नए साल के जश्न और शोर-शराबे में यह ख़बर कहीं पीछे छूट गई है। पिछले कुछ महीने से हड़ताल पर चल रहे सूरत के कपड़ा उद्योग के हमाल पहली जनवरी को वेयरहाउस (गोदाम) मालिकों के साथ हुए मौखिक समझौते के बाद अस्थायी तौर पर काम पर लौट आए हैं। उनकी लड़ाई अभी बाकी है। ये हमाल जिन मांगों को लेकर हड़ताल पर थे, उनमें कपड़े की गठान का वजन 65 किलोग्राम तक सीमित करने की मांग शामिल है। अमूमन ये गठानें पहले 120 से 150 किलोग्राम तक हुआ करती थीं। यानी एक हमाल के खुद के औसत वजन से दो गुना से भी ज्यादा! इस अर्थ में यह अनूठी मांग है कि मजदूर खुद की शारीरिक क्षमता की कीमत मांग रहा है। आखिर एक मजदूर को अपनी शारीरिक क्षमता तय करने का अधिकार क्यों नहीं होना चाहिए?
मज़दूरों पर खुद के वजन से दोगुना ‘बोझ’! कैसे कम होगा?
- विश्लेषण
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- 31 Jan, 2025

सूरत के कपड़ा उद्योग के हमालों की मांग क्या नाजायज है? कभी हमाल के खुद के औसत वजन से दो गुना 120 से 150 किलोग्राम तक होने वाली गठानों का वजन 65 किलोग्राम तक सीमित करने की मांग क्या सही नहीं है?
इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक) के गुजरात इकाई के अध्यक्ष नैशध देसाई से मैंने फोन पर बात की, तो उन्होंने कहा, “यह मौखिक समझौता है और मजदूर इसे लिखित में चाहते हैं।“ उनके मुताबिक वेयरहाउस यानी गोदाम मालिकों से जो मौखिक बातचीत हुई है, उसमें तीन बातों को लेकर दोनों पक्षों में सहमति बनी है। ये तीन मुद्दे हैं:
- हफ्ते में एक दिन साप्ताहिक अवकाश
- कपड़े की गठान का अधिकतम वजन 80 किलोग्राम
- सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम वेतन का भुगतान