भारत के बाजारों में चीनी सामानों की बाढ़ और उसका बहिष्कार एक बार फिर चर्चा में है। हाल ही में, 27 मई को गुजरात के गांधीनगर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीनी सामानों के बहिष्कार की अपील की। उन्होंने कहा, "हमें अपनी धरती, अपनी मिट्टी और अपनी संस्कृति से जुड़ी चीजों पर गर्व होना चाहिए। आज छोटी आंखों वाले गणेश जी भी विदेश से आ जाते हैं, जिनकी आंख भी नहीं खुल रही है। होली पर रंग और पिचकारी भी वहां से आते हैं। हमें विदेशी सामानों का उपयोग कम करना होगा और स्वदेशी को अपनाना होगा।" हालांकि उन्होंने चीन का नाम नहीं लिया, लेकिन इशारा साफ था। यह अपील कई सवाल उठाती है: क्या यह केवल चुनावी रणनीति है? क्या इससे भारत को आर्थिक फायदा होगा? और क्या विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के तहत चीनी सामानों का पूर्ण बहिष्कार संभव है?

भारत और चीन के बीच व्यापार असंतुलित है, जिसमें भारत को भारी व्यापार घाटा हो रहा है। बीते पांच साल के आंकड़े इसकी गवाही देते हैं:

  • 2020-21: कुल व्यापार 87.65 अरब डॉलर, आयात 65.21 अरब डॉलर, निर्यात 21.19 अरब डॉलर, घाटा 44.02 अरब डॉलर।
  • 2021-22: कुल व्यापार 115.42 अरब डॉलर, आयात 94.57 अरब डॉलर, निर्यात 21.25 अरब डॉलर, घाटा 73.32 अरब डॉलर।
  • 2022-23: कुल व्यापार 113.83 अरब डॉलर, आयात 98.51 अरब डॉलर, निर्यात 15.32 अरब डॉलर, घाटा 83.19 अरब डॉलर।
  • 2023-24: कुल व्यापार 118.4 अरब डॉलर, आयात 101.75 अरब डॉलर, निर्यात 16.66 अरब डॉलर, घाटा 85.09 अरब डॉलर।
  • 2024-25 (अनुमानित): व्यापार घाटा 100 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है, जिसमें आयात 113 अरब डॉलर और निर्यात 14 अरब डॉलर।

ये आंकड़े बताते हैं कि भारत का केवल 8% निर्यात चीन को जाता है, जबकि चीन के कुल निर्यात का मात्र 2% भारत को। यह असंतुलन भारत के लिए चिंता का विषय है।

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सरकार की नीतियाँ और विरोधाभास

सवाल उठता है कि यदि चीनी सामान से नुकसान है तो सरकार उसे आने क्यों देती है? भारत और चीन मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) के दर्जे के तहत व्यापार करते हैं, जो WTO के नियमों के अनुसार अनिवार्य है। भारत ने चीन को यह दर्जा 2001 में दिया, जब चीन WTO का सदस्य बना। MFN के तहत भारत चीनी सामानों पर मनमाने प्रतिबंध नहीं लगा सकता। हालाँकि, सरकार ने कुछ क़दम उठाए हैं:

क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर्स (QCOs): टेक्सटाइल और खिलौनों जैसे क्षेत्रों में सस्ते चीनी सामानों पर अंकुश।

एंटी-डंपिंग ड्यूटी: सस्ते आयात की कीमत बढ़ाने के लिए ड्यूटी।

कस्टम्स में देरी: 2020 की गलवान झड़प के बाद चीनी सामानों की क्लीयरेंस में देरी।

लेकिन, इतिहास में विरोधाभास भी दिखता है। मई 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने सबसे पहले विदेशी मेहमान के रूप में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आमंत्रित किया था। सितंबर 2014 में उनकी अहमदाबाद यात्रा के दौरान साबरमती नदी के किनारे भव्य स्वागत हुआ। तीन समझौते हुए:

  • अहमदाबाद और ग्वांगझोऊ को सिस्टर सिटी बनाना।
  • गुजरात में चीनी औद्योगिक पार्क की स्थापना।
  • गुजरात और ग्वांगडोंग प्रांत के बीच सांस्कृतिक संबंध।

इन नीतियों ने भारत-चीन व्यापार को बढ़ावा दिया। फिर भी, आज बहिष्कार की बात क्यों हो रही है। वैसे, बहिष्कार के कुछ फ़ौरी फायदे हो सकते हैं पर चुनौतियाँ भी हैं।

फायदे

आत्मनिर्भरता में वृद्धि: स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा मिलेगा। उदाहरण के लिए, खिलौना उद्योग में भारत ने आयात 52% कम किया और निर्यात 239% बढ़ाया (2019-2023)।

व्यापार घाटा कम होना: आयात कम होने से 85.09 अरब डॉलर का व्यापार घाटा घट सकता है।

राष्ट्रीय सुरक्षा: चीनी उत्पादों पर निर्भरता कम करने से भारत की रणनीतिक स्वायत्तता बढ़ेगी, खासकर जब चीन भू-राजनीतिक रूप से भारत के खिलाफ गतिविधियों का समर्थन करता है, जैसे ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान का साथ देना।

वैश्विक निवेश: बहिष्कार की अपील वैश्विक कंपनियों को भारत में निवेश के लिए प्रोत्साहित कर सकती है। जर्मनी की कासा एवर्ज और लावा इंटरनेशनल ने चीन से भारत में अपनी इकाइयाँ स्थानांतरित की हैं।

