पाकिस्तान और बांग्लादेश में गठजोड़
दक्षिण एशिया की राजनीति इन दिनों एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है। पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच दशकों से पसरी ठंड अब गर्माहट में बदलती दिख रही है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने हाल ही में दावा किया कि 2025 उनके संबंधों में बड़ा मोड़ लेकर आया है। वे पाकिस्तान और बांग्लादेश को ‘भाई’ बता रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सच्ची दोस्ती है या भारत को घेरने की कोई साजिश? शेख हसीना की सरकार को पाकिस्तान-विरोधी बताने वाला पाकिस्तान अब बांग्लादेश से इतना प्यार क्यों जता रहा है? और बांग्लादेश में बढ़ती इस्लामी कट्टरता क्या पाकिस्तान के लिए खुशखबरी है? क्या यह भारत की कूटनीतिक नाकामी का नतीजा है?
2025 में इशाक डार की अगस्त यात्रा 13 साल बाद पहली विदेश मंत्री स्तर की यात्रा थी। 27 दिसंबर को इस्लामाबाद में साल के अंत में होने वाली पत्रकार वार्ता में उन्होंने कहा कि बांग्लादेश यात्रा के 36 घंटे गर्मजोशी से भरे थे और चुनाव के बाद सक्रिय जुड़ाव का इरादा है। उनका दावा है कि हसीना की सरकार पाकिस्तान-विरोधी थी, इसलिए रिश्ते ठंडे थे। अब मौक़ा है सुधार का।
अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़े
शेख़ हसीना की सरकार के पतन के बाद बांग्लादेश में हिंसा, आगजनी और अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़े हैं। बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान की प्रतिमाएँ तोड़ी गईं। कट्टरवादी ताक़तें मज़बूत हो रही हैं। और पाकिस्तान इसे ही अपने लिए उम्मीद की किरण मान रहा है।
1947 का विभाजन उपमहाद्वीप के लिए बड़ा सदमा था। भारत दो हिस्सों में बंटा– पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान। दोनों के बीच बारह सौ किलोमीटर का फासला था लेकिन भारत दोनों तरफ से घिरा हुआ था। पाकिस्तान के शासक वर्ग ने शुरू से भारत को दुश्मन माना लेकिन पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लाभाषी मुसलमानों को भी दोयम दर्जे का माना। मुहम्मद अली जिन्ना ने ढाका विश्वविद्यालय में उर्दू को जिस तरह एकमात्र राष्ट्रभाषा होने पर ज़ोर दिया, उसने भी बंगाली भाषियों को बेचैन कर दिया था। पाकिस्तानी शासक पूर्वी पाकिस्तान को देश नहीं, उपनिवेश की तरह देखते थे।1970 के चुनाव में शेख मुजीबुर्रहमान की अवामी लीग को स्पष्ट बहुमत मिला– 167 सीटें। मुजीब को प्रधानमंत्री बनना था, लेकिन राष्ट्रपति याह्या खान ने इनकार कर दिया। नेशनल असेंबली स्थगित कर दी गयी। इससे मुक्ति संग्राम शुरू हो गया। पाकिस्तानी सेना ने इस पर क्रूर दमन शुरू किया।
इंदिरा गांधी का साहसिक फ़ैसला
इस विकट परिस्थिति में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अदम्य साहस और कूटनीतिक कौशल दिखाया। अमेरिका की धमकियों को नजरअंदाज कर उन्होंने मुक्ति वाहिनी का साथ दिया। 1971 का युद्ध सिर्फ 13 दिन चला। पाकिस्तानी सेना ने सरेंडर किया। 93,000 पाकिस्तानी कैदी भारत के पास थे। पूर्वी पाकिस्तान इस तरह स्वतंत्र बांग्लादेश बना। इंदिरा ने न सिर्फ इतिहास बदला, बल्कि भूगोल भी। यह जिन्ना के द्विराष्ट्र सिद्धांत की हार थी। धर्म राष्ट्रीयता का आधार नहीं रह पाया। भाषा और संस्कृति का सवाल भारी पड़ा।
