मार्क कार्नी के नेतृत्व में लिबरल पार्टी ने चौथा कार्यकाल हासिल किया। लेकिन भारत-कनाडा संबंधों पर इस जीत का क्या असर पड़ेगा, उसका गहन विश्वेषण जरूरी है। जानिएः
मार्क कार्नी
जस्टिन ट्रूडो और नरेंद्र मोदी की तनातनी के कारण नाजुक दौर से गुजर रहे भारत कनाडा संबंधों के बीच मार्क कार्नी का उदय कुछ राहत और उम्मीदें लेकर आया है। कारण कई हैं। कारण कई हैं। सबसे बड़ा कारण यह कि कार्नी के भारत के साथ पहले से ही गहरे आर्थिक और व्यापारिक रिश्ते हैं—और ये कोई छोटे-मोटे नहीं, बल्कि $20 बिलियन (लगभग 1.6 लाख करोड़ रुपये) के निवेश के मोटे रिश्ते हैं।
जब पहलगाम में हाल के आतंकी हमले ने भारत-पाकिस्तान तनाव को युद्ध की कगार पर ला खड़ा किया है, और परमाणु शक्ति संपन्न दोनों देश ताल ठोक रहे हैं, कार्नी का भारत के प्रति दृष्टिकोण, उनकी रुचियां, और उनके आर्थिक संबंधों की पृष्ठभूमि को मौजूदा द्विपक्षीय और वैश्विक संदर्भों में जानना जरूरी है। खासकर तब जबकि पहलगाम आतंकी हमले के बाद परमाणु शक्ति संपन्न भारत-पाक जंग के लिए ताल ठोकते नज़र आ रहे हैं।
29 अप्रैल, 2025 को मार्क कार्नी का कनाडा के 24वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेना राहत और उम्मीद की किरण लेकर आया है। कार्नी की जीत ने जहां अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को झटका दिया, वहीं भारत ने राहत की सांस ली।
जस्टिन ट्रूडो और नरेंद्र मोदी के बीच तनातनी ने भारत-कनाडा संबंधों को नाजुक दौर में ला खड़ा किया था। 2023 में खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद कूटनीतिक तनाव चरम पर पहुंच गया था। कार्नी दोनों देशों के रिश्तों में आयी खटास मिटा सकते हैं, लेकिन भारत को कूटनीति की संवेदनशीलता और राजनय की मर्यादा के साथ चलना होगा। पुरानी गलतियों और झप्पी डिप्लोमेसी से बचना होगा।
माने जाने वाले मार्क कार्नी, जो बैंक ऑफ कनाडा (2008-2013) और बैंक ऑफ इंग्लैंड (2013-2020) के गवर्नर के रूप में अपनी गहरी छाप छोड़ चुके हैं, भारत के साथ गहरे स्तर पर जुड़े हैं। उनके नेतृत्व में ब्रूकफील्ड एसेट मैनेजमेंट ने 2020 से 2025 तक भारत में लगभग $20 बिलियन का निवेश किया। ये निवेश भारत के रियल एस्टेट, नवीकरणीय ऊर्जा, और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे क्षेत्रों में फैले हैं।
कुछ प्रमुख सौदे इस प्रकार हैं:
हालांकि, गौतम अडानी के साथ ब्रूकफील्ड की कोई पुष्ट डील सामने नहीं आई है। 2023 में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग की अटकलें थीं, लेकिन कोई ठोस समझौता नहीं हुआ।
कार्नी का भारत के साथ जुड़ाव सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक भी है। अप्रैल 2025 में, चुनाव प्रचार के दौरान, उन्होंने टोरंटो में राम नवमी उत्सव में हिस्सा लिया। मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद, उन्होंने भारतीय संस्कृति को "विविधता और समावेशिता का प्रतीक" बताया। यह कदम न केवल भारतीय-कनाडाई समुदाय के बीच उनकी स्वीकार्यता को दर्शाता है, बल्कि ट्रूडो की खालिस्तान-समर्थक छवि से दूरी बनाने की उनकी कोशिश को भी उजागर करता है।
