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कांग्रेस को समर्थन तो फिर शपथग्रहण में क्यों नहीं आईं मायावती?

2007-2012 के बीच जब मायावती मुख्यमंत्री थीं, तब उनकी संपत्ति अकूत रूप से बढ़ रही थी। आय से अधिक संपत्ति के अनेक ठोस सबूत दिल्ली और उत्तर प्रदेश में उनकी कोठियों और उनके बैंक अकाउंट में जमा धन के रूप में मौजूद हैं। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि मायावती को डर है कि कांग्रेस से हाथ मिलाने पर सीबीआई और आयकर विभाग उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई कर सकते हैं।
शैलेश
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों के शपथग्रहण समारोह क्यों नहीं आईं? उनकी ग़ैर-मोजूदगी इसलिए भी हैरान करती है कि कि मध्य प्रदेश में पूर्ण बहुमत से थोड़ा पीछे रह गई कांग्रेस को समर्थन देने की घोषणा मायावती ने बड़ी आसानी से कर दी थी और राजस्थान में भी कांग्रेस को समर्थन देने की मंशा जताई थी। यह सब बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के नाम पर किया था। यदि इन राज्यों में बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए बीएसपी कांग्रेस की तरफ़ मदद का हाथ बढ़ा सकती हैं तो उन्हीं की मदद से बनी सरकारों के शपथ समारोह से दूरी क्यों?

इन शपथ ग्रहण समारोह को महागठबंधन के शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखा गया। ज़्यादातर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय नेता इन समारोहों में पहुँचे। लेकिन मायावती इस कार्यक्रम में नहीं आईं। उत्तर प्रदेश के एक अन्य मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी इन समारोहों में नहीं पहुँचे। मायावती और अखिलेश 2019 का लोकसभा चुनाव मिल कर लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। कांग्रेस उत्तर प्रदेश में उनका स्वाभाविक पार्टनर है लेकिन मायावती बार-बार संकेत दे रही हैं कि कांग्रेस के लिए उनके गठबंधन में कोई जगह नहीं है।

2014 के लोकसभा चुनावों के बाद उत्तर प्रदेश में एक प्रचण्ड शक्ति के रूप में उभरी बीजेपी को चुनौती देने के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साथ-साथ कांग्रेस का गठबंधन ज़रूरी माना जा रहा है।
राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि सीबीआई के डर से मायावती कांग्रेस से दूरी बनाकर चल रही हैं। मायावती के ख़िलाफ़ कई आरोपों की जाँच सीबीआई और आयकर विभाग लंबे समय से कर रहे हैं। इनमें से ज़्यादातर मामले 2014 में बीजेपी सरकार बनने से पहले के हैं।

माया की अकूत संपत्ति

2007-2012 के बीच जब मायावती मुख्यमंत्री थीं, तब उनकी संपत्ति अकूत रूप से बढ़ रही थी। आय से अधिक संपत्ति के अनेक ठोस सबूत दिल्ली और उत्तर प्रदेश में उनकी कोठियों और उनके बैंक अकाउंट में जमा धन के रूप में मौजूद हैं। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि मायावती को डर है कि कांग्रेस से हाथ मिलाने पर सीबीआई और आयकर विभाग उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई कर सकते हैं। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की तरह उनको भी गंभीर अदालती कार्रवाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

अखिलेश ने 2017 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस से मिलकर लड़ा था, लेकिन बीजेपी की आँधी को रोक नहीं पाए और अब बसपा के साथ समझौते पर वे कोई दाँव नहीं खेलना चाहते। आम तौर पर माना जा रहा है कि बसपा-सपा और कांग्रेस के बीच चुनावी तालमेल के बग़ैर 2019 में बीजेपी का मुक़ाबला संभव नहीं होगा। 

आम तौर पर माना जा रहा है कि बसपा-सपा और कांग्रेस के बीच चुनावी तालमेल के बग़ैर 2019 में बीजेपी का मुक़ाबला संभव नहीं होगा।
हालाँकि 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनावों को छोड़ दें तो ऐसा नहीं लगता कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पूरी तरह ख़त्म हो चुकी है। 2009 के चुनाव में कांग्रेस को समाजवादी पार्टी के बराबर यानी 22 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी।आम तौर पर माना जा रहा है कि बीएसपी-एसपी और कांग्रेस के बीच चुनावी तालमेल के बग़ैर 2019 में बीजेपी का मुक़ाबला संभव नहीं होगा।  
Scared of CBİ, Mayawati skips swearing in ceremony of 3 BJP Chief Ministers - Satya Hindi

मोदी से मोहभंग

2018 में मोदी का तिलस्म तेज़ी से टूटा। रफ़ाल हवाई जहाज़ों की ख़रीद का मामला उछलने के बाद मोदी का चेहरा बेदाग़ नहीं रहा। नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद देश में आर्थिक संकट का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह कहीं ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा है। किसान बौखलाए हुए हैं। बेरोज़गार अशांत हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार गाय, गंगा और राम मंदिर के भावनात्मक मुद्दों से ऊपर नहीं उठ पा रही है। गोरक्षा के नाम पर पूरा प्रदेश तनाव के दौर से गुज़र रहा है।
ऐसा लगता है कि बीजेपी के ख़िलाफ़ ज़मीन तैयार है। बसपा-सपा और कांग्रेस मिलकर लड़ते हैं तो बीजेपी की मुश्किलें कई गुना बढ़ सकती हैं। बीजेपी इस गठबंधन को रोकना चाहे तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। बीजेपी समाजवादी पार्टी के विद्रोही और अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव की भी मदद कर रही है। मायावती का कांग्रेस से परहेज़ 2019 के चुनावों से पहले ख़त्म होगा या नहीं, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल है, पर महागठबंधन नहीं बना तो मायावती भी नुक़सान में रह सकती हैं।
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