loader

दूध पर जीएसटी लगने की ग़लत खबर फैलने का रहस्य? 

सबसे ज़बर्दस्त तरीके से यही खबर चली है कि इतिहास में पहली बार अनाज और दूध दही पर भी जीएसटी लग गया है। अनाज पर तो बाद में आते हैं लेकिन सबसे पहले दूध। सब तरफ खबर भी आ गई और इस बात पर चर्चा भी हो गई कि अब बच्चों के पीने के दूध पर भी टैक्स लग जाएगा।
आलोक जोशी

किस्सा पुराना है लेकिन दूध पर जीएसटी के विवाद ने याद दिला दिया। शायद नब्बे के दशक की बात है। हिंदी के तमाम अखबारों में खबरें छपीं - मशहूर साहित्यकार उपेंद्रनाथ अश्क नींबू पानी बेच रहे हैं। जाहिर है हिंदी साहित्य और साहित्यकारों की दुर्दशा का नमूना था।लेकिन जब कुछ जिज्ञासुओं ने पता लगाने की कोशिश की कि माजरा क्या है तो किस्से में पेंच निकल आया।

हुआ यह कि अश्क साहब ने इलाहाबाद में अपने घर के बाहर ही एक छोटी सी किराने की दुकान खोल ली। खर्चा चलाने के लिए थी या वक्त काटने के लिए पता नहीं। मगर किसी अखबार नवीस को यह खबर लगी तो उसने अखबार में लिख दिया कि अश्क साहब ने परचून की दुकान खोली। 

स्थानीय अख़बार में बात छपी और गुजर सी गई। लेकिन फिर एक अंग्रेजी समाचार एजेंसी के पत्रकार ने उस खबर को पढ़ा और सोचा कि यह बात तो पूरे देश तक जानी चाहिए। अब उन्हें शायद परचून का मतलब समझ नहीं आया, लगा चूने जैसी कोई चीज़ है, और चूने को अंग्रेज़ी में कहते हैं लाइम। सो अंग्रेजी में खबर बनी Renowned author selling Lime. लेकिन गजब तो इसके बाद हुआ।
ताज़ा ख़बरें
अब उसी एजेंसी के हिंदी विभाग में अँग्रेजी की खबर का अनुवाद करने वाले ने फिर दिमाग़ लगाया और सोचा कि लाइम तो नींबू होता है, इतने बड़े साहित्यकार नींबू का ठेला तो नहीं लगा रहे होंगे। तो फिर क्या कर रहे होंगे। जवाब मिला कि नींबू पानी यानी शरबत वगैरह की दुकान खोल ली होगी। उसी का नतीजा था कि एजेंसी ने यह खबर जारी भी  कर दी और कई अखबारों ने छापी भी।  

जीएसटी के साथ यह किस्सा क्यों याद आया? क्योंकि सबसे ज़बर्दस्त तरीके से यही खबर चली है कि इतिहास में पहली बार अनाज और दूध दही पर भी जीएसटी लग गया है। अनाज पर तो बाद में आते हैं लेकिन सबसे पहले दूध। सब तरफ खबर भी आ गई और इस बात पर चर्चा भी हो गई कि अब बच्चों के पीने के दूध पर भी टैक्स लग जाएगा।

लेकिन एक मित्र ने पूछा कि आखिर दूध पर कहां और कितना टैक्स लगा है? जीएसटी काउंसिल की मीटिंग के बाद जारी प्रेस नोट,  नोटिफिकेशन और रेट लिस्ट सब खंगाल कर देखी तो कहीं भी दूध पर टैक्स का जिक्र नहीं है। जीएसटी के एक बड़े जानकार से पूछा, उन्होंने कहा कि दूध पर कोई टैक्स नहीं लगा है, न खुले दूध पर, न ब्रांडेड दूध पर। फिर यह वितंडा कहां से शुरू हुआ? ध्यान से देखा तो कहानी फिर वैसी ही निकली। वहां बटर मिल्क लिखा है जिसे हिंदी में छाछ या मट्ठा कहा जाता है। मगर फिर नज़र का फेर ही कहेंगे कि बटर मिल्क को शायद बटर और मिल्क समझकर दूध पर टैक्स की खबर चला दी गई।

