नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी ने हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर जो रहस्योद्घाटन किया है, उसके बाद हरियाणा ही नहीं, बीजेपी की कई राज्य सरकारों और केंद्र की सरकार के वैध होने पर संदेह पैदा हो गया है। ये साफ़ हुआ है कि चुनाव आयोग के सिस्टम के बाहर भी कोई सिस्टम है जो मतदाता सूची को घटाने-बढ़ाने का खेल कर रहा है। चुनाव आयोग के पास डुप्लीकेट वोटर को पकड़ने का सॉफ्टवेयर है लेकिन उसका इस्तेमाल ही नहीं किया जाता। ऐसे में चुनाव आयोग को स्वतंत्र संवैधानिक संस्था की जगह सरकार की पिट्ठू संस्था के रूप में देखा जाना स्वाभाविक है। हैरानी की बात ये है कि राहुल गाँधी के आरोपों का बिंदुवार जवाब देने के बजाय आयोग ‘सूत्रबाज़ी ‘कर रहा है। ऐसे में सवाल है कि क्या भारत अब भी वास्तविक लोकतंत्र है या मोदी राज ने इसे ‘निर्वाचित तानाशाही’ में बदल दिया है जहाँ चुनाव तो होते हैं लेकिन नतीजे नियंत्रित रहते हैं।

25 लाख फर्जी वोट!

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी ने 5 नवंबर 2025 को दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आख़िरकार बहुप्रतीक्षित 'हाइड्रोजन बम' फोड़ दिया। उनके आरोप बताते हैं कि हरियाणा विधानसभा के पिछले चुनाव में बड़े पैमाने पर हेराफेरी हुई।
  • 25 लाख फर्जी वोट: कुल 2 करोड़ वोटरों का 12.5%।
  • डुप्लीकेट वोटर: 5,21,619 नाम दोहराए गए।
  • अमान्य एड्रेस: 93,174 वोटरों के पते गलत या असंभव (जैसे 'हाउस नंबर 0'—ट्रैकिंग से बचने की तरकीब)।
  • बल्क वोटिंग: 19,26,351 वोटर एक साथ जोड़े गए। एक ब्राजीलियन मॉडल की फोटो को 'सीमा', 'स्वीटी', 'सरस्वती' जैसे नामों से 223 बार इस्तेमाल किया गया।
राहुल ने कहा कि इससे कांग्रेस की भारी जीत को उलट दिया गया। यह 'ऑपरेशन सरकार चोरी' का हिस्सा है। उन्होंने चुनाव आयोग (ECI) पर बीजेपी के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया और CEC ज्ञानेश कुमार पर सीधा हमला किया—कहा कि वे 'लोकतंत्र के विनाशकर्ताओं' को संरक्षण दे रहे हैं।
राहुल ने हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की वो वीडियो क्लिप भी दिखाई, जिसमें वे एक्ज़िट पोल के उलट बीजेपी की जीत की 'पूरी व्यवस्था' होने का दावा कर रहे थे। क्या यह ‘व्यवस्था’ फ़र्ज़ी वोटिंग की थी जिसकी वजह से सैनी आश्वस्त थे?

यह पहली बार नहीं है कि राहुल ने वोट चोरी का गंभीर आरोप लगाया है। इससे पहले:
  • महादेवपुरा (कर्नाटक, 2024 लोकसभा): 1 लाख फर्जी वोट जोड़े गए, बीजेपी को 32,707 वोटों का फायदा।
  • अलंद (कर्नाटक): 6,018 वोटरों को टारगेटेड डिलीशन से हटाने की कोशिश, सेंट्रलाइज्ड सॉफ्टवेयर से बाहर के मोबाइल नंबरों से।
  • महाराष्ट्र और बिहार: SIR में चुनिंदा डिलीशन—दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक प्रभावित।
  • अन्य आरोप: ECI ने फॉर्म 6 (नए वोटर जोड़ना) और फॉर्म 7 (डिलीट) का दुरुपयोग किया; CCTV फुटेज नष्ट की; वोटर लिस्ट डिजिटल रूप में नहीं दी।
हैरानी की बात है कि ये गड़बड़ियाँ कंप्यूटर के एक क्लिक से दूर की जा सकती थीं। ECI के पास 2016 से ही डुप्लीकेट वोटर पकड़ने वाला सॉफ्टवेयर है। लेकिन आयोग ऐसा नहीं कर रहा। आख़िर क्यों?