लेकिन खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकी। 1975 में 15 अगस्त को मुजीब और उनके परिवार की हत्या कर दी गई। सेक्युलर बांग्लादेश किसी को रास नहीं आ रहा था। हसीना भारत में निर्वासन के बाद 1981 में लौटीं और अवामी लीग की नेता बनीं। 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बनीं और कुल पांच बार सत्ता संभालीं। इस बीच उन पर तानाशाह होने के आरोप लगे। चुनाव में धाँधली का सवाल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठा। 2024 के चुनाव में विपक्षी दल बीएनपी के बहिष्कार को उन्होंने हल्के में लिया और चुनाव जीत लिया। पर कुछ महीने बाद ही अगस्त में इस क़दर छात्र आंदोलन भड़का कि शेख हसीना को देश छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी। अब बांग्लादेश में मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार है।
बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताक़तें उभार पर
पाकिस्तान इसी बदलाव को मौका मान रहा है। बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताक़तें उभार पर हैं औेर भारत विरोधी भावना भी। अब भारत के ख़िलाफ़ एक पाकिस्तान और चीन के गठजोड़ में बांग्लेदश के शामिल होने की स्थिति बन रही है। बांग्लादेश वैसे भी 2016 से ही चीन के BRI (बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव) का हिस्सा है। वहाँ चीन निवेश बढ़ा रहा है और पाकिस्तान डिफेंस डील की बात कर रहा है। यह भारत को घेरने जैसा लगता है। ऐसा हुआ तो उत्तर पूर्व में भारत के लिए ख़तरा बढ़ सकता है।
हालाँकि, इसमें एक पेंच भी है। 1974 के त्रिपक्षीय समझौते का हवाला देकर पाकिस्तान, बांग्लादेश के साथ सभी मुद्दों को हल हुआ बताता है लेकिन लेकिन बांग्लादेश 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान हुए अत्याचार के लिए पाकिस्तान की सार्वजनिक माफी, अपने हिल्स की संपत्ति के एवज़ में 4.5 बिलियन डॉलर मुआवज़ा और बांग्लादेश में फँसे रह गये तीन लाख के क़रीब पाकिस्तानियों की वापसी की माँग पर अड़ा है।
बांग्लादेश पाक, चीन के पाले में?
बहरहाल, इंदिरा गाँधी ने जिस बांग्लादेश का निर्माण कराया वह अगर पाकिस्तान और चीन के पाले में जा रहा है तो यह मोदी सरकार की बड़ी कूटनीतिक असफलता है। शेख़ हसीना के समय भारत के रिश्ते मजबूत थे लेकिन भारत की ख़ुफ़िया एजेंसियाँ यह नहीं देख पायीं कि वहाँ सरकार के ख़िलाफ़ असंतोष बड़ रहा है। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के साथ कोई संबंध न रखकर सारे अंडे हसीना की टोकरी में रखना भारत की बड़ी भूल थी। अब यूनुस सरकार भारत से नाराज है। वह शेख़ हसीना को बांग्लादेश को सौंपने की माँग कर रही है जिन्हें अदालत ने फाँसी की सज़ा सुना दी है। शेख़ हसीना ने भारत में शरण ली है। उन्हें बांग्लादेश को सौंपना भारत की साख गिराने वाला होगा, इसलिए ऐसा करना मुमकिन नहीं है।
इस बीच, बांग्लादेश में जिस तरह अल्पसंख्यकों, ख़ासतौर पर हिंदुओं पर हमले बढ़े हैं, वह भी चिंता की बात है। भारत के कई संगठनों ने इसके लिए बांग्लादेश उच्चायोग पर प्रदर्शन भी किया, लेकिन बांग्लादेश उल्टा भारत में अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों की तस्वीर दिखा रहा है। हाल में क्रिसमस के दौरान बीजेपी से जुड़े संगठनों ने जिस तरह चर्चों और ईसाइयों पर हमले किये, उसने दुनिया भर में भारत की प्रतिष्ठा गिराई है। बांग्लादेश से रिश्तों को सँभाल न पाना मोदी सरकार की बड़ी असफलता है।