अनुवाद करनेवाले ने तो छोटी सी गफलत कर दी। लेकिन इससे बड़ा हंगामा खड़ा हो गया। स्वाभाविक भी था। दूध का कारोबार कितना बड़ा है और कितने लोगों की रोज़ी रोटी इस पर टिकी है इसका अंदाजा कम ही लोगों को है।
खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ महीने पहले गुजरात में एक नए डेयरी कॉंप्लेक्स का उद्घाटन करते वक्त बताया कि भारत दुग्ध उत्पादन के मामले में दुनिया में नंबर वन है। यही नहीं देश में गेहूं और धान की फसल से भी ज्यादा कमाई दूध से होती है।सालाना साढ़े आठ लाख करोड़ रुपए की कमाई वाले इस कारोबार में एक करोड़ से ज्यादा लोग लगे हुए हैं। इनमें से साठ परसेंट के ऊपर छोटे, मंझोले किसान या भूमिहीन लोग हैं। खास बात यह है कि खेती की तरह यह मौसमी काम नहीं है। यह लोग साल के बारहों महीने दिन में दो बार दूध निकालते और बेचते हैं। अब आप सोच लें कि इनके पास दूध पर टैक्स लगने की खबर पहुंची होगी तो क्या असर हुआ होगा।
GST on milk in India news - Satya Hindi

करीब करीब यही बात गेहूं, चावल, दाल और दूसरे अनाज उगाने और बेचने वालों  के साथ भी है। और समझने वालों के लिए भी मुश्किल खड़ी हो गई कि आखिर किस पर टैक्स लगेगा और कैसे वसूला जायेगा। हालांकि जीएसटी काउंसिल की बैठक जून के आखिरी हफ्ते में हुई थी और टैक्स के बदलाव अठारह जुलाई से लागू हुए, लेकिन इन पर सवाल उठानेवालों की नींद भी अचानक अठारह जुलाई के बाद ही खुली। ऐसा लगा मानों सरकार ने रातोंरात कोई फैसला कर डाला है। 

हुआ क्या है? दरअसल देश में जीएसटी से आनेवाली रकम लगातार बढ़ रही है। जून के महीने में करीब एक लाख चवालीस हज़ार करोड़ की वसूली हुई है। इससे पहले अप्रैल में रिकॉर्ड बना था जब167540 करोड़ रुपए जीएसटी में जमा हुए थे। लेकिन अधिकारियों ने पाया कि नियमों में कुछ ऐसी कमियां रह गई हैं जिनसे कुछ बड़े व्यापारी उन रियायतों का फायदा ले रहे हैं जो छोटे किसानों या कारोबारियों के लिए दी गई थीं। और उन्होंने टैक्स न भरने के नए रास्ते निकाल लिए हैं। इसी आधार पर जीएसटी काउंसिल ने टैक्स रेट में यह बदलाव किए हैं जिन्होंने हंगामा मचा दिया।

जिस तरह विपक्ष के नेताओं ने कोई तैयारी नहीं की और आखिरी दिन नारेबाज़ी शुरू कर दी, उसी तरह सरकार के स्तर पर भी मीटिंग और नये रेट लागू होने के बीच लगभग तीन हफ्ते के वक्त का कोई सदुपयोग नहीं किया गया। हंगामा होने के बाद ही सफाई जारी की गई कि किस चीज पर टैक्स लग रहा है और किस पर नहीं।
दूसरी गड़बड़ी यह है कि जीएसटी आते समय सरकार ने दावा किया था कि अनाज पर जो टैक्स लगता था वो खत्म किया जा रहा है और वादा किया था कि आगे भी यह नहीं लगेगा। अब क्यों लगता है कि सरकार ने वादा तोड़ दिया है?   