चुनाव आयोग की सूत्रबाज़ी

राहुल गाँधी सिर्फ़ कांग्रेस के नहीं, लोकसभा में सारे विपक्ष के नेता हैं—यानी देश के साठ फ़ीसदी से ज़्यादा मतदाताओं की ओर से सवाल कर रहे हैं। लेकिन चुनाव आयोग चुप है। पिछली बार भी शुरुआत में उसने सूत्रों के हवाले से जवाब दिया था और इस बार भी वही। 

आख़िर आयोग को डर किस बात का है? वह प्वाइंट बाई प्वाइंट जवाब क्यों नहीं देता? फ़र्ज़ी वोटर कैसे जुड़ गए? किसने जोड़े? डुप्लीकेट सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल क्यों नहीं किया?

इसके बजाय, उसके सूत्रों ने एक हास्यास्पद सवाल किया, "कांग्रेस के पोलिंग एजेंट मतदान केंद्रों पर क्या कर रहे थे? उन्होंने तभी आपत्ति क्यों नहीं जताई?”

यानी सारी ज़िम्मेदारी बूथ एजेंटों की। ये कुछ ऐसा ही है कि घर में चोरी हो और पुलिस कहे—ताला क्यों नहीं लगाया? और चुनाव तो हर तरह की पार्टी लड़ती है। कई नई पार्टियाँ होती हैं जिनका बूथ एजेंट हर जगह नहीं होता। तो क्या उनके वोट लूट लिए जाएँगे?

चुनाव आयोग की यही सूत्रबाज़ी उसकी साख गिरा रही है। इमरजेंसी के दौरान भी उसकी साख इतनी नहीं गिरी थी। इंदिरा गाँधी पर तानाशाही के आरोप लगे, लेकिन उन्होंने निष्पक्ष चुनाव की घोषणा की और आयोग ने अपनी स्वतंत्रता साबित की। इंदिरा हार गईं, जनता पार्टी की सरकार बनी।

लेकिन ज्ञानेश कुमार को लगता है कि वे भारत के नहीं, भारत सरकार के चुनाव आयुक्त हैं।

सरकार और आयोग की मिलीभगत

सरकार और चुनाव आयोग ने बीते कुछ सालों में ऐसे कदम उठाए हैं जिन्होंने संदेह बढ़ाया है:
  • 2 मार्च 2023: सुप्रीम कोर्ट ने अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ मामले में कहा—नया कानून बनने तक CEC की चयन समिति में PM, LoP, CJI हों।
  • दिसंबर 2023: नया कानून बना—समिति में प्रधानमंत्री (अध्यक्ष), LoP, और PM द्वारा नामित मंत्री। CJI बाहर।
  • 9 दिसंबर 2024: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने महमूद प्राचा बनाम ECI मामले में हरियाणा चुनावों के CCTV फुटेज, वीडियोग्राफी, फॉर्म 17C देने का आदेश दिया।
  • 21 दिसंबर 2024: ठीक 12 दिन बाद, ECI की सिफारिश पर सरकार ने कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स, 1961 की रूल 93(2)(a) में संशोधन किया। इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड (CCTV, वीडियो) को "चुनावी दस्तावेज़" से बाहर किया।
पहले चुनाव से जुड़े दस्तावेज़ों और प्रमाणों को 3 महीने से 1 साल तक रखना होता था लेकिन नये नियम के तहत केवल 45 दिन ही रखे जाते हैं। अगर कोई याचिका न हो तो नष्ट कर दिये जाते हैं।

ये बदलाव साफ़ बताते हैं कि कुछ छिपाने की कोशिश हो रही है। हरियाणा चुनाव को लेकर बरती गयी ये सतर्कता दर्शाती है कि आयोग को क्या डर था। राहुल के रहस्योद्घाटन के बाद साफ़ हो गया कि दाल में कुछ काला नहीं, पूरी दाल ही काली थी।

दंडहीनता का कवच

मोदी सरकार को डर था कि कभी यह षड्यंत्र उजागर हो सकता है। इसलिए चुनाव आयुक्तों को भविष्य में भी दंड से बचाने का पूरा इंतज़ाम किया गया।

चीफ इलेक्शन कमिश्नर एंड अदर इलेक्शन कमिश्नर (अपॉइंटमेंट, कंडीशंस ऑफ सर्विस एंड टर्म ऑफ ऑफिस) एक्ट, 2023 के  क्लॉज़ 16 में कहा गया है कि आयुक्तों के खिलाफ सेवाकाल या सेवानिवृत्ति के बाद भी कार्यकाल के किसी फ़ैसले के लिए कोर्ट में मुकदमा नहीं चल सकता।

यह दंडहीनता पहले नहीं थी। ऐसी सुविधा प्रधानमंत्री को भी नहीं। क्या सरकार आयुक्तों को बता रही है कि चाहे जो करो, कितनी भी गड़बड़ी कराओ, कभी सज़ा नहीं होगी?

