चंदन महकता है. माथा शीतल कर देता है । धार्मिक पहचान भी उपलब्ध करता है। संतों की भीड़ हो। चित्रकूट का घाट हो और मुफ्त का चंदन घिस कर लगाया जा रहा हो तो मजा अलग ही है। मजे की बात मुफ्त का चंदन घिसता कोई और है तिलक कोई और लगाता है, लगवाता कोई और है । अर्थात चंदन किसी और का और श्रेय कोई और ले जाता है। मुफ्त को लेकर हम बेहद सनातनी हैं। बालक राम के विवाह में जनक ने बारातियों को 40 लाख गायें 25 लाख रथ और न जाने क्या-क्या भेंट कर दिया था। ये मै नहीं कहता। ये बात उस राम चरित मानस में लिखी है जिसे मै पिछले पचास साल से मुफ्त में पढता आ रहा हूँ ।