देश में दलितों के साथ बढ़ती अपमानजनक घटनाएं चिन्ताजनक हैं।
भारत का संविधान बराबरी का वादा करता है, लेकिन 21वीं सदी के 25वें साल में भी दलितों पर अत्याचार की कहानियाँ थम नहीं रही हैं। हरियाणा के वरिष्ठ IPS अधिकारी वाई. पुरन कुमार की आत्महत्या, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई पर जूता फेंकने की घटना, और रायबरेली में हरिओम वाल्मीकि की लिंचिंग – ये घटनाएँ एक गहरे सामाजिक यथार्थ को उजागर करती हैं। यह ज़हर मनुस्मृति से निकलता है, जिसे धर्म बताकर RSS और बीजेपी के समर्थकों का बड़ा हिस्सा आज भी थामे हुए है। हरियाणा में एक IPS की आत्महत्या सामान्य मामला नहीं है, या शासन-प्रशासन को अपने फंदे में रखने वाली सवर्ण सामंती व्यवस्था का क्रूर उदाहरण है।
एक दलित IPS की बेबसी
7 अक्टूबर 2025 को हरियाणा के रोहतक रेंज के IG, 2001 बैच के IPS वाई. पुरन कुमार ने चंडीगढ़ के अपने घर में सर्विस रिवॉल्वर से आत्महत्या कर ली। 52 वर्षीय पुरन आंध्र प्रदेश के एक गरीब दलित परिवार से थे। उनके माता-पिता ने गरीबी और सामाजिक भेदभाव को झेलते हुए उन्हें इंजीनियर बनाया, और फिर वे IPS बने। उनकी पत्नी अमनीत पी. कुमार (IAS, 2003 बैच) उस समय जापान में थीं। पुरन ने 9 पेज का सुसाइड नोट अपनी पत्नी को भेजा, जिसमें 12 अधिकारियों (9 सर्विंग IPS, 1 रिटायर्ड IPS, 2 रिटायर्ड IAS) पर जातिगत भेदभाव, मानसिक प्रताड़ना, फर्जी FIR, और प्रमोशन में अनियमितता का आरोप लगाया गया था। नोट में लिखा, "अगस्त 2020 से अत्याचार असहनीय हो गये।”
अमनीत ने लौटकर देखा कि उनके पति की आत्महत्या मामले में पुलिस लीपापोती कर रही है। उन्होंने CM नायब सिंह सैनी को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि, "FIR में नाम हटाए गए, SC/ST एक्ट के सेक्शन कमजोर किए गये।” आखिरकार 9 अक्टूबर को चंडीगढ़ पुलिस ने BNS 108 (आत्महत्या भड़काना) और SC/ST एक्ट के तहत FIR दर्ज की, लेकिन DGP शत्रुजीत कपूर और SP नरेंद्र बिजरनिया जैसे नाम फिर भी स्पष्ट रूप से नहीं लिखे गये। परिवार ने CBI जांच, आरोपियों की गिरफ्तारी, और सस्पेंशन तक पोस्टमॉर्टम व अंतिम संस्कार से इनकार कर दिया। 11 अक्टूबर की दोपहर तक शव GMSH-16 मॉर्चरी में है। NCSC ने सूओ मोटो नोटिस लिया, लेकिन हरियाणा सरकार की चुप्पी लीपापोती की ओर इशारा करती है। क्या एक IPS को भी जाति का जहर मार सकता है? यह सवाल हरियाणा के 'सुशासन' पर तमाचा है।
CJI पर जूता फेंकने की कोशिश
आईपीएस पुरन कुमार की आत्महत्या के एक दिन पहले 6 अक्टूबर को दलित समाज से आने वाले सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई पर एक वकील राकेश किशोर ने जूता फेंकने की कोशिश की। साथ में नारा लगाया- "सनातन धर्म का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान!” दरअसल, पिछले महीने ने जस्टिस गवई ने ASI-संरक्षित खजुराहो मंदिर में पूजा की अनुमति से इनकार करते हुए कहा था, "कानून कुछ नहीं कर सकता, भगवान से प्रार्थना करो।" इसके बाद सोशल मीडिया पर गवई के खिलाफ नफरत भरी मुहिम चलने लगी। उनकी दलित पहचान को निशाना बनाया गया। PM मोदी ने कई घंटे बाद निंदा की पर अपराधी के ख़िलाफ़ कार्रवाई की बात नहीं की। उधर, दिल्ली पुलिस ने भी कोई FIR दर्ज नहीं की, क्योंकि "CJI ने माफ कर दिया।" क्या अपराध को माफ करना पीड़ित का काम है, या राज्य का? बीजेपी राज्यों में FIR का अभाव सवाल उठाता है – क्या दलित पर हमला अपराध नहीं माना जाता?
