कौशल विकास योजना केंद्र। (प्रतीकात्मक तस्वीर)
भारत की युवा आबादी दुनिया की सबसे बड़ी ताकत मानी जाती है, लेकिन जब बात रोजगार की आती है तो यह ताक़त बोझ बन जाती है। 2014 में सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर साल दो करोड़ नौकरियों का वादा किया था। आज ग्यारह साल बाद भी बेरोजगारी चरम पर है, और उस वादे को पूरा करने की दिशा में शुरू की गई प्रमुख योजनाओं में से एक– प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) – अब गंभीर सवालों के घेरे में है।
हाल ही में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी CAG की रिपोर्ट नंबर 20 (2025) ने इस योजना की गहरी कमियों को उजागर किया है। 2015 से 2022 तक चले तीन चरणों का कुल बजट लगभग 14,450 करोड़ रुपये था। इसमें से 10,194 करोड़ रिलीज हुए और 9,261 करोड़ खर्च किये गये। इस दौरान 1.32 करोड़ युवाओं को स्किल ट्रेनिंग देने का लक्ष्य था, जिसमें 1.1 करोड़ को सर्टिफिकेट मिला – कागजों पर 83% सफलता। लेकिन CAG का कहना है कि यह सिर्फ संख्याओं का खेल है। असल में रणनीति का अभाव, मार्केट की जरूरत से मेल न खाने वाले कोर्स, फर्जीवाड़े और नौकरियों का अभाव – ये योजना की असली तस्वीर है।
सीएजी की रिपोर्ट में क्या?
CAG की सबसे बड़ी आलोचना है लंबी अवधि की प्लानिंग की कमी। योजना को स्थायी बनाना था, लेकिन इसे फेज में चलाया गया, हर फेज के अलग नियम। नेशनल स्किल डेवलपमेंट पॉलिसी के अनुसार 60% ट्रेनिंग पांच हाई-डिमांड सेक्टर्स – कंस्ट्रक्शन, लॉजिस्टिक्स (सामान की सप्लाई चेन), ब्यूटी एंड वेलनेस, फर्नीचर एंड फिटिंग्स तथा टूरिज्म – में होनी चाहिए थी। लेकिन वास्तव में सिर्फ 22.7% हुई। उल्टे, रिटेल और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे सेक्टर्स में 40% से ज्यादा ट्रेनिंग हो गई, जहां डिमांड कम थी। 56 लाख शॉर्ट-टर्म ट्रेनिंग प्राप्त युवाओं में से 40% सिर्फ 10 जॉब रोल्स में केंद्रित थे – आसान कोर्स चलाये गये, जरूरत के नहीं।
सबसे दर्दनाक है प्लेसमेंट का हाल। योजना का मुख्य उद्देश्य रोजगार था, लेकिन इन 56 लाख में से सिर्फ 41% को नौकरी मिली – यानी करीब 33 लाख युवा खाली हाथ। कुछ राज्यों में फर्जी प्लेसमेंट दस्तावेज जमा किए गए। योजना उन तक पहुंची ही नहीं जिनके लिए बनी थी – जैसे बेरोजगार युवा या ड्रॉपआउट। उम्मीदवारों का सत्यापन नहीं हुआ।रिपोर्ट के अनुसार निगरानी का तो और बुरा हाल रहा। आधार बायोमेट्रिक अटेंडेंस अनिवार्य थी, लेकिन PMKVY 2.0 में 50% ट्रेनिंग में इसका पालन नहीं हुआ।
1111111111 जैसे मोबाइल नंबर!
डेटा में भयंकर गड़बड़ियां: 87,000 मोबाइल नंबर फर्जी जैसे "1111111111", बैंक अकाउंट में "11111111111" या "123456" जैसे एंट्री मिली। 94% से ज्यादा रिकॉर्ड्स में बैंक खाते की वैध जानकारी नहीं थी। नतीजा, 34 लाख सर्टिफाइड युवाओं को 500 रुपये का रिवार्ड भी नहीं मिला। 45 मॉनिटरिंग रिपोर्ट्स में अलग-अलग राज्यों के लिए एक ही फोटो इस्तेमाल देखा गया। कई ट्रेनिंग सेंटर बंद थे, लेकिन कागज पर चलते दिखाये जा रहे थे।
सरकार ने CAG को जवाब दिया है कि शुरुआती कमियां थीं, अब PMKVY 4.0 में सुधार होगा। e-KYC, फेस ऑथेंटिकेशन, जियो-टैग्ड अटेंडेंस आदि लागू होगा। लेकिन सवाल यह है कि पहले ग्यारह साल क्यों गँवाये?सॉफ्ट स्किल्स में भारी कमी
यह सब तब है जब भारत में युवा बेरोजगारी (15-29 आयु) 13-15% के आसपास है– समग्र दर 5% के मुकाबले तीन गुना। शिक्षित युवाओं में और ज्यादा बेरोज़ागारी है। ManpowerGroup की 2025 रिपोर्ट कहती है कि 80% नियोक्ता स्किल्ड टैलेंट नहीं ढूंढ पा रहे। India Skills Report 2025 में ग्रेजुएट्स की एम्प्लॉयेबिलिटी 54.81%, Mercer-Mettl में सिर्फ 42.6% दर्ज की गयी है। सॉफ्ट स्किल्स में भारी कमी पायी गयी।
CAG की यह रिपोर्ट गंभीर है, लेकिन हैरानी की बात है कि मुख्यधारा मीडिया ने इस पर लगभग चुप्पी साध रखी है। जबकि 2011 में अन्ना हजारे के आंदोलन के समय इसी CAG की 2G स्पेक्ट्रम रिपोर्ट (1.76 लाख करोड़ का अनुमानित नुकसान) पर मीडिया ने तूफान खड़ा कर दिया था। यूपीए सरकार पर हमले हुए, आंदोलन को बल मिला। 2008 से 2013 तक भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) रहे विनोद राय को नरेंद्र मोदी सरकार ने 2016 में Banks Board Bureau (BBB) का पहला चेयरमैन नियुक्त किया था।
लेकिन आज मोदी सरकार पर CAG की रिपोर्ट आती है, तो खामोशी बरती जाती है। क्या CAG की विश्वसनीयता सत्ता के साथ बदलती है? यह चुप्पी सवाल उठाती है – करदाताओं का पैसा खर्च हुआ, युवाओं की उम्मीदें जुड़ीं, लेकिन परिणाम कुछ ख़ास नहीं। स्किल इंडिया का सपना तब तक अधूरा रहेगा जब तक पारदर्शिता, जवाबदेही और मार्केट से जुड़ी रणनीति नहीं आएगी। युवाओं का भविष्य दांव पर है तो सोचना होगा कि इस रोज़गार घोटाले पर मीडिया की चुप्पी किसके हित में है।