गौतम और गांधी के देश भारत को देखकर दुनिया आजकल हैरान है। शांति और अहिंसा के पुजारियों का यह देश आजकल नफ़रत और हिंसा के लिए सुर्खियाँ बटोर रहा है। हाल ही में देहरादून में अनूसूचित जनजाति से आने वाले त्रिपुरा के एक छात्र की इसलिए हत्या हो गयी कि उसका चेहरा मोहरा अलग था। एंजेल चकमा नाम का यह छात्र सीमा सुरक्षा के लिए तैनात एक सैनिक का बेटा था। भारत के इस घोषित अमृतकाल में जिस तरह नफ़रत और हिंसा का तांडव हो रहा है, उसने भारत की सूरत बदल कर रख दी है। हैरानी की बात ये है कि यह सब ‘राष्ट्रवाद' के नाम पर हो रहा है और यह राष्ट्र की एकता पर भारी पड़ सकता है।

इस समय अगरतला से देहरादून तक हर संजीदा इंसान ग़ुस्से में है। लोग कैंडल मार्च निकाल रहे हैं एंजेल चकमा नाम, एक नौजवान को श्रद्धांजलि देने के लिए, लेकिन हर ज़ुबान पर एक ही सवाल है कि आख़िर उसकी जान क्यों ली गयी…। क्या हिंदुस्तान सिर्फ़ उनका है जिनके नाक-नक्श उत्तर भारतीयों की तरह हैं?
एंजेल चकमा, 24 साल का एक होनहार एमबीए छात्र, त्रिपुरा के उनाकोटी जिले का रहने वाला था। वह चकमा समुदाय से था, जो आदिवासी है। एंजेल देहरादून की जिज्ञासा यूनिवर्सिटी में फाइनल इयर में पढ़ रहा था। 9 दिसंबर की शाम, वो अपने छोटे भाई माइकल के साथ सेलाकुई इलाके में किराने की दुकान पर गया था। वहां कुछ नशेड़ी युवकों ने उन्हें देखकर नस्लीय गालियां दीं – "चिंकी, चाइनीज, मोमो"! एंजेल ने विरोध किया, कहा – "हम इंडियन हैं, हम चाइनीज नहीं!" बस इतनी सी बात पर उन गुंडों ने हमला कर दिया। एक ने कड़े से सिर पर मारा, दूसरे ने चाकू से गर्दन और पेट में घोंपा। एंजेल की रीढ़ की हड्डी टूट गई, दिमाग और स्पाइन में गंभीर चोटें आईं। शरीर का दाहिना हिस्सा सुन्न हो गया। 17 दिन आईसीयू में जिंदगी-मौत से लड़ा, लेकिन बच नहीं सका। 26 दिसंबर को उसने दम तोड़ दिया। हमले की बाबत ये सारी जानकारी माइकल के ज़रिए सामने आयी है।

हैरानी की बात है कि पुलिस और प्रशासन सत्रह दिनों तक बेरूखी दिखाते रहे। मामला तब चर्चा में आया जब एंजेल की मौत हो गयी। समझा जा सकता है कि उस पिता पर क्या गुज़री होगी जो सरहद पर देश की सुरक्षा के लिए तैनात है और उसके नौजवान बेटे को चीनी बताकर मार डाला गया।

एंजेल के पिता सीमा सुरक्षा बल में

एंजेल के पिता हैं तरुण प्रसाद चकमा। तरुण प्रसाद चकमा बीएसएफ़ की फिप्टी बटालियन में हेड कान्स्टेबल हैं। बीएसएफ़ यानी बार्डर सिक्योरिटी फ़ोर्स..यानी सीमा सुरक्षा बल। देश की सीमा की सुरक्षा के लिए सीने पर गोली खाने को मुस्तैद रहने वाले तरुण प्रसाद के बेटे को तरुणाई में जान गँवानी पड़ी क्योंकि उसकी शक्ल कुछ लोगों के लिए अलग सी थी। तरुण प्रसाद को देवभूमि उत्तराखंड के निज़ाम से भी दो-चार होना पड़ा। क़ानून कहता है कि घटनाओं की एफआईआर दर्ज करना पुलिस की ज़िम्मेदारी है, लेकिन तरुण प्रसाद का आरोप है कि पुलिस ने FIR दर्ज करने से इनकार कर दिया, कहा "छोटी बात है"। तीन दिन लगे FIR दर्ज करने में, और वो भी हत्या की धाराएं नहीं जोड़ी गईं। SC/ST एक्ट का भी इस्तेमाल नहीं किया।

उत्तराखंड को ध्रुवीकरण की आग में झोंक चुकी बीजेपी के नेता और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को न पुलिस की लापरवाही दिखी और न सत्रह दिनों तक अस्पताल में जीवन-मौत के बीच जूझ रहे एंजेल चकमा की कराहें ही उनके कान तक पहुँचीं। अब जब ये मुद्दा राष्ट्रव्यापी हो गया है तो सोमवार 29 दिसंबर को उन्होंने एंजेल के पिता से बात की। दुख जताया। बताया कि पाँच आरोपित गिरफ्तार कर लिये गये हैं जबकि एक नेपाल फ़रार हो गया है। उसे भी पकड़ने की कोशिश हो रही है।

मुख्यमंत्री धामी पर उठते सवाल

पर इसमें संवेदना कितनी थी, इसका अंदाज़ा इससे लगता है कि इस बातचीत की तस्वीरें मीडिया को जारी की गयीं। धामी जी हाथ में फ़ोन लिए बात कर रहे हैं। ये तस्वीर दिखाने का क्या मतलब है। उन सवालों का जवाब कौन देगा जिसके लिए सीधे मुख्यमंत्री धामी ज़िम्मेदार हैं-
  • आख़िर पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने में आनाकानी क्यों की? यह घटना पुलिस को छोटी बात क्यों लगी?
  • अगर पुलिस तुरंत कार्रवाई करती तो मुख्य अभियुक्त पकड़ा जा सकता था। उसके नेपाल फ़रार होने का ज़िम्मेदार कौन है?
  • NHRC ने देहरादून के DM और SSP को नोटिस जारी किया है। उत्तराखंड सरकार ने किसी को दंडित क्यों नहीं किया?
  • अगर एंजेल की जान बच जाती, चाहे अपाहिज हो जाता, तो क्या इस जानलेवा हमले का धामी सरकार संज्ञान भी नहीं लेती?
गौर से देखिए तो यह कोई अलग थलग घटना नहीं है। यह एक वैचारिक अभियान का नतीजा है जिसने ख़ासतौर पर नौजवानों को हिंसक और नफ़रती बना दिया है। दिल्ली, बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे शहरों में भी पूर्वोत्तर के लोगों को भेदभाव और नस्लवाद का सामना करना पड़ता है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट लिखकर इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए महत्वपूर्ण सवाल उठाये हैं।

राहुल ने क्या कहा?

राहुल गाँधी ने लिखा- 'देहरादून में एंजेल चकमा और उनके भाई माइकल पर जो हुआ, वह नफरत का एक भयावह अपराध है। नफरत रातोंरात नहीं पैदा होती। सालों से इसे रोजाना खिलाया जा रहा है– खासकर हमारी युवा पीढ़ी को- जहरीले कंटेंट और गैरजिम्मेदार बातों से। और सत्ता में बैठी बीजेपी की नफरत उगलने वाली नेतागीरी इसे सामान्य बना रही है।…भारत सम्मान और एकता से बना है, डर और गाली-गलौज से नहीं। हम प्यार और विविधता का देश हैं। हमें ऐसा मरा हुआ समाज नहीं बनना चाहिए जो अपने साथी भारतीयों पर हमले होते देखकर मुँह फेर ले। हमें सोचना होगा और सामना करना होगा कि हम अपने देश को क्या बनने दे रहे हैं।’
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ज़ाहिर है, राहुल गाँधी का इशारा बीजेपी और आरएसएस की ओर है। हाल के दिनों में इनसे जुड़े संगठनों के नेता क्रिसमस पर चर्चों और ईसाइयों पर हमले करते पाये गये। उत्तराखंड में ही पिछले दिनों अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ लगातार हिंसा की ख़बरें आयीं। देश के हर कोने में ऐसी घटनाएँ हो रही हैं जिसके पीछे एक निश्चित विचारधारा है जो ख़ुद को राष्ट्रवादी कहती है, लेकिन आज राष्ट्र की एकता के लिए ख़तरा बन गयी है। आख़िर ऐसा क्यों है कि एंजेल चकमा की हत्या हो या देश के विभिन्न हिस्सों पर अल्पसंख्यकों पर हमला, प्रधानमंत्री मोदी या आरएसएस के सरसंघ चालक मोहन भागवत तक चुप्पी साधे रहते हैं। बीजेपी सरकारें कार्रवाई करने पर आनाकानी करती हैं। जबकि इस घटना की उत्तर पूर्वी राज्यों में बेहद तीखी प्रतिक्रिया हो सकती है। भूलना नहीं चाहिए कि उत्तरपूर्वी क्षेत्र में अलगाववादी आंदोलनों के पीछे एक विचार यह भी है कि उनके साथ परायों जैसा व्यवहार किया जाता है। देहरादून की घटना बताती है कि भारत की बड़ी आबादी इस बीमारी से ग्रस्त है और राष्ट्रवाद के नाम पर इसे और बढ़ाया जा रहा है।

डॉ. आंबेडकर ने कभी कहा था- भारत सही मायनों में राष्ट्र तभी बन सकता है जब सब एक दूसरे के सुख दुख में साझीदारी हों।

इसिलए जो समुदायों के बीच नफ़रत फैलाते हैं, जाति, धर्म, नस्ल, क्षेत्र, भाषा या किसी भी वजह से, वे देश के दुश्मन हैं। देश की एकता के लिए ख़तरा हैं। वे आइडिया ऑफ़ इंडिया के ख़िलाफ़ हैं। इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि उनके हाथ में धर्म का झंडा है या राष्ट्रवाद का।