कार्नी ने भारत को बार-बार एक उभरती आर्थिक शक्ति के रूप में सराहा है। 2020 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के दौरान कार्नी ने कहा था, "भारत ने सौर और पवन ऊर्जा में जो प्रगति की है, वह वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के लिए प्रेरणादायक है। कनाडा को भारत के साथ इस क्षेत्र में सहयोग बढ़ाना चाहिए।"
इसी तरह 2024 में लिबरल पार्टी टास्कफोर्स की बैठक में कार्नी ने कहा कि "भारत, अपनी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और तकनीकी नवाचार के साथ, कनाडा के लिए एक आदर्श साझेदार है। हमें अमेरिका पर निर्भरता कम करनी होगी।" इसी साल 2025 में कैलगरी के साथ एक साक्षात्कार में कार्नी ने कहा कि "कनाडा को भारत जैसे समान विचारधारा वाले लोकतांत्रिक देशों के साथ व्यापार और रणनीतिक साझेदारी को प्राथमिकता देनी चाहिए।"
ये बयान दर्शाते हैं कि कार्नी भारत को न केवल आर्थिक, बल्कि रणनीतिक साझेदार के रूप में देखते हैं। उनकी नीतियां व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) को पुनर्जनन करने और कृत्रिम बुद्धिमत्ता, फिनटेक, और उच्च शिक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर केंद्रित हैं।
पहलगाम में हाल के आतंकी हमले, जिसमें 27 नागरिक मारे गए, ने भारत-पाकिस्तान को युद्ध की कगार पर ला खड़ा किया है। भारत ने पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समूहों को जिम्मेदार ठहराया है। कुल मिलाकर परमाणु शक्ति संपन्न दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर है। कार्नी ने इस हमले पर अभी तक कोई सीधा बयान नहीं दिया, लेकिन उनकी आतंकवाद विरोधी नीतियां भारत के हितों के अनुरूप हैं।
2019 में, बैंक ऑफ इंग्लैंड के गवर्नर के रूप में, कार्नी ने कहा था, "आतंकवाद वैश्विक अर्थव्यवस्था और शांति के लिए खतरा है। सभी देशों को इसके खिलाफ एकजुट होना चाहिए।" यह बयान भारत की जीरो-टॉलरेंस नीति से मेल खाता है। कनाडा में खालिस्तान समर्थक समूहों का प्रभाव कार्नी के लिए चुनौती है।
ट्रूडो के विपरीत, जिन्हें भारत ने खालिस्तान समर्थकों के प्रति नरम रुख के लिए आलोचना की, कार्नी ने सावधानी बरती है। 2024 में, उन्होंने कहा, "कनाडा की नीतियां राष्ट्रीय सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर आधारित होंगी, न कि विभाजनकारी तत्वों पर।" इससे साफ है कि वे खालिस्तान समर्थक गतिविधियों को भारत के खिलाफ इस्तेमाल होने से रोकने की कोशिश करेंगे।
ट्रूडो के कार्यकाल में भारत-कनाडा संबंध कई विवादों से जूझे। 2018 में ट्रूडो की भारत यात्रा, जिसमें खालिस्तान समर्थक तत्वों के साथ उनकी कथित नजदीकी को लेकर विवाद हुआ, ने भारत को नाराज किया। 2023 में निज्जर की हत्या के बाद ट्रूडो के भारत पर गंभीर आरोपों ने कूटनीतिक संकट को गहरा दिया। भारत ने जवाब में 41 कनाडाई राजनयिकों को निष्कासित किया, और CEPA वार्ताएं ठप हो गईं।
कार्नी ने इन तनावों को कम करने की इच्छा जताई है। नरेंद्र मोदी ने उनकी जीत पर बधाई देते हुए कहा, "भारत और कनाडा साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और लोगों के बीच मजबूत संबंधों से बंधे हैं। मैं कार्नी के साथ साझेदारी मजबूत करने के लिए उत्सुक हूं।" यह संदेश सकारात्मक कूटनीति की ओर इशारा करता है।
कार्नी और मोदी के बीच किसी व्यक्तिगत मुलाकात, संबंध या निजी दोस्ती की जानकारी का कोई रिकॉर्ड ज्ञात नहीं है। लेकिन ट्रूडो से टूटे मोदी को कार्नी का साथ जरूर चाहिए होगा।
