बात 1977 की है। इमरजेंसी के बाद हुए लोक सभा चुनाव में  कांग्रेस बुरी तरह पराजित हो गयी। इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा। जनता पार्टी के मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री और चौधरी चरण सिंह उप प्रधानमंत्री बने। 19 75 से 19 77 के बीच अपात काल में हुए सरकारी अत्याचार को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ कार्रवाई का दबाव बढ़ रहा था। इस बीच 2 अक्टूबर 1977 को सी बी आई ने जीप घोटाला नाम से चर्चित एक कांड में इंदिरा गांधी के खिलाफ एफ आई आर दर्ज कर लिया। सी बी आई के अधिकारियों ने 3 अक्टूबर को इस मामले में इंदिरा गांधी को गिरफ्तार करने की जिम्मेदारी आई पी एस अधिकारी एन के सिंह को सौंप दी। एन के सिंह सी बी आई के कुछ अधिकारियों के साथ शाम 5 बजे इंदिरा गांधी के नयी दिल्ली स्थित आवास 12 विलिंग्डन क्रिसेंट पहुंचे। इंदिरा गांधी वहाँ अपने पुत्र राजीव गांधी संजय गांधी और सचिव आर के धवन के साथ मौजूद थीं। 
एन के सिंह ने इंदिरा गांधी से मिलने की बात की तो आर के धवन ने उन्हें थोड़ी देर इंतजार करने के लिए कहा। एन के सिंह अपनी किताब “ द होल ट्रूथ: सी बी आई टॉप कॉप स्पीक्स “ में लिखते हैं कि संभवतः इंदिरा गांधी समझ गयी थीं कि उन्हें गिरफ़्तार किया जा सकता है। इसलिए उन्हें काफ़ी देर तक इंतज़ार कराया गया। इस बीच उन्होंने संजय गांधी को युवा कांग्रेस के कई नेताओं को फ़ोन करते सुना। आख़िरकार करीब साढ़े 8 बजे इंदिरा गांधी उनसे मिलीं। एन के सिंह ने उन्हें एफ आई आर की जानकारी दी और गिरफ़्तार करने की बात बतायी। इंदिरा गांधी तीखे स्वर में कहा “ क्या चौधरी चरण सिंह की तरफ़ से हथकड़ी भी लाए हो “ 

इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी के बाद फ़रीदाबाद में ड्रामा 

थोड़ी ही देर में इंदिरा गांधी के आवास के पास कांग्रेस और युवा कांग्रेस के काफ़ी कार्यकर्ता जमा हो गए। बहुत मुश्किल से इंदिरा गांधी को सी बी आई की गाड़ी में बैठाया गया। उन्हें दिल्ली से सटे फरीदाबाद के बड़खल गेस्ट हाउस में ले जाना था। सी बी आई की गाड़ी के पीछे एक गाड़ी में राजीव गांधी और सोनिया गांधी तथा दूसरी में संजय और मेनका गांधी के साथ कांग्रेस कार्यकर्ता कई गाड़ियों में चल पड़े। रास्ते में रेल का फाटक बंद मिला तो कारवां रुक गया। इंदिरा गांधी गाड़ी से उतरकर एक पुलिया पर बैठ गयीं। 

मजिस्ट्रेट ने रिहा किया तो एनके सिंह घर पहुंचाने गए

संजय गांधी के समर्थकों ने इंदिरा गांधी को दिल्ली से बाहर ले जाने पर एतराज शुरू कर दिया। उन्होंने एक पुलिस अधिकारी और पायलट कार के ड्राइवर के साथ मार पीट भी की। बाद में सी बी आई ने उन्हें दिल्ली के किंग्स वे कैम्प पुलिस मुख्यालय के गेस्ट हाउस रखने का फैसला किया। एन के सिंह ने अगले दिन इंदिरा गांधी को पार्लियामेंट स्ट्रीट पर चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश किया। अदालत ने इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ सबूत मांगा। सी बी आई उस समय सबूत पेश नहीं कर पायी तो मजिस्ट्रेट ने उन्हें रिहा कर दिया। एन के सिंह ने उन्हें घर छोड़ दिया।