लिंचिंग पर "बाबावादी" हँसी
2 अक्टूबर को रायबरेली में हरिओम वाल्मीकि (40) के चोर होने की अफवाह में भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। मरते वक्त हरिओम ने राहुल गांधी को पुकारा, तो हत्यारों ने हँसते हुए कहा, "यहाँ सब बाबावादी हैं।" बाबा – यानी CM योगी आदित्यनाथ, जो क्षत्रिय होने पर सार्वजनिक रूप से गर्व जताते हैं।
लेकिन एक अनपढ़ मज़दूर पर ही यह हमला नहीं होता। याद कीजिए, 17 जनवरी 2016 को हैदराबाद यूनिवर्सिटी के PhD स्कॉलर रोहित वेमुला ने आत्महत्या की थी। रोहित की फेलोशिप रोककर उसे हॉस्टल से निकाला गया था। रोहित ने सुसाइड नोट में लिखा था: "मेरा जन्म एक अभिशाप था।" यह एक दलित छात्र की सांस्थानिक हत्या थी।
दलित उत्पीड़न 46% बढ़ा
NCRB डेटा बताता है– 2013-2023 के बीच दलितों पर अत्याचार 46% और ST पर 91% बढ़ा। 2023 में 57,789 SC मामले दर्ज, जिनमें उत्तर प्रदेश टॉप पर (15,368 मामले, 26.6%)। मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार जैसे बीजेपी-शासित राज्य अगले नंबर पर। अपराधी बेखौफ हैं, क्योंकि सजा की उम्मीद शून्य है। क्या यह संयोग है कि बीजेपी राज में दलितों पर अत्याचार चरम पर हैं?
आम्बेडकर का संघर्ष
डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने बचपन से ही जातिगत भेदभाव झेला। स्कूल में अलग बैठना, पानी का अलग बर्तन। 1917 में बड़ौदा में नौकरी मिली, लेकिन दलित होने के कारण किराये के लिए नाम बदलना पड़ा। फिर भी अपमान हुआ।सहकर्मियों ने पानी तक न छूने दिया। नौकरी छोड़कर सार्वजनिक जीवन में कूदे डा. अम्बेडकर ने कहा, "दलित उत्पीड़न का स्रोत हिंदू धर्म है।" 1927 में महाड सत्याग्रह में उन्होंने मनुस्मृति जलाई। इस ग्रंथ में कहा गया है कि सेवा करना शूद्रों का धर्म है। उसे शिक्षा का अधिकार नहीं है। यह दलितों को गुलाम बनाये रखने का दस्तावेज़ है।
मनुस्मृति बनाम संविधान
डा.आंबेडकर के बनाये संविधान ने बराबरी का अधिकार देकर उस मनुस्मृति को अवैध ठहरा दिया जिसे RSS महान मानता है। संविधान स्वीकार किये जाने के चार दिन बाद 30 नवंबर 1949 को आरएसएस के मुखपत्र 'ऑर्गनाइजर' ने आलोचना की कि "संविधान में मनुस्मृति क्यों नहीं?” सावरकर ने "मनुस्मृति को ‘हिंदू लॉ’ बताया। हिंदू कोड बिल आया तो आरएसएस ने डा.अम्बेडकर का पुतला जलाया। आज भी RSS 'सैनिटाइज्ड' मनुस्मृति की वकालत करता है।
राहुल गांधी की चेतावनी
यह सुखद संयोग है कि जब डा.आंबेडकर के नाम पर राजनीति करने वाले तमाम नेता और दल ज़मीर का सौदा कर चुके हैं तो नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने सामाजिक न्याय के प्रश्न को सर्वोच्च प्राथमिकता दे दी है। उन्होंने संसद में कहा, "बीजेपी मनुस्मृति चाहती है, संविधान नहीं।"
राहुल गांधी ने 9 अक्टूबर को X पर लिखा, "पुरन कुमार की आत्महत्या सामाजिक जहर का प्रतीक है। IPS को अपमान सहना पड़ा, तो साधारण दलित क्या झेलते होंगे?" उन्होंने रायबरेली लिंचिग और CJI पर हमले जैसी घटनाओं को जोड़ते हुए आरोप लगाया कि मोदी राज में "वंचितों पर अन्याय चरम पर है।"
CJI पर जूता फेंकना, हरियाणा के दलित IPS की आत्महत्या या हरिओम की लिंचिंग – यह सब समाज में फैले मनुस्मृति के ज़हर का नतीजा है। लड़ाई सीधी हो चुकी है। संविधान या मनुस्मृति। देश जैसा फ़ैसला लेगा, वैसा ही नतीजे भुगतेगा।