पटना सीडब्ल्यूसी में मल्लिकार्जुन खड़गे।
24 सितंबर 2025 को बिहार के पटना स्थित सदाक़त आश्रम में कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की बैठक हुई। 85 साल बाद कार्यसमिति उसी ऐतिहासिक स्थल पर पहुँची जहाँ कभी उसने स्वतंत्रता संग्राम को नया मोड़ देने का फ़ैसला किया था। इसी बैठक में कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन में पारित संविधान सभा के गठन के प्रस्ताव पर अंतिम मुहर लगायी गयी थी। यह वह फै़सला था जिसने सामाजिक न्याय के लक्ष्य पर आधारित समावेशी संविधान की नींव रखी थी। आठ दशक बाद कांग्रेस कार्यसमिति ने उसी सदाक़त आश्रम में ‘अति पिछड़ा न्याय संकल्प’ जारी करके जारी किया उस संकल्प को विस्तार दिया है जिसे न केवल बिहार बल्कि पूरे देश के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य के लिए गेमचेंजर माना जा रहा है। जो कांग्रेस को भी संजीवनी दे सकता है।
सदाक़त आश्रम की बैठक
कांग्रेस की यह बैठक महज एक औपचारिक आयोजन नहीं थी। यह एक ऐसी रणनीति का हिस्सा थी, जो सामाजिक न्याय को केंद्र में रखकर देश की राजनीति को नई दिशा देने का प्रयास करती है। इस बैठक में जो ‘अति पिछड़ा न्याय संकल्प’ को पारित किया गया वे राहुल गाँधी की पिछले कई सालों से जारी प्रयासों का निचोड़ है। इस संकल्प के दस सूत्र सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित अति पिछड़ा वर्ग (EBC) के लिए ठोस नीतिगत बदलावों का खाका प्रस्तुत करते हैं। इस संकल्प की खासियत इसकी स्पष्टता और लक्षित दृष्टिकोण है, जो इसे महज घोषणाओं से अलग करता है। मंच पर राष्ट्रीय जनता दल (RJD), वामपंथी दलों और अन्य सहयोगी नेताओं की मौजूदगी ने यह संकेत दिया कि कांग्रेस सामाजिक न्याय की एक व्यापक छतरी बनाने की कोशिश कर रही है, जिसमें विभिन्न राजनीतिक धाराएं शामिल हों।
अति पिछड़ा न्याय संकल्प: दस सूत्री योजना
- अति पिछड़ा अत्याचार निवारण अधिनियम: अति पिछड़ा वर्ग के खिलाफ अत्याचारों को रोकने के लिए विशेष कानून।
- पंचायत और नगर निकायों में 30% आरक्षण: वर्तमान 20% आरक्षण को बढ़ाकर 30% करने का प्रस्ताव।
- 50% आरक्षण सीमा का विस्तार: विधानमंडल द्वारा पारित कानून को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने की सिफारिश।
- ‘Not Found Suitable’ (NFS) अवधारणा को अवैध घोषित करना: चयन प्रक्रिया में इस प्रावधान को समाप्त करना।
- अति पिछड़ा वर्ग की सूची में समावेशन की समीक्षा: एक कमेटी के माध्यम से सूची में सुधार।
- आवासीय भूमि का प्रावधान: शहरी क्षेत्रों में 3 डेसिमल और ग्रामीण क्षेत्रों में 5 डेसिमल भूमि।
- शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत आरक्षण: निजी स्कूलों में 50% सीटें EBC, SC, ST और OBC के लिए।
- सरकारी ठेकों में 50% आरक्षण: 25 करोड़ तक के ठेकों में EBC, SC, ST और OBC के लिए आरक्षण।
- निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण: संविधान की धारा 15(5) के तहत आरक्षण लागू करना।
- आरक्षण नियामक प्राधिकरण: आरक्षण की निगरानी के लिए एक स्वतंत्र प्राधिकरण का गठन।
ये घोषणाएं इतनी लक्षित हैं कि इनका सीधा असर अति पिछड़ा वर्ग की जिंदगी पर पड़ सकता है, जो बिहार की कुल आबादी का लगभग 36% हिस्सा है।राहुल गांधी का दृष्टिकोण
