रूस के राष्ट्रपति पुतिन कभी केजीबी में जासूस रहे हैं।
दो दिन की भारत यात्रा पर आये रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर व्लादिमीरोविच पुतिन का दिल्ली में भव्य स्वागत हुआ। 5-6 दिसंबर को हुई इस यात्रा से दोनों देशों के बीच संबंधों को नई ऊँचाई पर ले जाने वाला माना जा रहा है। अमेरिका के साथ अटकी ट्रेड डील के बीच पुतिन की इस यात्रा का भारत के लिए ख़ासा महत्व है। सबकी नज़र इसके नतीजों पर है, पर इसी के साथ एक सवाल यह भी है कि आख़िर रूसी सत्ता पर इतने लंबे समय से पुतिन की पकड़ कैसे बनी हुई है। वे सचमुच लोकप्रिय नेता हैं या फिर लोकतंत्र को क़ब्ज़े में कर चुके एक तानाशाह?
व्लादिमीर पुतिन का जन्म 7 अक्टूबर 1952 कोलेनिनग्राद (आज का सेंट पीटर्सबर्ग) में हुआ था। उस वक्त रूस सोवियत यूनियन का केंद्र था। देश में कम्युनिस्ट पार्टी का एकछत्र राज था। पुतिन का परिवार बहुत गरीब था। पिता फैक्ट्री में मजदूर थे, माँ भी छोटे-मोटे काम करती थीं। तीन भाइयों में से दो बचपन में ही बीमारी से मर गए। पुतिन इकलौते बेटे बचे थे। एक छोटे से कम्यून वाे फ्लैट में रहते थे, जहाँ एक ही किचन और बाथरूम 5-6 परिवार शेयर करते थे। चूहे भरे पड़े थे। बचपन में पुतिन ने बहुत मार खाई, लड़ाई-झगड़ा किया, इसलिए जूडो-कराटे सीखा।
स्कूली पढ़ाई के बाद फिर लेनिनग्राद स्टेट यूनिवर्सिटी से इंटरनेशनल लॉ में ग्रेजुएशन किया 1975 में। कॉलेज के दिनों से ही उनका सपना था KGB जॉइन करना। KGB मतलब Committee for State Security – ये सोवियत संघ (USSR) की सबसे ताकतवर खुफिया एजेंसी थी (1954 से 1991 तक)।इसके बाद रूस में इसका नाम बदलकर FSB (Federal Security Service) हो गया, जिसके पहले डायरेक्टर खुद व्लादिमीर पुतिन बने थे (1998-1999 में)।
1975 में KGB में भर्ती हुए पुतिन 15 साल तक इस एजेंसी के लिए काम करते रहे। पहले लेनिनग्राद में काउंटर-इंटेलिजेंस में, फिर 1985-1990 तक पूर्वी जर्मनी के ड्रेसडेन में तैनात रहे। वहाँ जर्मन भाषा भी सीखी। रैंक था लेफ्टिनेंट कर्नल। जब 9 नवंबर 1989 द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी को बाँटने के लिए बनाई गयी दीवार गिरायी गयी तो पुतिन ड्रेसडेन शहर में KGB ऑफिसर के तौर पर तैनात थे। उन्होंने खुद अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उस रात उनके ऑफिस के बाहर भीड़ जमा हो गई थी और वे अकेले पिस्तौल लेकर खड़े थे। उन्होंने सबको भगा दिया और सारी सीक्रेट फाइलें जला दीं। फिर इस्तीफा देकर सेंट पीटर्सबर्ग लौट आए। वहाँ अपने पुराने प्रोफेसर अनातोली सोबचाक के साथ काम करने लगे, जो उस शहर के पहले चुने हुए मेयर बने।
अनातोली सोबचाक लेनिनग्राद यूनिवर्सिटी में कानून के प्रोफेसर थे। व्लादिमीर पुतिन उनके स्टूडेंट रहे थे। सोबचाक 1989 में सोवियत संसद के लिए चुने गये और गोर्बाचेव के सुधारों (पेरेस्त्रोइका-ग्लास्नोस्त) के बड़े समर्थक थे। सोवियत यूनियन टूटने के बाद रूस के पहले लोकतांत्रिक दौर के सबसे चमकते नेता माने जाते थे। सोवियत संघ का अंत 25 दिसंबर 1991 को हुआ, जब मिखाइल गोर्बाचेव ने राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दिया और सोवियत झंडा क्रेमलिन से उतारकर रूसी झंडा फहराया गया। जून 1991 में हुए रूस के पहले खुले और लोकतांत्रिक चुनाव में अनातोली सोबचाक सेंट पीटर्सबर्ग (तब तक लेनिनग्राद से नाम वापस सेंट पीटर्सबर्ग कर दिया गया था) के पहले चुने हुए मेयर बने।
वे 1991 से 1996 तक मेयर रहे। इस दौरान पुतिन उनके पहले डिप्टी मेयर और सबसे करीबी सहयोगी थे।विदेशी आर्थिक संबंधों के हेड बतौर यहीं से उनकी राजनीति की असली शुरुआत हुई।
