कॉन्स्टिट्यूशन क्लब के चुनाव में राजीव प्रताप रूडी की जीत क्या बीजेपी के लिए बड़ा झटका है? क्या संजीव बालियान अमित शाह की टीम के उम्मीदवार थे और राजीव प्रताप की जीत कांग्रेस और इंडिया गठबंधन की जीत के तौर पर है? क्या यह बीजेपी में अंदरुनी क़लह को दिखाता है? जिस कॉन्स्टिट्यूशन क्लब का चुनाव शायद ही पहले कभी इतनी सुर्खियों में रहा हो, उसमें आख़िर अमित शाह, सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे नेता वोट डालने क्यों गए? क्या इस चुनाव में बहुत कुछ दाँव पर था?

दरअसल, दिल्ली के प्रतिष्ठित कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ़ इंडिया के सचिव (प्रशासन) पद के लिए हुए चुनाव में बीजेपी सांसद राजीव प्रताप रूडी ने एक बार फिर जीत हासिल की है। उन्होंने अपनी ही पार्टी के पूर्व सांसद संजीव बालियान को हराया। यह चुनाव न केवल कॉन्स्टिट्यूशन क्लब की गवर्निंग काउंसिल के लिए अहम था, बल्कि इसने बीजेपी के अंदरूनी राजनीतिक समीकरणों और विपक्षी दलों के रणनीतिक समर्थन को भी उजागर किया। इस जीत के कई राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं और सोशल मीडिया पर पत्रकारों व विश्लेषकों की टिप्पणियों ने इसे और भी चर्चा का विषय बना दिया है।

कॉन्स्टिट्यूशन क्लब अहम क्यों?

कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ़ इंडिया की स्थापना 1947 में संविधान सभा के सदस्यों के लिए की गई थी और 1965 में इसका औपचारिक उद्घाटन हुआ। यह क्लब मौजूदा और पूर्व सांसदों के लिए एक अहम मंच है, जहां सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक गतिविधियां होती हैं। क्लब में जिम, स्विमिंग पूल, रेस्तरां और आयोजन स्थल जैसी सुविधाएं हैं। सचिव (प्रशासन) का पद क्लब की कार्यकारी गतिविधियों को संचालित करने में सबसे अहम माना जाता है। इस बार का चुनाव इसलिए भी खास था क्योंकि 25 साल बाद सचिव (प्रशासन) पद के लिए वोटिंग हुई, जिसमें बीजेपी के दो दिग्गज नेता आमने-सामने थे।

राजीव प्रताप रूडी की जीत के मायने

राजीव प्रताप रूडी पिछले 25 वर्षों से इस पद पर काबिज हैं। उनकी इस बार अपनी ही पार्टी के संजीव बालियान से कड़ी टक्कर थी। रूडी ने अपनी जीत के बाद कहा, 'मैंने 100 से अधिक वोटों से जीत हासिल की है। यह मेरे पैनल की जीत है और सभी सांसदों के समर्थन का नतीजा है।' उनकी जीत ने यह साबित किया कि क्लब के सदस्यों के बीच उनका व्यक्तिगत प्रभाव और रणनीतिक जोड़-तोड़ की क्षमता अभी भी बरकरार है।

चुनाव में रूडी को कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, तेलुगु देशम पार्टी और अन्य विपक्षी दलों के सांसदों का समर्थन मिला। कांग्रेस की सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे नेताओं ने शुरुआती मतदान में हिस्सा लिया, जिससे रूडी की स्थिति मज़बूत हुई।

इस चुनाव में जातिगत आयाम भी सामने आया। ठाकुर समुदाय से आने वाले रूडी को राजपूत लॉबी का मजबूत समर्थन मिला। दूसरी ओर, जाट समुदाय से आने वाले संजीव बालियान को जाट लॉबी और बीजेपी के एक गुट का समर्थन प्राप्त था। रूडी की जीत को राजपूत लॉबी की एकजुटता और उनके व्यक्तिगत संबंधों का परिणाम भी माना जा रहा है।

बालियान अमित शाह की टीम के उम्मीदवार थे?