1980 में कांग्रेस की वापसी के बाद एन के सिंह की मुसीबत शुरू हुई 

इंदिरा गांधी ने ख़ुद माना कि पूर्व उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह के दबाव पर गिरफ़्तार किया गया था। लेकिन कुछ ही महीनों बाद जब चौधरी चरण सिंह ने मोरारजी देसाई सरकार से बगावत करने का फ़ैसला किया तो कांग्रेस ने उन्हें समर्थन देकर प्रधानमंत्री बनवा दिया और कुछ महीनों बाद ही उनकी सरकार भी गिरा दी। 1980 में लोकसभा चुनावों के बाद कांग्रेस की वापसी हो गयी। इंदिरा गांधी फिर प्रधानमंत्री बन गईं। इस दौर में सरकार पर संजय गांधी का दब दबा था और यहीं से एन के सिंह की मुसीबतें शुरू हो गईं। जनता पार्टी की सरकार के दौरान एन के सिंह कई महत्वपूर्ण मामलों की जांच से जुड़े थे। इनमे से एक इमरजेंसी के दौरान  “किस्सा कुर्सी का” फ़िल्म को नष्ट करने का मामला भी था। इसमे संजय गांधी अभियुक्त थे। आरोप था कि ये फ़िल्म इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ थी इसलिए संजय गांधी ने फ़िल्म का प्रिंट ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से हासिल करके उसे जलवा दिया था ताकि उसे दिखाया नहीं जा सके। 
इस मामले में संजय गांधी से पूछताछ भी हुई थी। सरकार बदलने के बाद संजय गांधी के तेवर काफ़ी उग्र हो गए थे। सी बी आई के अधिकारियों ने एक दिन एन के सिंह को छुट्टी पर जाने का निर्देश दिया। अगले दिन सुबह सुबह गुड़गांव की पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने पहुंच गयी। एन के सिंह पर फ़िल्म “किस्सा कुर्सी का” मामले में एक गवाह ने आरोप लगाया था कि उस पर दबाव डाल कर उसकी गवाही ली गयी थी। गुड़गांव पुलिस इस मामले की जांच पहले कर चुकी थी और आरोप निराधार पाया गया था। लेकिन इसे फिर खोला गया और एन के सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। 
गुड़गांव पुलिस के आने की खबर एन के सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी को दे दी थी। उनके घर पर बड़ी संख्या में पत्रकार और फोटोग्राफर पहुंच गए थे। जब उन्हें गुड़गांव ले जाया गया तो पत्रकारों का काफिला भी उनके साथ चल पड़ा। इससे गुड़गांव पुलिस दबाव में आ गयी और एन के सिंह को निजी मुचलके पर छोड़ दिया गया। बाद में सी बी आई के अधिकारियों ने एन के सिंह की गिरफ्तारी पर नाराजगी जाहिर की तो सिंह को सी बी आई से हटा कर उन्हें उनके काडर उड़ीसा भेज दिया गया।

पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की फ़ोन टैपिंग 

एन के सिंह ने सी बी आई और उड़ीसा पुलिस में कई सनसनीखेज मामलों की जाँच पड़ताल की थी। उनमें से एक पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का फ़ोन टैप किए जाने का मामला भी था। चंद्रशेखर ने ये आरोप कांग्रेस नेताओं पर लगाया था। इसी तरह पूर्व प्रधानमंत्री वी पी सिंह से जुड़ा सेंट किट्स मामला भी था। इसमें आरोप लगाया गया था कि वी पी सिंह के बेटे अजेय सिंह ने सेंट किट्स द्वीप में एक बैंक अकाउंट खोला था जिसमें अवैध पैसे जमा कराए गए थे। बिहार के मधेपुरा में जन्मे एन के सिंह उड़ीसा के 1960 काडर के आई पी एस अधिकारी थे। करीब 10 सालों तक वे सी बी आई में रहे। लेकिन 1980 के बाद वे लगातार संघर्ष ही करते रहे। करीब 88 वर्ष की उम्र में 5 अक्टूबर की रात दिल्ली में उनका निधन हुआ।