1996 में सोबचाक चुनाव हार गए। पुतिन बेरोजगार हो गए, लेकिन 1997 में उन्हें मॉस्को बुलावा आया।1998 में राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने उन्हें FSB (KGB का नया नाम) का डायरेक्टर बना दिया। सिर्फ 9 महीने बाद 1999 में प्रधानमंत्री बना दिया। येल्तसिन उस वक्त बीमार थे, शराब की लत थी, लोकप्रियता बहुत कम थी। चेचन्या में दूसरा युद्ध चल रहा था। पुतिन ने कठोरता से युद्ध लड़ा, लोकप्रियता आसमान छूने लगी।
चेचन्या सोवियत यूनियन का हिस्सा था पर विघटन के आज़ादी चाहता था। 1994 में युद्ध हो गया। दो साल तक चला। येल्त्सिन ने पूरी ताक़त लगायी लेकिन पूरी तरह जीत नहीं मिली। 1996 में शांति समझौता हुआ और चेचेन्या को आंतरिक तौर पर आज़ादी मिल गयी। लेकिन पुतिन ने 1999 में प्रधानमंत्री बनने के बाद दोबारा युद्ध शुरू किया और विद्रोहियों को पूरी तरह कुचल दिया। यह युद्ध दस साल चला। पुतिन के सख़्त रुख़ ने उनकी लोकप्रियता दो फ़ीसदी से सत्तर-अस्सी फ़ीसदी कर दी।
युद्ध के बीच ही पुतिन राष्ट्रपति बन गये थे
31 दिसंबर 1999 को येल्तसिन ने अचानक इस्तीफा दे दिया और टीवी पर घोषणा की कि पुतिन अब कार्यवाहक राष्ट्रपति हैं। इसे पश्चिमी मीडिया ने “ऑपरेशन उत्तराधिकारी” नाम दिया। मार्च 2000 में पुतिन 53% वोट लेकर पहली बार राष्ट्रपति चुने गए। 2004 में दोबारा। तब संविधान में सिर्फ दो लगातार टर्म की लिमिट थी। इसलिए 2008 में दिमित्री मेदवेदेव को राष्ट्रपति बनाया और खुद प्रधानमंत्री बन गए (2008-2012)।
पुतिन 2012 में फिर राष्ट्रपति बने। 2020 में संविधान में संशोधन करवाया कि अब वो 2036 तक राष्ट्रपति रह सकते हैं। यानी दो और टर्म। रूसी राजनीति में पुतिन की ज़बरदस्त पकड़ है। कहने को रूस लोकतांत्रिक देश है लेकिन पुतिन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वालों की ज़िंदगी ख़तरे में रहती है। कई विपक्षी नेताओं और पत्रकारों की जान गयी है और आरोप पुतिन पर है। कोई ज़हर देकर मारा गया तो किसी को गोली मार गया।पुतिन की पार्टी युनाइटेड रसिया भारी बहुमत के साथ सत्ता पर क़ाबिज़ है। विपक्षी पार्टियों के नेता या तो जेल में हैं या देश छोड़ चुके हैं। टीवी, अखबार, इंटरनेट – सब पर कंट्रोल। चुनाव होते जरूर हैं, लेकिन नतीजे पहले से तय मान लिए जाते हैं।
वी.डेम के मुताबिक डेमोक्रेसी इंडेक्स में रूस 179 देशों में 171वें स्थान पर है। V-Dem (Varieties of Democracy) एक स्वीडन-आधारित संस्थान है, जो दुनिया भर के देशों में लोकतंत्र की गुणवत्ता को बहुत विस्तार से मापता है। ये हर साल Democracy Report जारी करता है, जिसमें 2024 का रिपोर्ट (2023 के डेटा पर आधारित) रूस को Electoral Autocracy (चुनावी तानाशाही) के रूप में वर्गीकृत करता है। इसका मतलब है कि रूस में चुनाव तो होते हैं, लेकिन वे निष्पक्ष नहीं होते, और लोकतांत्रिक संस्थाएँ (जैसे स्वतंत्र न्यायपालिका, प्रेस की आजादी, विपक्ष की गुंजाइश) बहुत कमजोर है।
बहरहाल, पुतिन का निजी जीवन भी चर्चा में रहा है। 1983 में ल्यूदमिला से शादी की थी। दो बेटियाँ हैं – मारिया और कतेरीना। 2013 में तलाक हो गया। आजकल उनकी गर्लफ्रेंड के बारे में अफवाह है – पूर्व जिम्नास्ट अलीना कबायेवा, जिनसे कथित तौर पर उनके चार बच्चे भी हैं, लेकिन क्रेमलिन कुछ नहीं बताता।
बहरहाल, पुतिन ने रूस को संकट से उबारा है, इसमें शक नहीं।
पुतिन को कुछ लोग “तानाशाह” कहते हैं, कुछ लोग “रूस का रक्षक”। उनके समर्थक कहते हैं कि 1990 के अराजक रूस को उन्होंने फिर से महाशक्ति बनाया, अर्थव्यवस्था 10 गुना बढ़ाई, सेना को मजबूत किया। विरोधी कहते हैं – कीमत पर बहुत भारी थी – आजादी छीन ली, लोकतंत्र खत्म कर दिया। इतिहास की निर्मम कसौटियाँ पुतिन के बारे में क्या फ़ैसला करती हैं, यह भविष्य ही बतायेगा।