संविधान सभा का सपना

आजादी के बाद भारत ने ऐतिहासिक कदम उठाया—18 साल से ऊपर के हर नागरिक को वोट का अधिकार। संविधान सभा में गर्मागर्म बहस हुई। कुछ सदस्यों का मानना था कि मतदाता के लिए अनिवार्य न्यूनतम शिक्षा का स्तर तय किया जाये। लेकिन जवाहरलाल नेहरू ने कहा:

“लोकतंत्र की ताकत हर नागरिक की भागीदारी में है, चाहे वह पढ़ा-लिखा हो या नहीं। आजादी की लड़ाई में अनपढ़ और गरीब लोगों ने सबसे ज़्यादा कुर्बानी दी।”

डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने इसे सामाजिक समानता का हथियार बताया। 26 जनवरी 1950 को लागू संविधान ने सभी वयस्कों को बिना शर्त मतदान का अधिकार दिया।

भारत का पहला आम चुनाव (1951-52) दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक प्रयोग था। सुकुमार सेन, पहले मुख्य चुनाव आयुक्त, ने इसे संभव बनाया।  पहले चुनाव में 17.3 करोड़ मतदाता थे जिनमें 85% निरक्षर थे। आयोग के कर्मचारियों ने गाँव-गाँव जाकर मतदाता सूची तैयार की। 45% मतदान हुआ जो उस समय की परिस्थितियों में बड़ी उपलब्धि थी।

आयोग ने कोशिश की कि किसी का नाम न छूटे। कोई दस्तावेज नहीं माँगा। यह मौजूदा SIR की भावना के बिल्कुल उलट है, जहाँ लोगों पर ज़िम्मेदारी डाली गई कि वे खुद को साबित करें। नतीजा—बिहार से 65 लाख नाम कटे। इनमें ऐसे लोग भी कम नहीं जो अपनी बदहाली की वजह से दस्तावेज़ नहीं दे पाये।

दुनिया की नज़र में भारत

मोदी सरकार और बीजेपी भारत के लोकतंत्र पर उठ रहे सवालों पर बिदकने लगती है। लेकिन दुनिया के सामने अब यह लोकतंत्र के नष्ट होने का स्पष्ट मामला है। इस संदर्भ में शोध करने वाली संस्थाओं का स्पष्ट मानना है कि भारत में लोकतंत्र खतरे में है।

Economist Intelligence Unit (EIU) Democracy Index 2024:
  • भारत की रैंक: 41वीं (2014 में 27वीं)
  • स्कोर: 7.18 (फ्लॉड डेमोक्रेसी)
  • कुल देश: 167
V-Dem Institute Democracy Report 2024:
  • भारत को "electoral autocracy" कहा।
  • रैंक: 100वाँ (179 देशों में)
  • "closed autocracy" बनने के करीब।
इसका मतलब—भारत में चुनाव होते हैं, लेकिन नियंत्रित और प्रभावित। लोकतंत्र त्रुटिपूर्ण है।

राहुल ने चेताया

राहुल गाँधी जो कह रहे हैं, वह दुनिया के शोध संस्थान पहले से कह रहे हैं। जो काम मीडिया करता था—फ़र्ज़ी वोटर, डुप्लीकेट वोटर पर ख़बरें—अब नेता प्रतिपक्ष कर रहे हैं। लेकिन मीडिया का बड़ा हिस्सा सवालों से ध्यान भटका रहा है।

बीजेपी के ही पूर्व केंद्रीय मंत्री आर.के.सिंह ने बिहार में 62 हज़ार करोड़ का घोटाला बताया—उस चैनल ने ख़बर ग़ायब कर दी जिसने इंटरव्यू दिखाया था। फ्लॉड डेमोक्रेसी और क्या होती है?

डॉ. आंबेडकर ने कहा था:

“संविधान कितना भी अच्छा हो, अगर उसे चलाने वाले बुरे हों, तो वो बुरा हो जाएगा।”

आज हम उनकी आशंका को सही होते देख रहे हैं। संविधान के ही प्रावधानों का इस्तेमाल कर भारत को निर्वाचित तानाशाही में बदल दिया गया है।

भारत को इस दुर्दशा से बचाना केवल राहुल गाँधी की ज़िम्मेदारी नहीं है। जनाकांक्षाओं के अनुरूप सरकारें न बनीं तो इस देश के नागरिकों का होगा। यह बात जितनी जल्दी समझ ली जाये, उतना अच्छा है।