उत्तर प्रदेश के घोसी विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव के नतीजे को दलीय आधार पर देखें, तो इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है। यह सीट पहले भी सपा के पास थी और इस बार भी सपा उम्मीदवार ने यह सीट जीती है। खासतौर से हिन्दी पट्टी के प्रमुख अख़बारों को देखें, तो यह नतीजा ऐसा ही दिखता है। परंतु यह आधा सच है। अब इस पर खासी चर्चा हो चुकी है कि इस उपचुनाव में सपा उम्मीदवार सुधाकर सिंह की जीत कोई सामान्य जीत नहीं है, बल्कि यह नवगठित विपक्षी गठबंधन इंडिया की जीत है। इसी तरह से कई दलों का सफर कर भाजपा में पहुंचे दारा सिंह चौहान की पराजय को सिर्फ़ एक सामान्य पराजय की तरह नहीं देखा जा रहा है, तो इसकी वजह यही है कि राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार और केंद्र की मोदी सरकार ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था।
घोसी के नतीजे को क्यों 1974 के जबलपुर से जोड़ा जा रहा है?
- विश्लेषण
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 - 11 Sep, 2023

 

क्या घोसी उपचुनाव नतीज़ों को लेकर विपक्षी गठबंधन इंडिया यानी इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूशिव एलायंस की 1977 के जनता प्रयोग से तुलना की जा सकती है? जानिए, क्या समानता है।
घोसी को 2024 के चुनाव के लिए ठीक उसी तरह के प्रस्थान बिंदु की तरह देखा जा रहा है, जिस तरह से 1974-75 में जबलपुर लोकसभा के उपचुनाव में संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में शरद यादव ने कांग्रेस उम्मीदवार को पराजित किया था। पर क्या करीब पांच दशक बाद यह तुलना ठीक होगी? निश्चित रूप से तब और अब में खासा बदलाव आ चुका है, फिर भी, नवगठित इंडिया के लिए 1977 के 'जनता' प्रयोग में कई सबक छिपे हुए हैं।



















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