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चुनौतियाँ

आर्थिक प्रभाव: भारत इलेक्ट्रॉनिक्स (60-75%), फार्मास्यूटिकल कच्चे माल (70%), और खिलौनों (75%) में चीन पर निर्भर है। पूर्ण बहिष्कार से आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो सकती है, जिससे दवाओं और इलेक्ट्रॉनिक्स की कीमतें बढ़ सकती हैं।

उपभोक्ता लागत: चीनी सामान सस्ते हैं। स्वदेशी विकल्पों की लागत अधिक होने से उपभोक्ताओं पर बोझ बढ़ सकता है।

WTO और बहिष्कार की सीमा

सवाल ये भी है कि क्या विश्व व्यापार संगठन (WTO) के सदस्य रहते चीनी सामान का बहिष्कार संभव है। विश्व व्यापार संगठन 1 जनवरी 1995 को अस्तित्व में आया। यह व्यापार को नियमित करता है। भारत 1995 और चीन 2001 से इसके सदस्य हैं। WTO के GATT 1994, अनुच्छेद I (MFN सिद्धांत) के तहत, किसी देश के सामान का पूर्ण बहिष्कार गैर-भेदभाव के सिद्धांत के खिलाफ है। अपवाद के तहत (GATT अनुच्छेद XXI, राष्ट्रीय सुरक्षा), भारत ने 2020 में 59 चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाया।

चीनी सामान का पूर्ण बहिष्कार WTO नियमों का उल्लंघन हो सकता है, जिससे व्यापार विवाद और जवाबी कार्रवाई (जैसे टैरिफ) का खतरा है।

भारत-चीन अर्थव्यवस्था: तुलना

2025 में दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं की स्थिति इस प्रकार है:

चीन:

जीडीपी: 18.3 ट्रिलियन डॉलर (दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था)।

प्रति व्यक्ति जीडीपी: ~13,000 डॉलर।

वैश्विक व्यापार में हिस्सेदारी: निर्यात का ~14%।

भारत:

जीडीपी: 4.2 ट्रिलियन डॉलर (चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था)।

प्रति व्यक्ति जीडीपी: ~2,900 डॉलर।

वैश्विक व्यापार में हिस्सेदारी: निर्यात का ~2.2%, आयात का ~3.4%।

चीन की अर्थव्यवस्था भारत से 4.5 गुना बड़ी है। भारत सेवा क्षेत्र पर निर्भर है, जबकि चीन विनिर्माण और निर्यात में अग्रणी है।

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भारत चीन से कैसे पिछड़ा?

1947 में भारत को आजादी और 1948 में चीन में कम्युनिस्ट क्रांति के बाद दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएं 1980 तक समान थीं (जीडीपी ~200 अरब डॉलर)। लेकिन 1990 के दशक से चीन ने तेज प्रगति की। कारण हैं:

आर्थिक सुधार: चीन ने 1978 में डेंग शियाओपिंग के नेतृत्व में विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) और निर्यात-उन्मुख नीतियां अपनाईं, जबकि भारत ने 1991 में उदारीकरण शुरू किया।

विनिर्माण: चीन ने विनिर्माण और बुनियादी ढांचे पर ध्यान दिया, भारत सेवा क्षेत्र पर केंद्रित रहा।

निवेश: चीन ने विदेशी निवेश आकर्षित किया, जबकि भारत में नौकरशाही थी।

अनुसंधान: चीन ने R&D में निवेश किया, जबकि भारत में वैज्ञानिक प्रगति धीमी रही।

सांप्रदायिकता जिम्मेदार?

1980 के दशक में भारत में सांप्रदायिकता और अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाली ताकतें उभरीं। 1980 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) का गठन हुआ, जिसने राम मंदिर आंदोलन (1990) के जरिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ाया। इसने धर्म को राजनीति से जोड़ा, जिससे वैज्ञानिक सोच और अनुसंधान पर असर पड़ा। वेद-पुराणों को सर्वोच्च बताने और तर्क-विज्ञान का मजाक उड़ाने का माहौल बना।

इसका नतीजा हुआ कि भारत मैन्युफैक्चरिंग और तकनीकी नवाचार में पिछड़ गया, जबकि चीन ने कृत्रिम सूरज जैसे प्रोजेक्ट्स पर काम शुरू किया।

बहिष्कार या सियासत?

ऑपरेशन सिंदूर में चीन का पाकिस्तान के साथ खड़ा होना भारत के ग़ुस्से की वजह है। लेकिन 2014 में शी जिनपिंग का भव्य स्वागत और व्यापार बढ़ाने की नीतियाँ विरोधाभासी हैं। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भी कहा कि चीन-पाकिस्तान गठजोड़ को तोड़ना भारत की विदेश नीति की विफलता है। सीमा पर चीनी अतिक्रमण और अरुणाचल प्रदेश में नाम बदलने जैसे मुद्दों पर सरकार की चुप्पी सवाल उठाती है। यदि बहिष्कार गंभीर है, तो चीन का MFN दर्जा क्यों नहीं छीना जाता?

चीनी सामानों के बहिष्कार की अपील आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय सुरक्षा की दिशा में कदम हो सकती है, लेकिन WTO नियमों और भारत की निर्भरता के कारण पूर्ण बहिष्कार संभव नहीं। भारत को वैकल्पिक आपूर्तिकर्ता (जैसे वियतनाम, ताइवान) और स्वदेशी उद्योगों को मजबूत करना होगा। साथ ही, जिस सांप्रदायिकता और अंधविश्वास ने भारत की वैज्ञानिक प्रगति को प्रभावित किया उससे भी पार पाना होगा। वरना प्रधानमंत्री की अपील को सिर्फ़ चुनावी दाँव ही माना जाएगा।