तेलंगाना में लागू किया गया SC सब-कोटा न सिर्फ राज्य बल्कि राष्ट्रीय राजनीति को भी नई दिशा दे सकता है। क्या यह सामाजिक न्याय के एजेंडे को फिर से केंद्र में लाएगा?
तेलंगाना में सरकार ने 14 अप्रैल, 2025 को एक ऐतिहासिक क़दम उठाया, जो भविष्य में देश की राजनीति में नए मोड़ का प्रतीक बन सकता है। इस दिन, अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण में उपवर्गीकरण यानी सब कोटा लागू करने की घोषणा की गई। तेलंगाना देश का पहला राज्य बन गया, जिसने सुप्रीम कोर्ट के 1 अगस्त, 2024 के फ़ैसले को इतनी तेजी से लागू किया। यह फ़ैसला न केवल सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा क़दम है, बल्कि यह कांग्रेस की नई रणनीति और बीजेपी की हिंदुत्ववादी राजनीति के बीच टकराव का भी संकेत देता है। यह मायावती जैसी नेताओं के लिए एक और चुनौती है जिन्होंने उपवर्गीकरण का विरोध किया है।
14 अप्रैल, 2025 को तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी को सिंचाई मंत्री एन. उत्तम कुमार रेड्डी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट उप-समिति ने वह गजट अधिसूचना सौंपी, जिसके तहत अनुसूचित जाति यानी एससी आरक्षण में सब कोटा लागू हुआ। इसके तहत एससी की 59 उपजातियों को तीन वर्गों में बाँटा गया:
2025 के तेलंगाना जाति सर्वे के अनुसार, राज्य की 3.7 करोड़ आबादी में एससी समुदाय 17.43% यानी क़रीब 61.84 लाख है। सबसे बड़ी उपजातियाँ मादिगा (50-55%) और माला (35-40%) हैं, जबकि रेली, मेडिगा, और बिंदला जैसी छोटी उपजातियाँ बाक़ी हिस्सा बनाती हैं। मादिगा समुदाय लंबे समय से शिकायत करता रहा है कि माला समुदाय को शिक्षा और नौकरियों में ज़्यादा लाभ मिलता है, क्योंकि उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति बेहतर है। माला समुदाय का कहना है कि वे भी पूरी तरह मुख्यधारा में नहीं आये हैं।
यह नीति उन उपजातियों को अवसर देगी, जो अब तक हाशिये पर थीं। लेकिन यह सवाल भी उठता है कि क्या इससे दलित एकता प्रभावित होगी? कुछ इसे सामाजिक न्याय का कदम मानते हैं, तो कुछ का कहना है कि यह उन लोगों का विरोध है, जो “रेल के डिब्बे में जगह पाकर दूसरों के लिए दरवाजा बंद करना चाहते हैं”।
इस नीति का आधार सुप्रीम कोर्ट का 1 अगस्त, 2024 का फ़ैसला है, जिसमें 7 जजों की बेंच ने 6:1 के बहुमत से कहा कि राज्य SC/ST आरक्षण में उपवर्गीकरण कर सकते हैं। इस बेंच में चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस बी. आर. गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा, जस्टिस अगस्त्य नटेश्वर, और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे। जस्टिस बेला त्रिवेदी ने असहमति जताई।
यह फ़ैसला 2004 के ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार मामले को पलटता है, जिसमें SC को एक समरूप समूह मानकर उपवर्गीकरण को असंवैधानिक बताया गया था।
कोर्ट ने कहा कि उपवर्गीकरण से उन उपजातियों को न्याय मिलेगा, जो आरक्षण का पूरा लाभ नहीं ले पाईं, बशर्ते ठोस डेटा और पारदर्शी प्रक्रिया हो। इसने पंजाब, तमिलनाडु, और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों के पुराने उपवर्गीकरण कानूनों को भी वैधता दी।