दूध के बारे में तो यह बात बिलकुल साफ है कि उस पर कोई टैक्स नहीं है। न खुले बिकने वाले दूध पर और न ही पैकेट में आने वाले दूधपर। लेकिन पैकेट या डिब्बे में बंद दूध में चीनी या फ्लेवर मिला है, या फिर दही, लस्सी, मट्ठा, पनीर के पैकेट पर टैक्स लगाया गया है। ठीक इसी तरह कहीं भी खुले बिकने वाले अनाज पर कोई टैक्स नहीं है।अनाज के मामले में दरअस्ल पैकेट में बिकने वाले ब्रांडेड और अनब्रांडेड पैकेट का फर्क खत्म किया गया है। पहले भी यह इंतजाम था कि अगर दुकानदार आपके सामने सामान को पैकेट में डालकर सील कर के देंगे तो उसपर टैक्स नहीं लगेगा।

लेकिन अगर तैयार सीलबंद पैकेट बेचे जाएंगे तो उनपर टैक्स लगेगा। यहां एक गड्ढा था। 18 जुलाई से पहले तक सिर्फ ऐसे ब्रांडेड सामान पर टैक्स लगता था जो ब्रांड रजिस्टर्ड हैं। लेकिन अब इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि ब्रांड रजिस्टर्ड है या नहीं। सब पर टैक्स लगेगा। 

यह टैक्स पच्चीस किलो या पच्चीस लीटर तक की पैकिंग में बिकने वाले सामान पर ही लगेगा। अगर दुकानदार छब्बीस किलो का पैकेट लाते हैं और उसे पूरा या खोल कर बेच रहे हैं तो उन्हें कोई टैक्स नहीं देना होगा। इससे बड़ी पैकिंग यानी पचास और सौ किलो के बोरों में आनेवाले सामान पर तो पहले भी टैक्स नहीं लगता था। सरकार ने अब यह भी साफ कर दिया है कि अगर दुकानदार पच्चीस किलो से कम की पैकिंग को भी खोलकर बेचते हैं तो फिर उसपर जीएसटी नहीं देना पड़ेगा। हां अगर पच्चीस किलो से ऊपर के पैकेट में कम वजन के कई छोटे छोटे पैकेट रखकर एक साथ बेचे जा रहे हैं तब भी उन्हें छोटा पैकेट मानकर टैक्स भरना पड़ेगा। 

सूत्रों के अनुसार इसके पीछे की कहानी दरअसल यह है कि कुछ बहुत बड़े और मशहूर ब्रांड के व्यापारियों ने अपने दाल, चावल, आटे जैसी चीजों के दूसरे नाम से पैकेट बनाकर बेचने शुरू कर दिए थे। यह ब्रांड रजिस्टर्ड नहीं थे इसलिए इन पर टैक्स नहीं लगता था।
दुकानदार को पता था कि इस नए ब्रांड को उस पुराने मशहूर ब्रांड के साथ ही रखकर बेचना है और ग्राहक को भी बताना है कि दोनों एक ही कंपनी से आए हैं। कुछ दिन तो चलता रहा, लेकिन अब टैक्स वालों को भी खबर हो गई तो उन्होंने भी हुक्म जारी कर दिया कि दोनों को बराबर ही टैक्स भरना पड़ेगा।
विश्लेषण से और खबरें

इस चक्कर में फील्ड में गलतफहमी और कुछ छोटे व्यापारियों को परेशानी की शिकायतें तो हो सकती हैं लेकिन निशाना छोटे किसान, व्यापारी या कारोबारी नहीं हैं यह बात साफ है। 

लेकिन यह पूरा किस्सा सरकारी व्यवस्था की पोल भी खोलता है कि इतनी मामूली सी बात भी साफ साफ शब्दों में लिखकर बोलकर पूरे देश को समझाने में इतना बड़ा प्रचार तंत्र नाकाम रहा। घर के किराए पर जीएसटी का फैसला भी ऐसा ही उदाहरण है। देश भर में मकान मालिकों और किराएदारों की नींद उड़ाने के बाद सरकार की सफाई आ रही है कि आपको फिक्र करने की ज़रूरत नहीं है। अगर आप जीएसटी रजिस्टर्ड नहीं हैं तो आप पर यह टैक्स नहीं लगने वाला है।यानी जो कंपनियां या व्यापारी अपने कर्मचारियों को किराए पर मकान लेकर देते हैं सिर्फ उनको ही यह टैक्स भरना है। लेकिन पता नहीं कि यह खबर भी अभी तक सबके पास पहुंची है या नहीं।  

साभार - हिंदुस्तान 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
आलोक जोशी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विश्लेषण से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें