गृह मंत्री अमित शाह का ये कहना कि "हमारी ज़िंदगी में वो दिन आएगा जब अंग्रेज़ी बोलने वाले शर्मिंदा महसूस करेंगे..." सिर्फ़ महात्मा गांधी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर और मौलाना आज़ाद जैसे स्वतंत्रता संग्राम के महान नेताओं की विरासत का अपमान नहीं है, बल्कि संविधान का भी खुला उल्लंघन है, जिसमें भारतीय भाषाओं और अंग्रेज़ी — दोनों के प्रयोग की स्पष्ट व्यवस्था दी गई है। यह टिप्पणी उन्होंने संविधान के 75वें वर्ष पर की, जिससे इस मौक़े की गरिमा को ठेस पहुँची।
शाह की यह बात, जो नफ़रत फैलाने वाले बयान की सरहद को छूती है, भारत के उस विचार को कमज़ोर करती है जो भाषाई विविधता और सांस्कृतिक बहुलता में निहित है। उन्होंने कहा कि हमारे देश की भाषाएं हमारी संस्कृति के गहने हैं और इनके बिना हम "भारतीय" नहीं कहला सकते। उन्होंने यह भी कहा कि हमारे देश, उसकी संस्कृति, इतिहास और धर्म को विदेशी भाषाओं में नहीं समझा जा सकता। यह बयान इस सच्चाई को नज़रअंदाज़ करता है कि अंग्रेज़ी जैसी विदेशी भाषाओं ने भारतीय संस्कृति की गहराई को दुनिया तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

गांधी और अंग्रेज़ी में गीता 

महात्मा गांधी ने भगवद गीता मूल संस्कृत में नहीं पढ़ी थी। पहली बार उन्होंने इसे लंदन में ‘The Song Celestial’ नाम की अंग्रेज़ी अनुवाद में पढ़ा, जिसे एडविन अर्नोल्ड ने लिखा था। इस अनुवाद का गांधी पर इतना गहरा आध्यात्मिक प्रभाव पड़ा कि यह उनके जीवन और विचारों को पूरी तरह बदलने वाला अनुभव बन गया — वही विचार जो आगे जाकर स्वतंत्रता संग्राम की नींव बने। सिर्फ़ इसलिए कि वह गीता अंग्रेज़ी में थी, उसका महत्व कम नहीं हो गया।
गांधी ने भारतीय भाषाओं की वकालत की, पर साथ ही वे अंग्रेज़ी में भी उत्कृष्टता से लिखते और बोलते थे। 26 जनवरी 1921 को ‘यंग इंडिया’ में उन्होंने लिखा:

"मैं चाहता हूं कि हमारे नौजवान लड़के-लड़कियां, जिनमें साहित्यिक रुचि है, वे अंग्रेज़ी या अन्य विदेशी भाषाएं जितनी चाहें, सीखें, और फिर उस ज्ञान का लाभ भारत और दुनिया को दें, जैसे बोस, रे या ठाकुर ने किया। लेकिन मैं नहीं चाहता कि कोई भी भारतीय अपनी मातृभाषा को भूले, नज़रअंदाज़ करे या उससे शर्मिंदा हो।"

गांधी का यह नज़रिया संकीर्ण राष्ट्रवाद या भाषायी श्रेष्ठता पर नहीं, बल्कि एक समावेशी और वैश्विक सोच पर आधारित था।

ठाकुर और अंग्रेज़ी  

रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कभी औपचारिक रूप से अंग्रेज़ी नहीं पढ़ी थी, लेकिन उन्होंने अंग्रेज़ी में निबंध उतनी ही उत्कृष्टता से लिखे जितनी बांग्ला में कविताएं, नाटक और अन्य रचनाएं। साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित पुस्तक English Writings of Tagore उनकी अंग्रेज़ी लेखनी की गहराई और सौंदर्य को दर्शाती है। आज भी उन्हें बांग्ला साहित्य के लिए याद किया जाता है, लेकिन उनकी रचनाएं देश-विदेश में कई भाषाओं में पढ़ी और सराही जाती हैं।

मौलाना आज़ाद और अंग्रेज़ी 

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने भी कभी अंग्रेज़ी की औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी, फिर भी उन्होंने इस भाषा के महत्व को पूरी तरह समझा। उन्होंने लिखा: "चाहे अंग्रेज़ी भाषा हमारे जीवन में जैसे भी आई हो, यह तथ्य है कि इसने पिछले डेढ़ सौ वर्षों से हमारे मानसिक और शैक्षिक दृष्टिकोण को प्रभावित किया है।"

उन्होंने माना कि अंग्रेज़ी से कुछ नुक़सान हुए, लेकिन उसके लाभ भी गिनाए: "अंग्रेज़ी ने देश को एकजुट करने में बड़ी भूमिका निभाई। यह वह काम कर गई जो कभी मुग़ल दौर में फ़ारसी ने किया था।"
साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अंग्रेज़ी हमेशा प्रमुख भाषा नहीं रह सकती और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान मिलना चाहिए – लेकिन “सोच-समझ कर”।

संविधान का उल्लंघन 

अमित शाह की टिप्पणी इस "सोच-समझ" से कोसों दूर है और सीधे संविधान के खिलाफ़ है। अनुच्छेद 120 के अनुसार सांसद हिंदी, अंग्रेज़ी या अपनी मातृभाषा में बोल सकते हैं। राज्यों की विधानसभाओं में भी अंग्रेज़ी में बोलने की अनुमति है।
अनुच्छेद 348 कहता है कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में अंग्रेज़ी का प्रयोग किया जा सकता है, और सभी विधेयकों और अधिनियमों के आधिकारिक दस्तावेज़ अंग्रेज़ी में होंगे। यहां तक कि संविधान संशोधनों के अनुवाद की भी व्यवस्था है – जो मूल रूप से अंग्रेज़ी में लिखे जाते हैं।
2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान, जब विपक्ष ने संविधान को बचाने की बात की, तब शाह ने धर्मनिरपेक्षता की बात की और कहा कि यह शब्द संविधान की प्रस्तावना से नहीं हटेगा। अब जब उन्होंने अंग्रेज़ी की आलोचना की है, तो क्या वे संविधान से अंग्रेज़ी के हर ज़िक्र को हटाने का साहस दिखाएंगे?

भारत की असली ताक़त: विविधता 

शाह को “एक राष्ट्र, एक संस्कृति” की पुरानी सोच से आगे बढ़ना चाहिए। भारत की असली पहचान उसकी विविधता में है — और इसमें भाषाई विविधता भी शामिल है। भारतीय भाषाएं, अंग्रेज़ी और अन्य विदेशी भाषाएं — सभी ने मिलकर भारत की सभ्यतागत विरासत को समृद्ध किया है।
(एस. एन. साहू भारत के राष्ट्रपति के. आर. नारायणन के विशेष कार्य अधिकारी रहे हैं। द वायर से साभार)