लेह में बीजेपी का दफ़्तर फूँकने की घटना सामान्य नहीं है। यह युवाओं में बेरोज़गारी के प्रति बढ़ते ग़ुस्से का संकेत है जो लेह से लेकर देहरादून तक दिखायी दे रहा है। लद्दाख में हुई हिंसा इसलिए भी गंभीर है क्योंकि यहाँ के लोगों ने पाँच साल पहले अनुच्छेद 370 हटाये जाने के बाद केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा पाने पर जश्न मनाया था। लेकिन अब वही लोग मोदी सरकार पर वादा खिलाफी का आरोप लगाकर सड़क पर हैं। केंद्र सरकार ने 24 सितंबर को हुई हिंसा में चार लोगों के मारे जाने और क़रीब सत्तर लोगों के घायल होने की ज़िम्मेदारी जलवायु और सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांग्चुक पर डालते हुए उनके ख़िलाफ़ तरह-तरह की जाँच शुरू कर दी है जो इस आग में घी डालने जैसा काम है।

लेह में आग: क्या हुआ?

24 सितंबर 2025 को लेह में Leh Apex Body (LAB) की युवा विंग ने बंद बुलाया। मांगें वही – लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची, और स्थानीय नौकरियों में आरक्षण थीं। वहाँ 10 सितंबर से सोनम वांगचुक और उनके 15 साथी भूख हड़ताल पर थे जिनमें दो की तबीयत बिगड़ने की ख़बर आयी। दोपहर 11:30 बजे तक सब शांत था। युवा, छात्र-छात्राएँ  BJP दफ्तर के बाहर जमा हो गये थे। लेकिन पुलिस ने जब उन्हें हटाने की कोशिश की तो गुस्सा भड़क उठा। पत्थरबाजी शुरू हुई, आंसू गैस छोड़ी गई। फिर आग लगी – BJP दफ्तर के फर्नीचर और कागजात जल गए, CRPF का वाहन फूंका गया, और लद्दाख ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल (LAHDC) की इमारत को नुकसान पहुँचा। पुलिस की गोलीबारी में चार लोग मारे गए, सत्तर से ज्यादा घायल हो गये। लेह में कर्फ्यू लग गया।
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इस हिंसक घटना की तह में जाने के बजाय बीजेपी राजनीतिक रूप से भुनाने में जुट गयी। BJP के IT सेल प्रमुख अमित मालवीय ने सोशल मीडिया पर एक मास्कधारी प्रदर्शनकारी की तस्वीर शेयर की, उसे कांग्रेस काउंसलर बताकर “नेपाल जैसी साजिश” का आरोप लगाया। लेकिन गृह मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से सोनम वांगचुक को जिम्मेदार ठहराते हुए बयान दिया कि – “उनके भड़काऊ भाषणों ने भीड़ को उकसाया। अरब स्प्रिंग और नेपाल का जिक्र कर वो भाग गये।”

Gen Z और नेपाल की छाया

यह सच है कि सोनम वांगचुक ने इसे “Gen Z रिवॉल्यूशन” कहा है। प्रदर्शन में 14-25 साल के युवा, छात्राएं और भिक्षु शामिल थे। सोनम ने कहा, “ये वो चेहरे हैं जो पहले कभी नहीं देखे। वे बुलेट से नहीं डरते। शांतिपूर्ण रास्ता काम न आया, तो गुस्सा फूटा।” X पर लोग इसे नेपाल के 2025 विद्रोह से जोड़ रहे हैं, जहां Gen Z ने संसद और सुप्रीम कोर्ट को आग लगाकर सरकार पलट दी थी। लेकिन सोनम ने हिंसा की निंदा की: “ये लद्दाख और मेरे लिए सबसे दुखद दिन है। पांच सालों से हमारा रास्ता शांतिपूर्ण था। आज हिंसा ने हमारा संदेश कमजोर किया।” उन्होंने अनशन खत्म कर दिया और अस्पताल में भर्ती हो गये।

सोनम वांगचुक: लद्दाख का प्रतीक

सोनम वांगचुक वही हैं जिन्हें आधार बनाकर आमिर ख़ान की फ़िल्म ‘3 इडियट्स’ के रैंचो का किरदार रचा गया था। सोनम एक इंजीनियर और पर्यावरण कार्यकर्ता हैं जो लद्दाख की जमीन और संस्कृति बचाने के लिए दशकों से लड़ रहे हैं। 

सोनम वांगचुक ने 2024 में 21 दिन का “क्लाइमेट फास्ट” किया, लेह से दिल्ली तक 1,000 किमी पैदल मार्च किया, और दिल्ली में लद्दाख भवन में अनशन किया, क्योंकि जंतर-मंतर की अनुमति नहीं मिली। उनकी मांगें हैं- पूर्ण राज्य, छठी अनुसूची और नौकरियों में आरक्षण।

