महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और कैबिनेट मंत्री छगन भुजबल के बीच आरक्षण को लेकर खिंची तलवार राज्य का राजनीतिक संतुलन बिगाड़ सकता है। सरकार ने मराठों को आरक्षण देने का रास्ता निकाला है लेकिन छगन भुजबल ने इसे ओबीसी समुदाय के साथ धोखा करार दिया है। सरकार ने मराठा आरक्षण के लिए जारी आंदोलन ख़त्म करने में जो कामयाबी पायी थी वह कैबिनेट मंत्री छगन के ‘भुज’बल को देखते हुए संकट में पड़ गयी है। इसी के साथ रोज़गार के सवाल को आरक्षण तक सीमित रखने की राजनीति की सीमा भी उजागर हो गयी है।

मराठा आरक्षण का विवाद

मुंबई के आजाद मैदान में मराठा आरक्षण आंदोलन ने महाराष्ट्र की राजनीति को हिला दिया था। मनोज जराँगे पाटिल इस मुद्दे को लेकर लगभग एक दशक से आंदोलन चला रहे हैं। मराठा समुदाय महाराष्ट्र की कुल आबादी का 32-33% हिस्सा है। उसके बीच ओबीसी आरक्षण का मुद्दा बड़ा हो चुका है। मनोज जरांगे पाटिल इस मुद्दे पर पाँच दिनों से अनशन पर थे। आख़िरकार सरकार ने 2 सितंबर को इस सिलसिले में हैदराबाद गजट को लागू करने का शासनादेश जारी कर दिया जिसके बाद पाटिल ने अपना अनशन ख़त्म कर दिया।

मराठा आरक्षण की मांग 1980 के दशक में अण्णासाहेब पाटील ने शुरू की थी। वैसे मराठा समुदाय को सामाजिक और आर्थिक रूप से प्रभावशाली माना जाता है। 1960 से अब तक महाराष्ट्र के 20 में से 12 मुख्यमंत्री मराठा रहे हैं। फिर भी, 2024 की महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (MSBCC) की रिपोर्ट बताती है कि 84% मराठा क्रीमी लेयर से बाहर हैं, और 21.22% गरीबी रेखा से नीचे हैं। ग्रामीण मराठा बेरोजगारी और आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, जिसके चलते वे आरक्षण को अपनी समस्याओं का समाधान मानते हैं।
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हालाँकि, मराठा आरक्षण का मुद्दा कानूनी और सामाजिक जटिलताओं से भरा है। सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में मराठा आरक्षण को असंवैधानिक ठहराया, क्योंकि यह 50% आरक्षण सीमा का उल्लंघन करता था और मराठा को पिछड़ा सिद्ध करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं थे। कोर्ट ने मराठा-कुनबी के एक होने के तर्क को भी खारिज कर दिया था, जिसके आधार पर मराठा OBC कोटे में शामिल होने की मांग करते हैं। कुनबी ओबीसी में आते हैं और उन्हें आरक्षण मिलता है।

हैदराबाद, सतारा, और औंध गजट

मराठा आरक्षण आंदोलन का एक प्रमुख आधार हैदराबाद, सतारा, और औंध गजट हैं। ये ऐतिहासिक दस्तावेज मराठा समुदाय को कुनबी के रूप में दर्ज करते हैं, जो OBC श्रेणी में शामिल है।

हैदराबाद गजट (1918): निज़ाम सरकार ने मराठवाड़ा के मराठों को "हिंदू मराठा" के रूप में दर्ज किया और उन्हें शिक्षा व नौकरियों में आरक्षण दिया। इस गजट में मराठा को कुनबी के रूप में वर्गीकृत किया गया।

सतारा गजट (1699-1947): सतारा रियासत के दस्तावेजों में मराठा और कुनबी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का उल्लेख है।

औंध गजट (1699-1947): औंध रियासत (अब सतारा जिले का हिस्सा) के रिकॉर्ड्स में मराठों को कुनबी के रूप में दर्ज किया गया।

