भारत का लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा और जीवंत है, जिसकी रीढ़ है हर नागरिक का वोट देने का अधिकार। लेकिन इस अधिकार को लागू करने और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी केंद्रीय चुनाव आयोग की है, जो एक संवैधानिक संस्था है। संविधान ने इसे सरकार से स्वतंत्र रखा, लेकिन हाल के वर्षों में आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं। विपक्ष का आरोप है कि आयोग सरकार के इशारों पर काम कर रहा है। ऐसे में एक नाम बार-बार याद आता है – टी.एन. शेषन का जिनके चुनाव आयुक्त रहते निष्पक्ष चुनाव की मिसाल क़ायम हुई थी और देश को पहली बार आयोग का वह मतलब समझ में आया था जिसकी कल्पना संविधान ने की थी।