तेलंगाना ने इस फैसले को आधार बनाकर 96.9% आबादी को कवर करने वाला जाति सर्वे कराया और उपवर्गीकरण लागू किया। सरकार ने यह भी वादा किया कि अगली जनगणना के बाद आबादी के अनुपात में आरक्षण की सीमा बढ़ाई जाएगी।
कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी लंबे समय से “जितनी आबादी, उतना हक” का नारा दे रहे हैं। उनका कहना है कि हर वर्ग को उसकी जनसंख्या के अनुपात में संसाधन, नौकरियाँ, और अवसर मिलने चाहिए। इसके लिए वे देशव्यापी जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं। अहमदाबाद में हाल के कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने तेलंगाना के जाति सर्वे की तारीफ़ की और इसे सामाजिक न्याय का मॉडल बताया।
तेलंगाना का सब कोटा और जाति सर्वे इस दिशा में ठोस कदम है। बिहार और आंध्र प्रदेश के बाद तेलंगाना तीसरा राज्य है, जिसने ऐसा सर्वे किया। कर्नाटक में भी 2015 की सामाजिक-आर्थिक सर्वे रिपोर्ट 11 अप्रैल, 2025 को कैबिनेट में रखी गई, जिसके नतीजे जल्द सामने आ सकते हैं।
राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस सामाजिक न्याय की नई चैंपियन बनकर उभर रही है। उनके संविधान सम्मेलनों और “न्याय पथ” अभियान ने पार्टी को नए सामाजिक दायरे में ले जाना शुरू किया है।
बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की प्रमुख मायावती ने सुप्रीम कोर्ट के उपवर्गीकरण फैसले का कड़ा विरोध किया था। 21 अगस्त, 2024 को उन्होंने इस फ़ैसले के खिलाफ हुए भारत बंद का समर्थन करते हुए इसे “दलित एकता को तोड़ने की साजिश” बताया था। उनका मानना है कि उपवर्गीकरण से कुछ उपजातियों को लाभ होगा, लेकिन यह दलित समुदाय की एकजुटता को कमजोर करेगा।
मायावती के लिए यह दुविधा है। वह सिर्फ एक दलित उपजाति की नेता नहीं बनना चाहतीं, लेकिन उपवर्गीकरण का विरोध उनके वोट बैंक को प्रभावित कर सकता है। यह सच है कि कुछ उपजातियों को आरक्षण का ज्यादा लाभ मिला, जबकि अन्य पीछे रह गईं। ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से यह असमानता बनी, लेकिन मायावती का विरोध इस बदलाव को रोकने की कोशिश है।
कांग्रेस की यह रणनीति बीजेपी की हिंदुत्ववादी राजनीति के लिए चुनौती बन रही है। मोदी सरकार ने जाति जनगणना का खुलकर विरोध नहीं किया, लेकिन इसे कराने से भी बचती रही है। बीजेपी के मंचों पर राहुल गांधी को “हिंदुओं को जाति के आधार पर बाँटने वाला” बताया जाता है, जबकि पार्टी के नेता मुस्लिम विरोधी बयानबाजी कर ध्रुवीकरण की कोशिश करते हैं, ताकि जाति जनगणना का सवाल दब जाए।
बहरहाल, जिस विचार का समय आ जाता है, वह समाज में जगह बना ही लेता है। जाति जनगणना और आरक्षण का सवाल गरीबी उन्मूलन से ज़्यादा शासन-प्रशासन में हिस्सेदारी का है। मोदी सरकार की हिचक राहुल गांधी के उन आरोपों को बल देती है कि बीजेपी और आरएसएस मनुवादी वर्चस्व को बनाए रखना चाहते हैं।
तेलंगाना का सब कोटा फ़ैसला सामाजिक न्याय की दिशा में एक नया अध्याय है। यह राहुल गांधी के “जितनी आबादी, उतना हक” के नारे को मजबूती देता है और जाति जनगणना की मांग को नई हवा दे रहा है। लेकिन मायावती जैसे नेताओं का विरोध और बीजेपी की सियासी रणनीति इसे जटिल बनाते हैं। क्या यह फैसला देश की राजनीति को नया रंग देगा? क्या कांग्रेस सामाजिक न्याय की नई ध्वजवाहक बनेगी? इसका जवाब समय देगा, लेकिन यह निश्चित है कि यह मुद्दा समाज और सियासत में गहरे बदलाव की शुरुआत कर चुका है।