जेएनयू के छात्रसंघ चुनाव में वामपंथी पैनल की ज़बरदस्त जीत की पूरे देश में चर्चा है। मोदी सरकार बनने के बाद से ही यह विश्वविद्यालय और यहाँ के वामपंथी छात्रसंगठन लगातार सरकार के निशाने पर रहे हैं। इस विश्वविद्यालय को देशद्रोहियों के अड्डे के रूप में प्रचारित किया गया। मीडिया ने इसके लिए फ़र्ज़ी क़िस्से गढ़ने में कोताही नहीं बरती, लेकिन दमन के दास साल बाद, सारे सत्ता संरक्षण के बावजूद अगर जेएनयू के छात्रों ने आरएसएस के छात्रसंगठन एबीवीपी को नकारा और वामपंथी पैनल का समर्थन दिया तो यह सामान्य बात नहीं है।
RSS क्यों नहीं भेद पा रहा है जेएनयू का क़िला?
- विश्लेषण
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- 7 Nov, 2025


जेएनयू छात्र संघ चुनाव
जेएनयूएसयू चुनाव में लेफ्ट यूनिटी ने एक बार फिर जीत दर्ज की है, जबकि आरएसएस से जुड़ा एबीवीपी पिछड़ गया। आखिर क्यों जेएनयू में वामपंथी विचारधारा अब भी प्रभावी है और आरएसएस अपने राजनीतिक-वैचारिक एजेंडे को यहाँ स्थापित नहीं कर पा रहा?
छह नवंबर को आये रिज़ल्ट के मुताबिक़ आइसा यानी ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन की अदिति मिश्रा जेएनयू की अध्यक्ष चुनी गयी हैं। बनारस की रहने वाले अदिति मिश्रा जेएनयू के स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज से पीएचडी कर रही हैं। उपाध्यक्ष एसएफआई की के. गोपिका बाबू, जनरल सेक्रेटरीडी डीएसफ के सुनील यादव और जॉइंट सेक्रेटरी आइसा की दानिश अली चुनी गयीं। चारों ही विजेता प्रत्याशी जेएनयू से पीएचडी कर रहे हैं और चारों का शानदार शैक्षिक रिकॉर्ड रहा है। आइसा, एसएफआई और डीएसएफ ने मिलकर जिस लेफ़्ट यूनिटी पैनल को उतारा था, उसमें तीन छात्राओं का होना भी बहुत कुछ कहता है। वैसे भी जेएनयू में जीत के लिए एक ऐसा इम्तहान देना होता है जो बाक़ी जगह नज़र नहीं आता।








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