राहुल गांधी ने पिछले दिनों बिहार में अपनी ‘वोट अधिकार यात्रा’ के दौरान संविधान को केंद्र में रखकर सामाजिक न्याय की लड़ाई को तेज करने का आह्वान किया था। उनका मानना है कि भारत में वंचित समुदाय को पहली बार वैधानिक रूप से बराबर का नागरिक अधिकार देने वाले इस संविधान का आरएसएस और बीजेपी पहले दिन से विरोध कर रहे हैं। मोदी सरकार संविधान और आरक्षण की अवधारणा पर लगातार हमले कर रही है। राहुल का यह संदेश बिहार जैसे राज्य में विशेष रूप से प्रासंगिक है, जहां सामाजिक न्याय की राजनीति हमेशा से प्रभावशाली रही है।
बिहार में अति पिछड़ा वर्ग को नीतीश कुमार ने अपनी राजनीति का आधार बनाया था, लेकिन राहुल गांधी ने सवाल उठाया कि 20 साल के शासन में नीतीश ने इस वर्ग के लिए क्या किया? उनकी यह टिप्पणी “वोट लिया और इस्तेमाल करके फेंक दिया” राजनीतिक गोलबंदी का एक नया आधार तैयार कर रही है।
बिहार में कांग्रेस की रणनीति
बिहार में सामाजिक न्याय की राजनीति का इतिहास लंबा और जटिल है। लालू प्रसाद यादव ने पिछड़े वर्ग को अपनी ताकत बनाया, जबकि नीतीश कुमार ने 2007 में OBC को EBC और OBC में बांटकर एक नया वोटबैंक बनाया। 2022 में आरजेडी और कांग्रेस के सहयोग से चल रही नीतीश सरकार ने जाति-आधारित जनगणना करायी थी। इसके नतीजों ने दिखाया कि बिहार की आबादी में EBC 36.1% और OBC 27.13% हैं, यानी कुल 63%। इस सर्वे के बाद नीतीश सरकार ने आरक्षण को 50% से बढ़ाकर 65% करने का प्रयास किया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की 50% सीमा के कारण यह कानून विवादों में है।
कांग्रेस अब खुलकर अति पिछड़ों को न्याय दिलाने के पक्ष में खड़ी है। राहुल गाँधी लगातार पचास फ़ीसदी आरक्षण सीमा को बढ़ाने की माँग कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फ़ैसले को पलटते हुए 1 अगस्त 2024 को SC/ST के भीतर उप-वर्गीकरण को वैध ठहराया था जिसका कांग्रेस ने खुलकर स्वागत किया है। और वह ओबीसी के बीच भी उपवर्गीकरण की हिमायत कर रही है।यह रुख EBC के बीच कांग्रेस की साख बढ़ा सकता है।
सामाजिक न्याय की छतरी
सदाक़त आश्रम में संकल्प पत्र जारी करते समय मंच पर तेजस्वी यादव (RJD), मुकेश साहनी (VIP), और (CPI-ML) सांसद सुदामा प्रसाद जैसे नेताओं की मौजूदगी ने यह संदेश दिया कि कांग्रेस सामाजिक न्याय की लड़ाई में सभी संविधान समर्थक ताकतों को एकजुट करना चाहती है। यह एक तरह से ‘दूसरी आजादी की लड़ाई’ की शुरुआत है, जैसा कि बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम ने कहा।
1940 में सदाक़त आश्रम में महात्मा गांधी ने कहा था, “आज से मैं आपका सेनापति हूं!” आज राहुल गांधी उसी भावना के साथ सामाजिक न्याय और सेक्युलरिज्म की लड़ाई को आगे बढ़ा रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या कांग्रेस का नेतृत्व और कार्यकर्ता इस लड़ाई में राहुल के सिपाही बनने को तैयार हैं, या वे पुरानी जोड़-तोड़ की राजनीति में ही उलझे रहेंगे?
कांग्रेस का ‘अति पिछड़ा न्याय संकल्प’ न केवल बिहार बल्कि पूरे देश में सामाजिक न्याय की राजनीति को नई दिशा दे सकता है। यह संकल्प न सिर्फ EBC के लिए एक ठोस नीतिगत ढाँचा प्रस्तुत करता है, बल्कि कांग्रेस को हिंदी पट्टी में अपनी खोई जमीन वापस पाने का अवसर भी देता है। यह कांग्रेस के लिए एक गेमचेंजर साबित हो सकता है।