हैरानी की बात है कि केंद्र ने अपने गिरेबान में झाँकने के बजाय हिंसा के लिए सोनम वांगचुक को ही ज़िम्मेदार ठहरा दिया है। यही नहीं, सीबीआई समेत कई केंद्रीय एजेंसियाँ सोनम के कामकाज की जाँच करने में जुट गयी हैं। ग़लत तरीक़े से विदेशी फंड लेने और उसके दुरुपयोग का उन पर आरोप लगाया जा रहा है। यह सरकार की बौखलाहट बताती है जो युवाओं के ग़ुस्से को और भड़का सकती है।

आंदोलन की जड़: पांच कारण

लद्दाख का गुस्सा अचानक नहीं भड़का। ये सालों की उपेक्षा का नतीजा है। पांच मुख्य कारण हैं:

पूर्ण राज्य का दर्जा: 2019 में अनुच्छेद 370 हटने पर लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। BJP ने वादा किया – पूर्ण राज्य और विधानसभा देंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। आज भी दिल्ली का कंट्रोल है, लेह-करगिल के लिए अलग लोकसभा सीटें भी नहीं।

छठी अनुसूची: ये संविधान का हिस्सा है, जो आदिवासी इलाकों को स्वायत्त परिषदें देता है। सारे फ़ैसले वही लेती हैं। लद्दाख में 97% आदिवासी हैं। लद्दाख के लोगों का कहना है कि छठवीं अनुसूची उनकी जमीन और संस्कृति बचा सकती है।

बेरोजगारी का दर्द: UT बनने से पहले लद्दाखी जम्मू-कश्मीर PSC के गजेटेड पदों के लिए आवेदन कर सकते थे। अब JKPSC का दायरा जम्मू-कश्मीर तक सीमित है। लद्दाख में PSC नहीं। नियुक्तियाँ हो नहीं रही हैं। बेरोजगारी 18% है ग्रेजुएट्स में 26% है।

पर्यावरण और संस्कृति: लद्दाख का हिमालय क्षेत्र बेहद नाजुक है। ग्लेशियर पिघल रहे, पर्यटन से कचरा और पानी की कमी बढ़ी।

केंद्र की उदासीनता: 2023 में हाई-पावर्ड कमिटी बनी, लेकिन बातचीत रुकी। 6 अक्टूबर को बातचीत की अगली तारीख़ है। तारीख पे तारीख़ से लोग तंग आ चुके।
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बेरोजगारी: सबसे बड़ा जख्म

2019 से पहले लद्दाखी जम्मू-कश्मीर पब्लिक सर्विस कमीशन (JKPSC) के जरिए गजेटेड पदों (DSP, लेक्चरर आदि) के लिए आवेदन कर सकते थे। अनुच्छेद 370 हटने के बाद JKPSC का दायरा जम्मू-कश्मीर तक सीमित हो गया। लद्दाख में डोमिसाइल सर्टिफिकेट लागू होने से JKPSC बंद। लद्दाख का अपना PSC नहीं बना, बड़ी तादाद में गज़डेट पद ख़ाली हैं और नॉन गज़टेड पदों पर को भी पूरी तरह भरा नहीं गया है।

लद्दाख का महत्व

लद्दाख 59,000 वर्ग किमी का ठंडा रेगिस्तान है, जहाँ ऊँचाई 9,000 से 25,000 फीट है। लेह बौद्ध बहुल, करगिल शिया मुस्लिम। पर्यटन (पांगोंग झील, नुब्रा वैली) इसका आर्थिक आधार, लेकिन बेरोजगारी और पानी की कमी बढ़ी। चीन और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से सटे होने के कारण इसका सामरिक महत्व भी काफ़ी है।
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मोदी सरकार की नाकामी?

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने लेह की घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “लद्दाख ने 2019 में UT बनने का जश्न मनाया, अब ठगा और आक्रोशित है। सोचिए, जम्मू-कश्मीर का क्या हाल होगा, जिसे राज्य का दर्जा देने का वादा अधूरा है।”  पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने बीजेपी दफ़्तर फूँकने पर कहा “ये वीडियो कश्मीर का नहीं, लद्दाख का है। 2019 के बाद क्या बदला, सरकार बताए?” 

BJP कहती है, “विकास हो रहा – सड़कें, बिजली बेहतर हुई है और हिंसा साजिश है।” लेकिन यह नहीं देखती कि उसके तमाम वादे अधूरे हैं – न राज्य का दर्जा मिला न छठीं अनुसूची लागू हुई। 

लद्दाख का आक्रोश पहचान, रोजगार और स्वायत्तता की पुकार है। केंद्र को संवेदनशील रवैया अपनाना होगा वरना ये आग और भड़क सकती है।