भारत में अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार संविधान के तहत मिला है, लेकिन इसकी सीमाएँ और व्याख्या हमेशा चर्चा का विषय रही हैं। हाल के कुछ मामलों में विभिन्न उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय ने अभिव्यक्ति की आज़ादी से जुड़े मामलों में अलग-अलग रुख अपनाए हैं। एक दिन पहले कमल हासन के मामले में अदालत ने कहा था कि बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार इतना नहीं दिया जा सकता कि यह जनता की भावनाओं को ठेस पहुँचाए। अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि 'प्रत्येक आदमी को अपनी बात कहने का अधिकार है, लेकिन इस समय इस तरह की सांप्रदायिक बात लिखने की क्या जरूरत थी? लेकिन बाद में इसी सुप्रीम कोर्ट ने इसी मामले में कहा कि अभिव्यक्ति की आज़ादी लोकतंत्र का आधार है और इसे केवल असाधारण परिस्थितियों में ही सीमित किया जा सकता है।
अभिव्यक्ति की आज़ादी पर अलग-अलग मामलों में अदालतों का रुख अलग क्यों?
- विश्लेषण
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- 4 Jun, 2025
भारत में अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर अलग-अलग मामलों में अदालतों द्वारा लिए गए फैसलों में विरोधाभास क्यों नजर आता है? जानिए, हाल में अदालतों ने क्या क्या टिप्पणी की।

कमल हासन के मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट, खादीजा शेख के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट, शर्मिष्ठा पनोली के मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट और अली खान महमूदाबाद के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसलों ने इस मुद्दे पर अलग-अलग नज़रिये पेश किए हैं।