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तिल का ताड़ बनाना कोई मोदी जी से सीखे

जब कोई व्यक्ति पहली बार ग़लती करता है तो उसे चूक या नासमझी मानकर इग्नोर किया जा सकता है। लेकिन यदि वह बार-बार वही ग़लती दोहराए तो समझना चाहिए कि वह उसकी फ़ितरत है या फिर जानबूझकर ऐसा कर रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी के साथ भी ऐसा ही है। हाल में बंगाल की एक रैली में ममता बनर्जी ने कहा कि प्रधानमंत्री हमारे बारे में जिस तरह की बातें करते हैं कि मैं उनको लोकतंत्र का झन्नाटेदार थप्पड़ मारना चाहती हूँ। (देखें ममता का वीडियो) निश्चित रूप से उनका मतलब यह था कि चुनावी नतीजों के मार्फ़त वह मोदी के आरोपों का जवाब देना चाहती हैं।

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लेकिन मोदी ने ममता के ‘लोकतंत्र के थप्पड़’ को 'दीदी का थप्पड़' बना दिया और कह दिया कि दीदी का थप्पड़ उनके लिए आशीर्वाद की तरह होगा। बात मीडिया में इस तरह फैली कि ममता को बाद में स्पष्टीकरण देना पड़ा कि उन्होंने मोदी को थप्पड़ मारने की बात नहीं कही थी। उनकी बात सच भी है। यदि वीडियो सुनेंगे तो आपको बाँग्ला नहीं भी आती होगी तो 'लोकतंत्रेर थाप्पड़' सुन सकते हैं।

लेकिन मोदी यह पहली बार नहीं कर रहे हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों में प्रियंका गाँधी ने कहा था कि अमेठी का एक-एक बूथ मोदी की ‘नीच राजनीति’ का बदला लेगा। मोदी इतने नादान नहीं है कि 'नीच राजनीति' और 'नीच व्यक्ति' में अंतर नहीं समझते हों लेकिन वहाँ भी उन्होंने खेल कर दिया और कहा कि कांग्रेस उनको नीच कहती है क्योंकि वे नीची जाति के हैं। ‘क्या नीची जाति का होना कोई अपराध है?’ मोदी ने रैली में लोगों से पूछा।

लालू, ‘शैतान’ और मोदी

इसी तरह बिहार के पिछले विधानसभा चुनाव में लालू ने बीफ़ के बारे में किसी पत्रकार के सावल पर एक विवादास्पद बयान दे दिया था कि जिसको जो खाना हो, खाए। इख़लाक हत्या तब का ताज़ा-ताज़ा मामला था। लालू के इस जवाब को मोदी और बीजेपी ने ख़ूब उछाला कि गौवंश के रखवालों का प्रतिनिधि ऐसी बात बोल रहा है। बाद में लालू ने इस बयान का खंडन करते हुए कहा कि ‘यह कोई शैतान आदमी ही है जो यह बात मेरे मुँह में डालकर चला रहा है।’ साफ़-साफ़ है कि वे मीडिया या पत्रकार को शैतान बता रहे थे। (देखें लालू का वीडियो)

अब देखिए, मोदीजी ने इस बात को कैसा घुमा दिया। लालू ने पत्रकार को शैतान कहा था और मोदी ने इसको इस तरह पेश किया मानो लालू कह रहे हो कि उनके अंदर घुसे शैतान ने उनसे ऐसा बुलवाया है। उन्होंने पूछा, ‘यह शैतान आपके ही अंदर क्यों घुसा? किसी और के अंदर क्यों नहीं घुसा?’

मोदी की क्या है रणनीति?

मोदी ऐसा क्यों करते हैं? क्या वे विपक्षियों के भाषणों को ठीक से नहीं सुनते-पढ़ते? या क्या उनके सहायक उनको ग़लत जानकारी देते हैं? दोनों ही बातें संभव नहीं है। दरअसल मोदी जानते हैं कि जो लोग उनको भाषण सुनने आते हैं या टीवी पर देख रहे होते हैं, वे यह पता नहीं करने जाएँगे कि ममता ने बाँग्ला में ठीक-ठीक क्या कहा है या प्रियंका या लालू ने ठीक-ठीक क्या कहा था। उनको पता है कि उनके सामने जो भीड़ है, और उनके भक्त-प्रशंसक जो टीवी पर उनको देख-सुन रहे हैं, वे उनकी बातों को ब्रह्मवाक्य मान लेंगे। यदि मोदी कहते हैं कि ममता ने उनको थप्पड़ मारने की इच्छा जताई है तो वे सही ही कह रहे हैं। यदि मोदी कह रहे हैं कि प्रियंका ने उनको नीच कहा है तो अवश्य ही कहा होगा। यदि मोदी कह रहे हैं कि लालू ने माना कि उनके अंदर शैतान रहता है तो मोदी ठीक ही कह रहे होंगे। यदि मोदी कह रहे हैं कि लालू ने कहा है कि यादव बीफ़ खाते हैं तो लालू ने कहा ही होगा।

जैसे कि ऊपर कहा, यदि कोई एक बार ग़लती करे तो उसे चूक माना जा सकता है। लेकिन जब बार-बार करे… जैसा कि उस गधे ने किया था जो जानबूझकर नदी में लुढ़क जाता था तो मानना पड़ेगा कि वह जानबूझकर ऐसा कर रहा है।

विश्लेषण से ख़ास

आइए, गधे की कहानी सुनें

गधे की कहानी याद नहीं है? चलिए, जाते-जाते सुना देता हूँ। एक गधे का मालिक नमक का व्यापार करता था और हर हफ़्ते नमक की बोरी उसपर लादकर बाज़ार जाता था। रास्ते में एक नदी पड़ती थी जिससे होकर दोनों को गुज़रना होता था। एक दिन गधे को नदी पार करते हुए ठोकर लगी और वह गिर पड़ा। गिरने से काफ़ी नमक पानी में घुल गया और जब वह उठा तो पाया कि बोरी तो हल्की हो गई है। उसने सोचा कि यह तो बहुत बढ़िया है। अगले सप्ताह फिर उसे बाज़ार जाना था तो वह फिर लुढ़क गया। जब दो-तीन बार ऐसा हुआ तो मालिक समझ गया कि यह जानबूझकर गिरता है। अगली बार उसने नमक की जगह रूई लाद दी। गधा इस बार भी योजना के अनुसार जानबूझकर गिर गया लेकिन चूँकि इस बार नमक नहीं, रुई थी सो बोझ हल्का होने के बजाय बढ़ गया। यानी लेने के देने पड़े।

अब अगर मोदी इस टिप्पणी को पढ़ें तो निश्चित तौर पर मुझपर यह आरोप मढ़ देंगे कि मैंने उनको गधा कहा है जबकि आप जानते हैं कि मैंने केवल मिसाल दी है। लेकिन मोदी हैं तो मुमकिन है।

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नीरेंद्र नागर
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