बजट से पहले और बजट के बाद मध्य वर्ग का बड़ा हौवा रहता है। लेकिन दरअसल, मध्य वर्ग में किसे आना चाहिए और कौन है, इसे लेकर हम लोग वास्तविकता का सामना नहीं करना चाहते और न कुछ विचार करना चाहते हैं। वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह बता रहे हैं कि दरअसल मध्य वर्ग में कौन हैंः
अगर उद्योगपति अडानी की संपत्ति पिछले 11 सालों में 20 गुनी बढ़ी है, अगर जिनी कोएफ़िशिएंट पर भारत में गरीबी-अमीरी की खाई लगातार बढ़ रही है जिसके व्यापक संकेत थॉमस पिकेटि ने अपने अध्ययन में दिये हैं तो मात्र एक प्रतिशत अरबपतियों पर “सुपर रिच” टैक्स लगाना और उससे प्रेमचंद के गोदान के चरित्र – होरी, झुनिया, गोबर की स्थिति सुधारना और सोना-रूपा को अच्छी शिक्षा देना न्याय भी है और विकास की सही दिशा भी. इसीलिए विली सटन की बात सही लगती है भले हीं वह डकैती अपने लिए करता था और सरकार गरीबों के कल्याण के लिए उनसे मात्र उनके उस "लाभ" का कुछ अंश ले रही है जो गलत नीतियों के कारण उनके पास पहुंचा.
कार्ल मार्क्स का मध्यम वर्ग एक “पेटी बुर्जुआ” खास किस्म का शोषक होता था. भारत में इसका मतलब अपने-अपने तर्क को वजन देने के लिए “मिडिल क्लास मानसिकता” कह कर दिया जाता है. आयकर में छूट की कई वर्षों पुरानी मांग मान कर सरकार ने एक वर्ग को राहत तो दी है. भले हीं इससे राजस्व में एक लाख करोड़ रुपये की कमी होगी लेकिन बताया जा रहा है कि इससे इस राशि से तीन गुना क्रय होगा और इकॉनमी उत्प्रेरित होगी.
शहरों में सब्जी, गेहूं, दूध, दाल, ,बस भाड़ा या स्कूल फीस बढे़ तो यह वर्ग पूरे देश के बेहाली जैसा माहौल बनाता है. यही कारण है कि सरकार मांग से पहले ही वेतन-आयोग लाती है, जबकि देश भर में कुल (केंद्र और राज्यों के) सरकारी कर्मचारी मात्र 1.75 करोड़ ही हैं.