2025 रुपये की ऐतिहासिक गिरावट का साल साबित हुआ है। इस साल रुपये में  5% तक की गिरावट देखी गयी जो एक रिकॉर्ड है। जनवरी में एक डॉलर के मुक़ाबले रुपया 84-85 के आसपास था और नवंबर में 90.28 की रिकॉर्ड गिरावट के साथ नज़र आ रहा है।इस गिरावट ने रुपये को एशिया की सबसे कमजोर करेंसी बना दिया है।
ज़रा 2013 को याद कीजिए। मोदी जी तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे और रोज़ किसी न किसी बहाने यूपीए सरकार को कोसते थे। वैसे तो मनमोहन सिंह की प्रतिष्ठा विश्व स्तर पर एक बड़े अर्थशास्त्री की थी लेकिन उस समय रुपये में आयी गिरावट को देखते हुए विपक्ष हमलावर था। कारपोरेट को साधकर बीजेपी की ओर से पीएम पद के उम्मीदवार बन चुके मोदी जी मनमोहन सिंह को मौन मोहन सिंह कह रहे थे। उनके तबके बयानों पर ज़रा नज़र डालिए—
  • जून 2013 (ट्वीट): "कांग्रेस और रुपये के बीच कॉम्पिटिशन चल रहा है। कौन ज्यादा नीचे गिरेगा, ये मुकाबला है।"

  • 15 अगस्त 2013 (स्वतंत्रता दिवस भाषण, अहमदाबाद): "आज हमारी मुद्रा मृत्युशय्या पर है। यह टर्मिनल स्टेज में है और तुरंत डॉक्टर की जरूरत है।... वर्तमान में दोनों - रुपया और यूपीए सरकार - अपनी वैल्यू खो चुके हैं। देश को तबाही से रोकने का समय आ गया है।"

  • 24 अगस्त 2013 (सार्वजनिक बयान): "मौन मोहन सिंह और रुपया दोनों चुप हो गए हैं।... संकट आते हैं, लेकिन अगर संकट के दौरान नेतृत्व दिशाहीन और निराश हो जाए, तो संकट बहुत गंभीर हो जाता है।... दिल्ली के शासकों को देश की रक्षा या रुपये की गिरती वैल्यू की चिंता नहीं, सिर्फ अपनी कुर्सी बचाने की फिक्र है।”


2014 की पहली तिमाही में डॉलर औसतन 60 रुपये के आसपास था। लेकिन मनमोहन सिंह पर व्यक्तिगत हमला हो रहा था उनके आर्थिक ज्ञान का माखौल बनाया जा रहा था। मनमोहन सरकार के ख़िलाफ़ बीजेपी  को कारपोरेट जगत का समर्थन मिल गया था जो यूपीए की भोजन का अधिकार, शिक्षा का अधिकार देने जैसी नीतियों से बुरी तरह उखड़ा हुआ था। इसका असर फ़िल्मी दुनिया से लेकर पत्रकारों तक पर नज़र आ रहा था। इसे पेट्रोल-डीज़ल के दाम से भी जोड़ा गया था जो साठ-सत्तर रुपये प्रिय लीटर तक पहुँच गया था।
फ़िल्म अभिनेत्री जूही चावला ट्वीट कर भगवान को धन्यावाद दे रही थीं कि उनके अंडरवियर का नाम रुपया नहीं डॉलर है, वरना रोज़ गिरता। वहीं अमिताभ बच्चन बता रहे थे कि लोग पेट्रोल टंकी में डालने के लिए नहीं गाड़ी फूँकने के लिए ख़रीद रहे हैं। तमाम नामी पत्रकार भी जमकर सरकार को कोस रहे थे। अब सब चुप हैं जबकि डॉलर 90 पार है और पेट्रोल भी सौ के आसपास प्रति लीटर बिक रहा है।
ये सब स्वाभाविक ही लग रहा था। सरकार पर टिप्पणी करने को तब देशद्रोह नहीं समझा जाता था। तब मीडिया  सत्ता की आरती नहीं उतारता था, सवाल पूछता था। उस समय अर्थव्यवस्था को मरणासन्न घोषित कर दिया गया था। माहौल बनाया गया था कि डा.मनमोहन सिंह को हटाकर ‘डॉक्टर’.मोदी को लाया जाये तभी मरीज़ बचेगा। मोदी जी ख़ुद भी ऐसा ही दावा कर रहे थे। और नतीजा ये हुआ कि मोदी जी प्रधानमंत्री बन गये। और उन्होंने अर्थव्यवस्था का आपरेशन भी कर दिया।

