प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की डिग्रियों में मेरी ज़्यादा दिलचस्पी नहीं है। वैसे भी डिग्रियों से ज्ञान या विवेक का कोई वास्ता है- यह भ्रम अरसा पहले कई डिग्रीधारियों ने ही तोड़ दिया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में फिज़िक्स पढ़ाने वाले मुरली मनोहर जोशी 1995 की एक सुबह गणेश जी को दूध पिला कर अपनी डिग्री को पानी-पानी कर चुके थे। उनकी तरह के लाखों नहीं करोड़ों लोग हैं। मेरी यह मान्यता भी पहले से बनी हुई है कि इस देश को उसके पढ़े-लिखे लोगों ने सबसे ज़्यादा लूटा है, उन्होंने सबसे ज्यादा बांटा है। अनपढ़ लोग धार्मिक निकले, पढ़े-लिखे लोग सांप्रदायिक साबित हुए। मोहम्मद अली जिन्ना इसकी एक मिसाल थे। सावरकर दूसरी मिसाल थे।