राहुल गांधी के जेन ज़ी आह्वान पर विवाद
इन दिनों पूरब से लेकर पश्चिम तक उत्तर प्रदेश चोरियों से परेशान है। पहले ड्रोन उड़ रहे थे और बाद में चोर उड़ने लगे। लोग समझ ही नहीं पा रहे हैं कि जिस समय बिजली कटती है उसी समय चोर कैसे धमक जा रहे हैं। लेकिन अब तो वे दिन दहाड़े आ रहे हैं और लोगों को घायल कर देते हैं और जो उन्हें पकड़ने की कोशिश करता है उसे जान से मार देते हैं। लोगों का कहना है कि यह तो चोरी नहीं डकैती है। लेकिन प्रशासन पहले तो इसे अफवाह बताता रहा और अब चोरी से अधिक मानने को तैयार नहीं है। प्रदेश को अपराध मुक्त, माफिया मुक्त बनाने का दावा भरभरा कर गिर गया लगता है। गांव वालों को सिर्फ युवाओं का सहारा है, वे रात भर जाग रहे हैं और गांवों की रक्षा कर रहे हैं। यह वही जेन ज़ी है जिसने नेपाल से फ्रांस तक चोरों को चुनौती देने का काम शुरू कर दिया है।
वास्तव में दुनिया दो तरह के चोरों से घिरी है। एक वे हैं जो छोटे स्तर पर गांवों में रात के अंधेरे में आते हैं और शोर मचने पर भाग निकलते हैं या फिर मानसिक विकलांग होने का अभिनय करने लगते हैं। दूसरे वे हैं जो दिल्ली, मुंबई, पेरिस, वाशिंगटन और काठमांडो में बैठकर चोरियां करते हैं और जिनकी हिफाजत के लिए पुलिस और सेना सब तैनात है। गांवों में होने वाली छोटी छोटी चोरियों पर कोई बहस नहीं है। लोग उन्हें बहुत बड़ा अपराधी मानते हैं और पकड़े जाने पर हाथ पैर तोड़ने से लेकर मार डालने तक तैयार रहते हैं। हालांकि ऐसे चोरों के बारे में महात्मा गांधी ने ‘हिंद स्वराज’ में माफी देने का सुझाव दिया है।
लेकिन असली बहस छिड़ी है उन चोरों पर जो दिन दहाड़े राज्य की संस्थाओं के शीर्ष पर बैठकर, कॉरपोरेट के साथ मिलकर देश और दुनिया की संपत्तियां लूट रहे हैं। ऊपर से तुर्रा यह कि वह तो समाज की सेवा कर रहे हैं, राष्ट्र की संपत्तियों का विस्तार कर रहे हैं। दरअसल जो लोग उन पर सवाल उठा रहे हैं वे विदेशियों से सांठगांठ करके राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध काम कर रहे हैं। इसलिए ऐसे सवालों पर लगाम लगनी चाहिए। अदालतें और दूसरी राजनीतिक संस्थाएं उनकी बात के ही समर्थन में आकर खड़ी हो जाती हैं।
ऐसी ही चोरी का एक आरोप नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी लगा रहे हैं। यह आरोप अनाज, पशु, जमीन, नकदी और जेवरात चोरी का नहीं है। यह एक खास किस्म की चोरी का आरोप है और वह है वोटों की चोरी का है। वह ऐसी चोरी है जो राजनीतिक है, व्यवस्थागत है और जो अगर हो रही है तो उससे पूरी राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र की वैधता सवालों के घेरे में है। राहुल गांधी, इंडिया समूह के नेता तेजस्वी यादव, दीपंकर भट्टचार्य, हेमंत सोरेन, अखिलेश यादव एम.के.स्तालिन और दूसरे नेताओं ने इस चोरी के विरुद्ध बिहार में वोट अधिकार यात्रा भी निकाली। उस यात्रा ने जनता के बीच चेतना जगाने का महत्त्वपूर्ण दायित्व निभाया। वे उससे आगे बढ़कर लोकतंत्र की गठरी में हो रही बड़ी चोरियों पर शोर मचा रहे हैं।
यह नए किस्म की चोरी है जो सत्तालोलुपता, जनादेश की विद्रूपता और याराना पूंजीवाद के हितों को साधने के लिए राज्य की संस्थाओं के सहयोग से की जा रही है। इसमें नई प्रौद्योगिकी यानी डिजिटल टेक्नोलॉजी की मदद ली जा रही है। इससे राज्य की संस्थाओं की निष्पक्षता और न्यायप्रियता संदिग्ध हो गई है। समस्या यह है कि यह चोरियां या तो यह कहते हुए हो रही हैं चोरी की परंपरा पुरानी है और आरोप लगाने वाले खुद ही चोर हैं या फिर यह कहा जा रहा है कि चोरी हुई ही नहीं। जो आरोप लगा रहे हैं वे स्वार्थी हैं और वे एक किस्म की गलतफहमी मतिभ्रम के शिकार हैं।
राहुल गांधी ने जब इन चोरियों के विरुद्ध सक्रियता के लिए जेन ज़ी का आह्वान किया तो हंगामा मच गया है। सत्तारूढ़ पार्टी ने उन्हें हिंसक धमकियां देनी शुरू कर दी हैं। जबकि जेन जी का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहीं से हिंसा का आह्वान नहीं किया था। जेन ज़ी वह पीढ़ी है जिसका जन्म 1997 से 2012 के बीच हुआ है और जो तकनीक पर जरूरत से ज्यादा निर्भर है। जो जीवन की कल्पना मोबाइल के बिना कर नहीं पा रही है। वह वास्तविक दुनिया को सोशल मीडिया के नजरिए देखती है और दुनिया के बारे में राय बनाने के लिए हकीकत से रूबरू होने या किताबों से ज्ञान लेने के बजाय सोशल मीडिया पर अतिरिक्त रूप से आश्रित है। पर वह किसी चीज पर लंबे समय तक ध्यान नहीं दे पाती। उसके बाद आती है अल्फा पीढ़ी जिसका जन्म 2012 के बाद हुआ है और जो एआई यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर निर्भर है। विश्लेषकों का मानना है कि जेन ज़ी आक्रामक है और सोशल मीडिया से भड़क सकती है और उसके सामने लोकतंत्र और किसी आदर्श व्यवस्था का कोई स्वप्न नहीं है लेकिन वह अन्याय के विरुद्ध खड़ी हो सकती है।
सवाल उठता है कि क्या जेन ज़ी हिंसक है या उसके सामने अहिंसा का कोई आदर्श नहीं है? या यह भी कह सकते हैं कि उसके भीतर घुसकर कुछ अराजक तत्व हिंसा कर बैठते हैं? हम नेपाल की घटनाओं से एक हद तक यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि जेन ज़ी अन्याय के विरुद्ध तो है लेकिन उसके पास अन्याय और लूट करने वालों को हटाकर कोई नई व्यवस्था कैसे बनाई जाए इसका कोई स्वप्न नहीं है। वह हिंसा के लिए माफी तो मांग रही है लेकिन समाजवाद और साम्यवाद को समझती नहीं है।
वह पूंजीवाद और समाजवाद के अंतर को भी बहुत स्पष्ट नहीं कर पाती। लेकिन वह झूठ और अन्याय पर कड़ी प्रतिक्रियाएं देती है। हमारे सामने इस पीढ़ी और उसके आंदोलन को समझने के लिए दो रास्ते हैं। एक तो हम मिस्र के तहरीर चौक से शुरू होकर चले अरब स्प्रिंग आंदोलन और फिर भारत में अन्ना हजारे और केजरीवाल के नेतृत्व में हुए लोकपाल आंदोलन को देख सकते हैं। इसके विस्तार को हम बांग्लादेश, नेपाल और फ्रांस के युवा आक्रोश तक ले जा सकते हैं।
दूसरा रास्ता इतिहास के उन आंदोलनों को समझने का है जो 1967 में सारी दुनिया में युवा आक्रोश की शक्ल में उभरे और नक्सलवाद के रास्ते से जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन तक आए। इन आंदोलनों की चर्चा करते समय हमें उनके बारीक अंतर को भी ध्यान में रखना होगा और सब धान बाइस पसेरी के लिहाज से किए जाने वाले विश्लेषण से बचना होगा। निश्चित तौर पर 1974 के जेपी आंदोलन के आरंभिक दौर में हिंसक घटनाएं हुईं लेकिन आंदोलन में जेपी का प्रवेश इसी शर्त पर हुआ कि हिंसा नहीं होगी। यानी ‘हमला चाहे जैसा हो हाथ हमारा नहीं उठेगा’। ध्यान रहे कि जेपी ने सेना और पुलिस से बगावत की बात नहीं की थी। उन्होंने सिर्फ यही इतना कहा था कि सुरक्षा बलों को अवैध आदेशों को मानने से इंकार कर देना चाहिए।
कहने का मतलब यह है कि जब शांतिपूर्ण आंदोलन हो रहा हो तो बल प्रयोग गलत है। हिंसा और अहिंसा की बहस पूरी दुनिया में आज भी जारी है। लेकिन जो लोग हिंसा को आज भी विचारधारा मानते हैं और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष के एक प्रभावी साधन के रूप में देखते हैं उनसे यही कहना होगा कि हिंसा और हथियार न कोई विचारधारा है और न ही विचार। उसका जन्म ही विचारविहीनता की स्थिति से होता है। जब विचार और तर्क समाप्त हो जाते हैं तो हिंसा उत्पन्न होती है।
जब मनुष्य के विवेक पर विश्वास समाप्त हो जाता है तो हिंसा और हथियार का जन्म होता है। जो लोग कहते हैं कि सेना और परमाणु बम बुद्ध की शांति का आधार बन सकते हैं। वे न तो बुद्ध को समझते हैं और न ही परमाणु बम को। परमाणु बम मनुष्य का सबसे गैर जरूरी आविष्कार है और उसी तरह से हथियार और हिंसा भी। इसी तरह जो समझते हैं कि आतंकवाद से अन्याय से लड़ा जा सकता है वे भी गलत हैं।
जाहिर सी बात है अगर राहुल गांधी जेन ज़ी को हिंसा के रास्ते से जागृत करने के लिए कह रहे हैं तो वे गलत हैं और उनका विरोध होना चाहिए। लेकिन अगर वे जेन ज़ी को अहिंसा के रास्ते से अन्याय का विरोध करने के लिए जागृत कर रहे हैं तो उनका रास्ता गांधी, लोहिया और जयप्रकाश का ही रास्ता है। यह रास्ता मानवता का प्राचीन रास्ता है और यही भविष्य का रास्ता है। चाहे वह 1946 में जन्मी बेबी बूमर जनरेशन हो, 1965 के बाद पैदा हुई जनरेशन एक्स हो, 1981 के बाद वाली जनरेशन वाई हो, 1997 के बाद वाली जनरेशन ज़ी हो या 2012 के बाद वाली जनरेशन अल्फा हो। जब जब वह सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चली है तब तब उन्होंने सभ्यता का कल्याण किया है और जब वह हिंसा के मार्ग पर चली है तब विनाश किया है।