लद्दाख ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने पर जश्न मनाया था। तब उसे अंदाज़ा नहीं था कि इस सीमांत और पर्यावरण के लिहाज़ से बेहद संवेदनशील माने जाने वाले राज्य की एक सुरक्षा छतरी भी इसके साथ हट गयी है। छह साल बाद लद्दाखियों को समझ में आया है कि उनके साथ छल हुआ है। पूर्ण राज्य और छठवीं अनुसूची की माँग करते हुए लाठी-गोली खा रहे लद्दाख के आंदोलनकारी अनुच्छेद 370 को शिद्दत से याद कर रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या अनुच्छेद 370 को हटाने का असल मकसद कॉरपोरेट कंपनियों को लद्दाख की प्राकृतिक संपदा पर कब्जा करने की खुली छूट देना था? और क्या इस मुद्दे पर दशकों तक आरएसएस और बीजेपी ने देश को गुमराह किया?
लद्दाख को सता रही है अनुच्छेद 370 की याद यानी RSS ने देश को गुमराह किया?
- विश्लेषण
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- 30 Sep, 2025

सोनम वांगचुक
लद्दाख में अनुच्छेद 370 की बहाली की मांग तेज़ हो रही है। स्थानीय लोग इसे अपनी पहचान और अधिकार से जोड़ रहे हैं। क्या बीजेपी-आरएसएस ने देश को गुमराह किया?
सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी
पूर्ण राज्य और छठवीं अनुसूची की माँग को लेकर 24 सितंबर 2025 को बुलाये गये बंद के दौरान लेह में हिंसा भड़क उठी थी। इसमें सुरक्षाबलों की गोलीबारी में चार नौजवानों की मौत हुई और 90 लोग घायल हो गये। उत्तेजित नौजवानों की भीड़ ने बीजेपी का दफ्तर जला दिया। इस हिंसा के लिए केंद्र सरकार ने पर्यावरणविद और नवाचारों के लिए विश्व प्रसिद्ध सोनम वांगचुक को जिम्मेदार ठहराया और उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत गिरफ्तार कर लिया। उन पर विदेशी शक्तियों के इशारे पर काम करने का आरोप लगा। वांगचुक 15 दिनों से छठवीं अनुसूची की मांग को लेकर अनशन पर थे लेकिन हिंसा के बाद उन्होंने अनशन तोड़ दिया। उनका कहना है कि केंद्र सरकार अपने वादों से मुकर रही है। वह लद्दाख को कॉरपोरेट लूट का अड्डा बनाना चाहती है। उनकी गिरफ्तारी ने देशभर में आक्रोश पैदा कर दिया है। लेह एपेक्स बॉडी ने 6 अक्टूबर को केंद्र के साथ प्रस्तावित वार्ता का बहिष्कार कर दिया और हिंसा की न्यायिक जांच की मांग की। साथ ही, लद्दाखियों को "देशद्रोही" और "पाकिस्तान का खिलौना" कहने के लिए केंद्र से माफी की मांग की गयी।