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सोचिए, संसद किसने नहीं चलने दी, सरकार ने या विपक्ष ने ?

संसद का शीतकालीन सत्र एक दिन पहले ही 22 दिसम्बर को खत्म हो गया। लोकसभा-राज्यसभा में सदन न चलने देने की जिम्मेदारी सरकार और बीजेपी ने विपक्ष पर डाल दी। लेकिन क्या यही सच है जो सरकार और बीजेपी कह रही है?

क्या वाकई दोनों सदनों में बहस होने दी गई।

पिछले साल कोविड 19 की वजह से सरकार ने शीतकालीन सत्र नहीं बुलाया था। इस वजह से इस बार का सत्र काफी महत्वपूर्ण था।

लोकसभा और राज्यसभा में शीतकालानी सत्र की शुरुआत 29 नवंबर को हुई थी और इसे 23 दिसम्बर तक चलना था। लेकिन 22 दिसम्बर को लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा चेयरमैन वेंकैया नायडू ने इस समाप्त घोषित कर दिया।

वेंकैया नायडू ने इस मौके पर सदस्यों को सलाह दी कि वे आत्मनिरीक्षण करें कि क्या सदन इससे और बेहतर तरीके से चलाया जा सकता था?

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पहले सरकार के दावों पर बात करें। उसका कहना है कि उसने ज्यादातर बिल पास करा लिए। क्या वाकई सरकार का एजेंडा बिल पास कराना था?

राज्यसभा इस सत्र में 18 बार बैठी और विपक्ष के भारी हंगामे के बीच कई बार सदन को स्थगित करना पड़ा। कुल 18 घंटे 48 मिनट का नुकसान हुआ।

संसद में एक मिनट की कार्यवाही पर 2.5 लाख रुपये खर्च होते हैं। इस हिसाब से नुकसान का अंदाजा लगाया जा सकता है।

लोकसभा ने 82 फीसदी तक अपना काम निपटाया, जबकि राज्यसभा में 48 फीसदी काम निपटाया।
Think, who did not let the Parliament run, the government or the opposition? - Satya Hindi

सरकार की नीयत

अगर शीतकालीन सत्र के समूचे घटनाक्रम पर नजर डालें तो उसी से साफ हो जाता है कि सरकार की मंशा क्या थी?

सत्र 29 नवम्बर से शुरू हुआ और पहले ही दिन 12 सांसदों को सदन से पूरे सत्र के लिए निकाल दिया गया।

कांग्रेस, एनसीपी, टीएमसी, सीपीएम, सीपीआई के 12 सांसदों पर आरोप है कि उन्होंने 11 अगस्त को सदन में अनुशासनहीनता की थी।

इतना ही नहीं आग में घी डालते हुए 21 दिसम्बर को टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रॉयन को निलम्बित कर दिया गया।

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सदन में अगस्त में हुई अनुशासनहीनता की घटना पर नवम्बर में कार्रवाई ! कुछ अजीब नहीं लगता आप लोगों को ? सरकार को सदन चलाना था तो इनका निलम्बन प्रतीकात्मक रूप में दो दिन के लिए भी हो सकता था।
सरकार को अच्छी तरह पता था कि विपक्ष इस निलम्बन पर हंगामा करेगा। निलम्बन के बाद विपक्ष ने नियमों का हवाला देते हुए कहा कि अगस्त का सत्र खत्म हो चुका है। यह कार्रवाई तभी होनी चाहिए थी। अब कार्रवाई का मतलब है कि सरकार जानबूझ कर इस काम को कार्रवाई कर रही है।

इन दो मुद्दों पर चर्चा नहीं चाहती थी सरकार

तीन कृषि कानूनों पर अपनी गलती मानते हुए सरकार ने 29 नवम्बर को ही इसे वापस ले लिया। विपक्ष ने भी इसका समर्थन किया था। लेकिन सरकार को पता था कि अगले दिन सत्र शुरू होने पर समूचा विपक्ष इसी पर चर्चा करने वाला था।

लखीमपुर खीरी कांड में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के इस्तीफे पर विपक्ष ने पहले से ही दबाव बना रखा था।

सरकार सदन में असहज स्थिति का सामना नहीं करना चाहती थी। उसे पता था कि 12 विपक्षी सांसदों के निलम्बन का मतलब है सदन की व्यवस्था भंग होना।

सदन की परम्परा, गरिमा के हिसाब से सरकार की यह रणनीति पॉजिटिव नहीं थी।
अगर इसे सरकार की रणनीति माना जाए तो वो इस रणनीति के जरिए तीनों कृषि कानूनों, लखीमपुर कांड और पेगासस जासूसी कांड पर वो असहज सवालों से बच गई।

इस पर बहस के विपक्षी ख्वाब अधूरे रह गए।

 

किस बात पर खुश है सरकार

सरकार इस बात पर खुश है कि उसने राज्यसभा में 10 विधेयक पास करा लिए। जिसमें चुनाव कानून सुधार संशोधन बिल प्रमुख है। इस बिल पर भी विपक्ष ने सवाल उठाए थे।

टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रॉयन पर इसी बिल पर चर्चा के दौरान रूल बुक फाड़ने का आरोप है।
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सरकार ने 12 बिल लोकसभा में पेश किए थे और एक बिल राज्यसभा में पेश किया था। इस नजरिए से देखें तो 13 में से 12 बिल पास होना सरकार की बड़ी उपलब्धि कहने को जरूर है लेकिन सच क्या है, वो तथ्यों से स्पष्ट है।
कायदे से राज्यसभा को 95 घंटे 6 मिनट चलना था लेकिन राज्यसभा कुल 45 घंटे 34 मिनट ही चल सकी।हालांकि सरकार ने इस सत्र में 26 बिल को सूचीबद्ध कराया था, जिसे पास किया जाना था। जिसमें डिजिटल करेंसी बिल 2021 शामिल था। जिसके जरिए क्रिप्टो करेंसी रेगुलशन पर कानून बनना था।सरकार ने महत्वपूर्ण बाल विवाह (संशोधन) बिल भी पेश किया, जिसके जरिए लड़कियों की शादी की उम्र 18 से 21 साल की जानी है। लेकिन सरकार ने खुद ही इस बिल को फिलहाल सेलेक्ट कमेटी को भेज दिया है।अगर पिछले मॉनसून सत्र (जुलाई-अगस्त) को याद किया जाए, तो उस समय भी सदन ठीक से नहीं चल पाया था। लोकसभा 22 फीसदी और राज्यसभा 28 फीसदी काम निपटा सकी थी।
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क़मर वहीद नक़वी
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