भारत का लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा और जीवंत है, जिसकी रीढ़ है हर नागरिक का वोट देने का अधिकार। लेकिन इस अधिकार को लागू करने और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी केंद्रीय चुनाव आयोग की है, जो एक संवैधानिक संस्था है। संविधान ने इसे सरकार से स्वतंत्र रखा, लेकिन हाल के वर्षों में आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं। विपक्ष का आरोप है कि आयोग सरकार के इशारों पर काम कर रहा है। ऐसे में एक नाम बार-बार याद आता है – टी.एन. शेषन का जिनके चुनाव आयुक्त रहते निष्पक्ष चुनाव की मिसाल क़ायम हुई थी और देश को पहली बार आयोग का वह मतलब समझ में आया था जिसकी कल्पना संविधान ने की थी।
‘वोट चोरी’ के नारों के बीच याद आये शेषन!
- विश्लेषण
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- 13 Aug, 2025

‘वोट चोरी’ के नारों के बीच याद आये शेषन!
जब देश में 'वोट चोरी' के नारे गूंज रहे हैं, ऐसे में लोगों को याद आ रहे हैं पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन, जिन्होंने भारतीय चुनाव प्रणाली में पारदर्शिता और सख़्ती की नई मिसाल कायम की थी
एक वोट का अधिकार
आजादी के बाद, भारत ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया – हर 18 साल से ऊपर के नागरिक को वोट का अधिकार। लेकिन यह विचार संविधान सभा में गर्मागर्म बहस का विषय बना था। कुछ सदस्यों का मानना था कि मतदाताओं को शिक्षित होना चाहिए, क्योंकि निरक्षर लोग गलत नेताओं को चुन सकते हैं। लेकिन जवाहरलाल नेहरू ने इस विचार को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, “लोकतंत्र की ताकत हर नागरिक की भागीदारी में है, चाहे वह पढ़ा-लिखा हो या नहीं। आजादी की लड़ाई में अनपढ़ और गरीब लोगों ने सबसे ज्यादा कुर्बानी दी, तो उन्हें इसके फल से कैसे वंचित किया जा सकता है?” डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने इसे सामाजिक समानता का हथियार बताया।