामकृष्ण हेगड़े, अजित सिंह, जार्ज फर्नांडीस, एम.करुणानिधि और वाम दलों राजीव गांधी सरकार के खिलाफ एकजुट किया और विश्वनाथ प्रताप सिंह के नाम पर उन्हें राजी किया उसी तरह नीतीश कुमार को सारे भाजपा विरोधी दलों को एक मोर्चे में लाने की जिम्मेदारी निभानी है, साथ ही जैसे विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पूरे देश में घूम घूम कर जनमत अपने पक्ष में करके सभी विपक्षी दिग्गजों को अपने समर्थन के लिए मजबूर कर दिया था, नीतीश कुमार को जन मानस में भी अपनी वही स्वीकार्यता बनाने की चुनौती भी है।
अगर नीतीश इन दोनों भूमिकाओं में कामयाब हो गए तो निश्चित रूप से वह भाजपा विरोधी खेमे का चेहरा बनकर न सिर्फ उभर सकते हैं बल्कि 2024 के लोकसभा चुनावों में मोदी और भाजपा के लिए एक चुनौती पेश कर सकते हैं।इसके लिए नीतीश कुमार को अपने साथ एक ऐसी टीम रखनी होगी जिसके सदस्यों के संबंध और संपर्क सभी गैर भाजपा दलों में हों और जो मीडिया और शहरी मध्यवर्ग के बीच नीतीश कुमार की सकारात्मक छवि बना सकें।
![2024 Lok sabha election and narendra Modi - Satya Hindi 2024 Lok sabha election and narendra Modi - Satya Hindi](https://satya-hindi.sgp1.cdn.digitaloceanspaces.com/app/uploads/09-09-22/631ac060aebcd.jpg)
उधर, राहुल गांधी देश की अब तक की सबसे लंबी पदयात्रा पर निकल चुके हैं। सात सितंबर को कन्याकुमारी से चलकर वह पांच महीनों बाद कश्मीर में अपनी पद यात्रा पूरी करेंगे। एक तरफ जब कांग्रेस पार्टी के कई दिग्गज नेता पार्टी छोड़ चुके हैं और ज्यादातर ने कांग्रेस की दुर्दशा और अपने पार्टी छोड़ने के लिए राहुल गांधी को ही जिम्मेदार ठहराया है।
उधर, कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया भी शुरु हो चुकी है और 19 अक्टूबर को नए अध्यक्ष का नाम घोषित होगा। लेकिन राहुल इससे बेपरवाह अपने सबसे बड़े राजनीतिक मिशन में जुट गए हैं। वह पार्टी से नहीं जनता से सीधे जुड़ना चाहते हैं। वह नेताओं का घेरा तोड़कर सीधे आम कार्यकर्ता तक पहुंचना चाहते हैं।विपक्षी गोलबंदी का काम उन्होंने नीतीश कुमार के जिम्मे छोड़ दिया है और खुद सांप्रदायिक नफरत की राजनीति, बेरोजगारी, महंगाई, सीमा पर चीनी अतिक्रमण, आतंकवाद, अर्थव्यवस्था और किसानों की बदहाली के मुद्दों परमोदी सरकार, भाजपा और आरएसएस के खिलाफ लोगों को एकजुट करने के अभियान पर निकल पड़े हैं।
राहुल के करीबी एक कांग्रेस नेता के मुताबिक राहुल गांधी और नीतीश कुमार में सहमति बनी है कि राहुल जी जनता को एकजुट करेंगे और नीतीश जी विपक्षी दलों को एक साथ लाएंगे। दोनों की भूमिकाएं अलग अलग हैं लेकिन मिलाकर नतीजा विपक्ष के पक्ष में होगा।
![2024 Lok sabha election and narendra Modi - Satya Hindi 2024 Lok sabha election and narendra Modi - Satya Hindi](https://satya-hindi.sgp1.cdn.digitaloceanspaces.com/app/uploads/10-09-22/631bf0cda7abd.jpg)
दूसरा राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट को जोड़ने वाले मार्ग जिसे अंग्रेजी राज में किंग्सवे कहा जाता था और आजादी के बाद राजपथ का नाम दिया गया, उसका नया नामकरण कर्तव्य पथ कर दिया। इन दो कामों से मोदी ने 2024 के लिए अपना सियासी एजेंडा तय कर दिया जब उन्होंने कहा कि यह देश से गुलामी की निशानियों को मिटाने की शुरुआत है। यानी अगले लोकसभा चुनावों में भाजपा विपक्ष को अपने प्रखर राष्ट्रवाद के मुद्दे से घेरेगी।
अब लगातार यह सवाल भाजपा की तरफ से उछाला जाएगा कि आजादी के 75 सालों तक आजाद हिंद फौज की स्थापना करके अंग्रेजी राज के खिलाफ सशस्त्र क्रांति का बिगुल बजाने वाले महानायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा अब तक कांग्रेस सरकारों ने क्यों नहीं स्थापित की। यह अलग बात है कि इन 75 सालों के कालखंड में दस साल से ज्यादा गैर कांग्रेसी सरकारें भी केंद्र में रहीं जिनमें अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा गठबंधन की सरकार भी शामिल है। लेकिन इस सवाल पर कांग्रेस और उसके साथ जुड़ने वाले दलों को ही घेरा जाएगा।
दूसरा राजपथ का नाम कर्तव्य पथ करके जनमानस में यह धारणा भी मजबूत करने का प्रयास भाजपा करेगी कि सिर्फ वही अकेला ऐसा दल है जो सही मायनों में स्वदेशी प्रतीकों और राष्ट्रवाद का प्रतिनिधित्व करता है। इसके साथ ही आईएनएस विक्रांत राष्ट्र को समर्पति करते हुए नौसेना के पुराने प्रतीक चिन्ह को बदलकर जो नया चिन्ह बनाया गया है, उसमें छत्रपति शिवाजी की नौसेना का उल्लेख भी भाजपा और मोदी के राष्ट्रवादी एजेंडे का ही एक विस्तार है। इनका उल्लेख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया गेट के समारोह में अपने भाषण में जिस भाव से किया वह भी आने वाले दिनों में बनने वाले नए राजनीतिक वैचारिक विमर्श का आगाज है।
मोदी के इस कर्तव्य पथ का जवाब राहुल के जन पथ और नीतीश के विपक्ष पथ की मिली जुली ताकत कितना और कैसे दे पाएगी यह विपक्ष के सामने एक बड़ी चुनौती है। अब देखना है कि 2024 लोकसभा चुनावों जिसकी बिसात बिछ चुकी है, में जनता राहुल गांधी के जन पथ और नीतीश कुमार के विपक्ष पथ तो चुनेगी या नरेंद्र मोदी के कर्तव्य पथ पर पहले की तरह चलती रहेगी।
(साभार - अमर उजाला)
अपनी राय बतायें