इसलिए भी कि मौजूदा परिस्थितियों में कनाडा और भारत दोनों ही देश अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की बेतुकी नीतियों के शिकार हो रहे हैं। ऐसे में कार्नी की जीत ने डोनाल्ड ट्रम्प को झटका दिया है, जो अपनी 25% आयात शुल्क नीति के साथ कनाडा को दबाव में लाना चाहते थे। कार्नी ने जवाबी शुल्क की घोषणा करते हुए कहा, "कनाडा कभी अमेरिका का हिस्सा नहीं होगा।"
उनकी यह दृढ़ता भारत के लिए प्रासंगिक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कार्नी से हिम्मत और साहस मिल सकता है। खासकर तब जबकि भारत अपनी रक्षा और ऊर्जा नीतियों में स्वतंत्रता की ओर बढ़ रहा है।
मार्क कार्नी के भारत से गहरे आर्थिक रिश्तों की तुलना में ट्रम्प का भारत में निवेश सीमित है। कार्नी जहां भारत में $20 बिलियन का आर्थिक निवेश करा चुके हैं, भले ही इसमें उनका निजी निवेश न हो, लेकिन ट्रम्प ऑर्गनाइजेशन ने 2014 से 2025 तक ट्रम्प टावर्स ब्रांड के तहत $1.5 बिलियन (लगभग 12,000 करोड़ रुपये) की रियल एस्टेट परियोजनाएं शुरू कीं, जो मुख्य रूप से लाइसेंसिंग पर आधारित हैं।
जबकि अन्य राष्ट्राध्यक्षों, जैसे जो बाइडेन, शिंजो आबे, या इमैनुएल मैक्रों का कोई व्यक्तिगत निवेश नहीं है, लेकिन उनके प्रशासनों ने भारत में अरबों डॉलर के निवेश को बढ़ावा दिया।
मार्क कार्नी का भारत के साथ सांस्कृतिक जुड़ाव भी रहा है। जैसे राम नवमी उत्सव में भागीदारी और भारतीय छात्रों के साथ संवाद—उनके सकारात्मक दृष्टिकोण को दर्शाता है। कनाडा में 1.8 मिलियन भारतीय मूल के लोग और 427,000 भारतीय छात्र दोनों देशों के बीच सेतु हैं। कार्नी की आप्रवास और व्यापार नीतियां इन संबंधों को और मजबूत कर सकती हैं।
पहलगाम हमले और भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच, कार्नी की आतंकवाद विरोधी नीतियां और क्षेत्रीय स्थिरता पर जोर भारत के लिए महत्वपूर्ण है। उनकी कूटनीतिक सूझबूझ और आर्थिक विशेषज्ञता भारत-कनाडा संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकती है, बशर्ते वे कनाडा में खालिस्तान समर्थक समूहों के प्रभाव को नियंत्रित करें।
तो इन संदर्भों के संकेत साफ हैं कि मार्क कार्नी भारत-कनाडा संबंधों को वापस पटरी पर लाने में सक्षम हैं। ट्रूडो-मोदी की खटास को मिटाने की उनकी क्षमता उनके $20 बिलियन के निवेश, भारत के प्रति सांस्कृतिक संवेदनशीलता, और आतंकवाद विरोधी रुख पर टिकी है। ट्रम्प के सामने उनकी दृढ़ता और भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी की इच्छा वैश्विक मंच पर उनकी विश्वसनीयता को बढ़ाती है।
जब भारत-पाकिस्तान युद्ध के कगार पर खड़े हैं, तो कनाडा में कार्नी का नेतृत्व न केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत कर सकता है, बल्कि वैश्विक स्थिरता में भी योगदान दे सकता है।
भारत नहीं भूल सकता कि उसे पहला परमाणु रिएक्टर देने वाला कनाडा ही है, जिसके बल पर आज भारत परमाणु शक्ति संपन्न देश है।
साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और ऐतिहासिक सहयोग से बंधे भारत और कनाडा, कार्नी के नेतृत्व में एक नया अध्याय शुरू कर सकते हैं, बशर्ते प्रधानमंत्री मोदी कनाडा के साथ कूटनीति को डिप्लोमेसी की संवेदनशीलता और राजनयिकों के कौशल के साथ आगे बढ़ने दें।