नोटबंदी की यादों से कौन मुक्त हो सकता है। हर आदमी लाइन में लग गया क्योंकि 8 नवंबर 2016 की शाम आठ बजे टीवी पर प्रकट होकर मोदी जी ने कह दिया कि हज़ार और पाँच सौ के नोट रात बारह बजे से बेकार हो जाएँगे। पूरे देश में हड़कंप मच गया। बाद में अर्थशास्त्रियों ने कहा कि अर्थव्यवस्था की चलती गाड़ी के टायर पर गोली मारी गयी थी।

तो क्या डालर की तुलना में रुपये की क़ीमत गिरने को मोदी जी की प्रतिष्ठा गिरना माना जाये? क्या इस मुद्दे पर उनकी चुप्पी को देखते हुए उन्हें 'मौन मोदी’ कहना गलता है जैसा उन्होंने ‘मौन-मोहन’ सिंह कहा था।

रुपये की क़ीमत गिरने के कारण कई हैं

  • अमेरिका के टैरिफ और व्यापार तनाव: अगस्त 2025 में अमेरिका ने भारतीय निर्यात पर 50% तक टैरिफ लगाए, जिससे निर्यात कम प्रतिस्पर्धी हो गया। US-India व्यापार डील में देरी ने अनिश्चितता बढ़ाई, जिससे विदेशी निवेशक सतर्क हो गए।
  • विदेशी निवेशकों का पैसा निकालना (FPI आउटफ्लो): 2025 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से लगभग 17 अरब डॉलर निकाले। यह उच्च US ब्याज दरों, वैश्विक जोखिम से बचाव और भारतीय बाजार की ऊंची वैल्यूएशन के कारण हुआ।
  • व्यापार घाटा और आयात का बोझ: भारत का व्यापार घाटा बढ़ा (निर्यात कम, आयात ज्यादा)। अक्टूबर 2025 में भारत का व्यापार घाटा 41.68 बिलियन डालर हो गया है जो पिछले साल इसी अवधि  26.2 डालर था।

RBI की नीति: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने हस्तक्षेप कम किया, ताकि रुपया प्राकृतिक रूप से समायोजित हो सके, जो निर्यात को प्रतिस्पर्धी बनाए।
ये कारक मिलकर रुपये को 90 के पार धकेल रहे हैं, लेकिन RBI के 690 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार से स्थिरता बनी हुई है। यहाँ ये भी सवाल उठता है कि अगर भारतीय अर्थव्यवस्था चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हो गयी है तो रुपया कमजोर क्यों है। कहीं ऐसा तो नहीं कि विज्ञापनों में नज़र आने वाले सूट-बूट के नीचे फटी बनियान है। क्या इन आँकड़ों पर भरोसा किया जा सकता है।
आईएमएफ़ ने हाल ही में संदेह जताया है कि भारत से मिलने वाले आँकड़े विश्वसनीय नहीं हैं। हाल ही में IMF ने भारत के GDP डेटा को ग्रेड 'C' में डाल दिया। यानी आँकड़े विश्वसनीय नहीं हैं। जब विनिर्माण क्षेत्र में विकास ठप है और बिजली तक की माँग में कमी आयी है तो 8.2 फ़ीसदी विकास दर पर विश्वास करना मुश्किल ही होगा।
हैरानी की बात है कि दस साल पहले जो मीडिया रुपये की क़ीमत पर गिरने पर शोर मचाता था, अब हमें बताता है कि यह अच्छी बात है। नीति आयोग के पूर्व वाइस चेयरमैन राजीव कुमार सामने आये हैं। राजीव कुमार ने कहा कि प्रमुख वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले रुपये की विनिमय दर में गिरावट अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है। उन्होंने कहा कि इससे भारत से श्रम-गहन निर्यात को प्रोत्साहन मिलता है, विदेशी मुद्रा आय बढ़ती है और रोजगार के अवसर तैयार होते है। यानी पूरी कसौटी ही बदल दी गयी है। 2013 में मोदी जी ने जिसे देश के लिेए दुर्भाग्य कहा था, बताया था कि अर्थव्यवस्था इस धक्कों को सँभाल नहीं पायेगा, वही मुद्रा अवमूल्यन राजीव कुमार की नज़र में अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर है।
इस सब से अलग मोदी जी मौन हैं। मोदी युग में बस सन्नाटे शोर मचा रहे हैं….गलियों में धूल उड़ा रहे हैं…इस मौसम का मज़ा लीजिए जैसे मोदी जी ने अपील की है चाहे हवा में ज़हर भर गया हो।