संजीव बालियान की उम्मीदवारी को लेकर सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में चर्चा थी कि उन्हें बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व, खासकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का समर्थन मिला था। कई पत्रकारों और विश्लेषकों ने एक्स पर पोस्ट किए कि बालियान को अमित शाह और निशिकांत दुबे जैसे नेताओं का आशीर्वाद था। हालाँकि, इस दावे की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार कुछ सूत्रों का कहना है कि बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व चाहता था कि क्लब में नया नेतृत्व आए और बालियान की उम्मीदवारी को इस दिशा में एक कदम माना गया। 

बालियान ने मतगणना के दौरान कहा, 'इस बार लोगों को पहली बार पता चला कि कॉन्स्टिट्यूशन क्लब जैसी कोई संस्था है। 60% से अधिक मतदान हुआ, जो एक रिकॉर्ड है।' उनकी इस टिप्पणी से यह संकेत मिलता है कि उनकी उम्मीदवारी ने क्लब को फिर से चर्चा में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

क्या यह कांग्रेस और इंडिया गठबंधन की जीत है?

रूडी की जीत को कुछ हद तक कांग्रेस और इंडिया गठबंधन की रणनीतिक जीत के रूप में देखा जा रहा है। सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने रूडी के पक्ष में मतदान किया। रूडी के पैनल में सपा के अक्षय यादव और दक्षिण भारत के कुछ नेताओं को शामिल करने से उनके पक्ष में व्यापक समर्थन जुटा।

हालाँकि, इसे पूरी तरह से कांग्रेस या इंडिया गठबंधन की जीत कहना सही नहीं होगा। रूडी की जीत उनके व्यक्तिगत प्रभाव, लंबे समय से चले आ रहे संबंधों और विपक्षी दलों की रणनीति का परिणाम थी, जो बीजेपी के अंदरूनी टकराव का लाभ उठाना चाहते थे। यह विपक्ष की एकजुटता से ज्यादा बीजेपी के अंदरूनी विभाजन का परिणाम माना जा सकता है।

बीजेपी में अंदरूनी कलह का संकेत?

इस चुनाव को बीजेपी बनाम बीजेपी की जंग के रूप में देखा गया, जो पार्टी के अंदरूनी मतभेदों को उजागर करता है। रूडी और बालियान दोनों ही बीजेपी के वरिष्ठ नेता हैं, लेकिन उनकी उम्मीदवारी ने पार्टी के विभिन्न गुटों को सामने ला दिया। कुछ रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि रूडी को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का समर्थन था, जबकि बालियान को अमित शाह और निशिकांत दुबे का समर्थन प्राप्त था।
सोशल मीडिया पर कुछ पत्रकारों ने इसे बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के बीच सत्ता और प्रभाव की लड़ाई के रूप में देखा। यह चुनाव बीजेपी के अंदरूनी गुटबाजी को दिखाता है, जहां एक ओर रूडी जैसे पुराने और अनुभवी नेता हैं, तो दूसरी ओर बालियान जैसे नए चेहरों को मौका देने की कोशिश की जा रही है। बीजेपी सांसदों का समर्थन भी बंटा हुआ था।

राजीव प्रताप रूडी की कॉन्स्टिट्यूशन क्लब के चुनाव में जीत ने उनके व्यक्तिगत प्रभाव और रणनीतिक कौशल को तो दिखाया ही, साथ ही बीजेपी के अंदरूनी मतभेदों को भी सामने लाया। संजीव बालियान की उम्मीदवारी को अमित शाह के समर्थन से जोड़ा गया, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हुई। रूडी को विपक्षी दलों का समर्थन मिला, लेकिन इसे पूरी तरह कांग्रेस या इंडिया गठबंधन की जीत कहना गलत होगा। यह बीजेपी की अंदरूनी गुटबाजी और जातिगत समीकरणों का मिश्रण था, जिसने इस चुनाव को हाई-प्रोफ़ाइल बनाया।