2 सितंबर 2025 को फडणवीस सरकार ने हैदराबाद गजट को लागू करने का सरकारी आदेश (GR) जारी किया, जिसके तहत मराठवाड़ा के मराठों को कुनबी प्रमाणपत्र मिलेगा। सतारा और औंध गजट को लागू करने के लिए सरकार ने 1-2 महीने का समय मांगा है। इस फैसले से मराठा समुदाय को OBC के 27% कोटे में शामिल करने का रास्ता खुल सकता है, लेकिन OBC नेता इसे समुदाय के लिए नुक़सानदेह मान रहे हैं।

छगन भुजबल का विरोध

NCP (अजित पवार गुट) के वरिष्ठ नेता और येवला से विधायक, OBC में आने वाली माली जाति से आने वाले छगन भुजबल महाराष्ट्र सरकार में खाद्य व नागरिक आपूर्ति मंत्री हैं। उन्होंने मराठा आरक्षण के फैसले का कड़ा विरोध किया है। 3 सितंबर 2025 को भुजबल ने कैबिनेट बैठक और मुख्यमंत्री फडणवीस के रात्रिभोज का बहिष्कार किया। उन्होंने पत्रकारों से कहा:

“कुनबी प्रमाणपत्र जारी करने का अधिकार सरकार को किसने दिया? आप इन्हें नहीं दे सकते। पहले, शिंदे समिति को हैदराबाद गजट के रजिस्टर में मराठा-कुनबी नामों की जाँच के लिए नियुक्त किया गया था। इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा। लेकिन अब, नए आदेश में कहा गया है कि मराठों को कुनबी प्रमाणपत्र दिए जाएँ। यह कैसे हो सकता है? यह आदेश निश्चित रूप से OBC समुदाय को प्रभावित करेगा। मैं इस मामले में कानूनी सलाह लेने की प्रक्रिया में हूँ।”

भुजबल का कहना है कि OBC के 27% कोटे में मराठा को शामिल करना 346 OBC जातियों पर अन्याय है।

उन्होंने कहा कि “जाति जन्म से तय होती है, कागजों से नहीं,” और सुप्रीम कोर्ट ने भी मराठा-कुनबी एकता को खारिज किया है। भुजबल ने इस फैसले को कोर्ट में चुनौती देने और OBC आंदोलन शुरू करने की चेतावनी दी है।

OBC आरक्षण की स्थिति

महाराष्ट्र में OBC की आबादी मंडल आयोग (1980) के अनुमान के अनुसार 40-42% है, जो मराठा (32-33%) के बाद दूसरा सबसे बड़ा समूह है। OBC में 346 से अधिक जातियाँ शामिल हैं, जैसे कुनबी, माली, तेली, धनगर, वंजारी, और NT-DT जातियाँ। OBC को 27% आरक्षण मिलता है, लेकिन इसका बँटवारा इस प्रकार है:

10% NT-DT के लिए: इसमें NT-A (2.5%, जैसे वंजारी), NT-B (2.5%, जैसे लमान), NT-C (3.5%, जैसे धनगर), और NT-D (2%, जैसे काइकादी) शामिल हैं।
  • 2% गोवारी समुदाय के लिए।
  • 3% विशेष पिछड़ा वर्ग (SBC) और अन्य छोटे समूहों के लिए।
  • 12-14% अन्य OBC जातियों (जैसे कुणबी, माली, तेली) के लिए।
NT-DT (Nomadic Tribes - Denotified Tribes) में घुमंतू जनजातियाँ (जैसे धनगर, वंजारी) और विमुक्त जनजातियाँ (ब्रिटिश काल में "Criminal Tribes" के रूप में चिह्नित) शामिल हैं। धनगर समुदाय अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल होने की मांग कर रहा है, क्योंकि OBC कोटे में उन्हें पर्याप्त लाभ नहीं मिलता। मराठा को OBC कोटे में शामिल करने से छोटी OBC जातियों का हिस्सा और कम हो सकता है, जिससे असंतोष बढ़ रहा है।
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OBC का प्रभाव

OBC समुदाय, अपनी 40-42% आबादी के साथ, महाराष्ट्र की राजनीति में एक निर्णायक वोट बैंक है। इसका प्रभाव क्षेत्रीय स्तर पर भिन्न है:

पश्चिमी महाराष्ट्र: मराठा और धनगर (NT-C) का प्रभाव। धनगर ST में शामिल होने की मांग कर रहे हैं।

मराठवाड़ा और विदर्भ: कुनबी और अन्य OBC जातियाँ मजबूत हैं। हैदराबाद गजट के आधार पर मराठों को कुनबी प्रमाणपत्र देने का फैसला OBC की नाराजगी को बढ़ा रहा है।

मुंबई और कोंकण: OBC की आबादी कम है, लेकिन मराठा और अन्य समुदायों का प्रभाव अधिक है।

बीजेपी ने OBC को साधने के लिए स्वरोजगार और छात्रवृत्ति योजनाएँ लागू की हैं, लेकिन मराठा आरक्षण का मुद्दा इस संतुलन को बिगाड़ सकता है। 2024 के लोकसभा चुनावों में OBC की नाराजगी के कारण बीजेपी को कुछ सीटों पर नुकसान हुआ था।

महायुति गठबंधन (बीजेपी: 122 सीटें, शिवसेना-शिंदे: 40, NCP-अजित: 41) मजबूत है, लेकिन भुजबल का विरोध गठबंधन में दरार डाल सकता है। OBC और मराठा, दोनों बड़े वोट बैंक हैं, और इनके बीच संतुलन बनाना सरकार के लिए चुनौती है।

कोर्ट का रुख

मराठा आरक्षण का इतिहास कानूनी चुनौतियों से भरा है:
  • 1992 (इंदिरा साहनी फैसला): सुप्रीम कोर्ट ने 50% आरक्षण सीमा तय की।
  • 2014: पृथ्वीराज चव्हाण सरकार का 16% मराठा आरक्षण रद्द।
  • 2018: फडणवीस सरकार ने SEBC एक्ट के तहत 16% आरक्षण दिया, जिसे बॉम्बे हाई कोर्ट ने 12-13% तक घटाया।
  • 2021: सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को असंवैधानिक ठहराया।
  • 2024: MSBCC की रिपोर्ट के आधार पर 10% आरक्षण का विधेयक पारित, लेकिन यह भी कोर्ट में चुनौती का सामना कर सकता है।
हैदराबाद, सतारा, और औंध गजट के आधार पर मराठा को कुनबी प्रमाणपत्र देने का फैसला भी कानूनी जांच का सामना कर सकता है।
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सरकार के लिए संकट

फडणवीस सरकार ने मराठा समुदाय को राहत देने के लिए हैदराबाद गजट लागू किया और वंशावली समितियों का कार्यकाल जून 2026 तक बढ़ाया। OBC-मराठा तनाव को कम करने के लिए 6 सदस्यीय कैबिनेट उप-समिति बनाई गई है। लेकिन भुजबल का विरोध और कोर्ट में संभावित चुनौती सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है। भुजबल का NCP गुट गठबंधन का महत्वपूर्ण हिस्सा है, और उनकी नाराजगी महायुति की एकता को खतरे में डाल सकती है।

आरक्षण की सीमा

आरक्षण शासन-प्रशासन में सामाजिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया था। इसने भारत में एक अहिंसक क्रांति की भूमिका निभाई, लेकिन यह गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है। अगर रोजगार और गरीबी के सवाल आरक्षण से जोड़े जाते हैं, तो यह दर्शाता है कि सरकारें रोजगार सृजन में नाकाम रही हैं। सार्वजनिक क्षेत्र, जहाँ आरक्षण लागू है, लगातार सिकुड़ रहा है। आरक्षण के लिए लड़ने वालों को इस सिकुड़ते दायरे और निजीकरण के खतरे को भी ध्यान में रखना होगा।

मराठा आरक्षण का मुद्दा OBC की 40% आबादी, NT-DT के 10% हिस्से, और गजटों से उलझा हुआ है। छगन भुजबल का विरोध और कोर्ट की संभावित चुनौती महायुति सरकार के लिए संकट पैदा कर सकती है। क्या फडणवीस सरकार इस जटिल मुद्दे का स्थायी समाधान निकाल पाएगी? यह समय ही बताएगा।