गज़ा में चल रहा नरसंहार आज दुनिया के सामने एक गंभीर सवाल खड़ा करता है। क्या अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ, जिन्हें युद्ध और अत्याचार रोकने के लिए बनाया गया था, अब कमज़ोर पड़ रही हैं? गज़ा में इसराइल की सैन्य कार्रवाइयों ने लाखों लोगों की ज़िंदगी तबाह कर दी है, और इस पर सवाल उठाने वाले अमेरिका की नज़र में दुश्मन हैं। संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि फ्रांसेस्का अल्बानीज़ और अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) तक पर प्रतिबंध लगाकर अमेरिका यही संदेश देना चाहता है?  ऐसा लगता है कि अमेरिका दुनिया को फिर से द्वितीय विश्वयुद्ध जैसे अंधेरे दौर में ले जाने की कोशिश कर रहा है।

गज़ा की त्रासदी: एक भयावह तस्वीर

7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले के बाद शुरू हुए गज़ा युद्ध ने अब तक भयंकर तबाही मचाई है। गज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, जुलाई 2025 तक 54,607 लोग मारे गए और 1,25,341 घायल हुए हैं। 80% से ज़्यादा खेती की ज़मीन बर्बाद हो चुकी है, 83% कुएँ निष्क्रिय हैं, और बच्चों में कुपोषण दोगुना हो गया है। 17 लाख से ज़्यादा लोग विस्थापित हैं, जो UNRWA के शिविरों में रहने को मजबूर हैं।
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13 जुलाई 2025 को नुसेरत शरणार्थी शिविर में पानी लेने गए छह बच्चों समेत आठ लोगों की बमबारी में मौत हो गई। इसराइल ने इसे "गलत निशाना" बताया, लेकिन ऐसी "गलतियाँ" गज़ा को मलबे का ढेर बना रही हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसे "नरसंहार" का सबूत बताया है। फिर भी, इस त्रासदी को रोकने में दुनिया नाकाम रही है।

फ्रांसेस्का अल्बानीज़: सच्चाई की आवाज़ पर प्रतिबंध

फ्रांसेस्का अल्बानीज़ इतालवी कानून विशेषज्ञ हैं जो संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि बतौर 2022 से गज़ा, वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम में मानवाधिकारों की निगरानी कर रही हैं। उन्होंने इसराइल की सैन्य कार्रवाइयों को "आधुनिक इतिहास का सबसे क्रूर नरसंहार" बताया है। उनकी रिपोर्ट्स में इसराइल पर युद्ध और मानवता के खिलाफ अपराध करने का आरोप है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय यानी ICC से इसराइली और अमेरिकी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी जिससे अमेरिका और इसराइल नाराज़ हो गये।
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने X पर लिखा, "अल्बानीज़ का अमेरिका और इसराइल के खिलाफ राजनीतिक और आर्थिक युद्ध अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।"

इसके बाद, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के फरवरी 2025 के कार्यकारी आदेश 14203 के तहत अल्बानीज़ पर प्रतिबंध लगा दिए गए। यह एक असामान्य कदम है, जिसे संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर टर्क ने "खतरनाक मिसाल" बताया। अल्बानीज़ ने कहा कि वह गज़ा में नरसंहार रोकने की लड़ाई जारी रखेंगी।

ICC पर अमेरिका का हमला

युद्ध अपराधों और नरसंहार की जाँच करने वाले ICC  भी अमेरिका के निशाने पर है। नवंबर 2024 में ICC ने इसराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और पूर्व रक्षा मंत्री योआव गैलेंट के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किये थे। इन वारंटों को अमेरिका ने "निराधार" बताया और 6 जून 2025 को चार ICC न्यायाधीशों—सोलोमी बालुंगी बोसा, लुज़ डेल कारमेन इबानेज़ कार्रान्ज़ा, रेन एडलेड सोफी अलापिनी गांसो, और बेटी होहलर—पर प्रतिबंध लगा दिये।
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UN ने बताया नरसंहार

संयुक्त राष्ट्र ने गज़ा में नरसंहार रोकने की कोशिश की है। मार्च 2024 में, सुरक्षा परिषद ने 14 देशों के समर्थन से युद्धविराम का प्रस्ताव पारित किया, लेकिन अमेरिका ने मतदान मे हिस्सा नहीं लिया। लेकिन जून 2025 में, एक स्थायी युद्धविराम का प्रस्ताव अमेरिका के वीटो से रुक गया। नवंबर 2024 में भी अमेरिका ने एक और प्रस्ताव को वीटो किया।

दिसंबर 2023 में, दक्षिण अफ्रीका ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में इसराइल पर नरसंहार का मुकदमा दायर किया। जनवरी 2024 और अप्रैल 2025 में ICJ ने इसराइल को नरसंहार रोकने और मानवीय सहायता सुनिश्चित करने के आदेश दिए। लेकिन इन आदेशों का पालन नहीं हुआ, क्योंकि ICJ के पास इन्हें लागू करने का कोई तंत्र नहीं है, और अमेरिका का समर्थन इसराइल को बचाता है।

नवंबर 2024 में, संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष समिति ने इसराइल की कार्रवाइयों को नरसंहार बताया, जिसमें भूख को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना शामिल था। दिसंबर 2024 में, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी यही बात दोहराई। फिर भी, अमेरिका का सैन्य और कूटनीतिक समर्थन इसराइल को कार्रवाइयाँ जारी रखने की छूट देता है।

वैश्विक विरोध और सवाल

गज़ा में इसराइल की कार्रवाइयों के ख़िलाफ़ दुनियाभर में विरोध हो रहे हैं। अमेरिका में, खासकर विश्वविद्यालयों में, छात्रों ने बड़े प्रदर्शन किए, जिन्हें दबाने की कोशिश को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन बताया गया। यूरोप, मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में भी लोग सड़कों पर उतरे। लेकिन सवाल यह है कि अगर संयुक्त राष्ट्र और ICC जैसी संस्थाएँ नरसंहार नहीं रोक पा रही हैं, तो क्या विश्व व्यवस्था कमज़ोर हो रही है?
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संकट में विश्व व्यवस्था

1920 में बनी लीग ऑफ नेशन्स युद्ध रोकने में नाकाम रही थी, जिसके बाद द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ। 1945 में संयुक्त राष्ट्र बना, जिसमें अमेरिका की बड़ी भूमिका थी। लेकिन आज अमेरिका ही इसकी स्वतंत्रता को चुनौती दे रहा है। संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों और ICC पर प्रतिबंध लगाकर, सुरक्षा परिषद में वीटो का इस्तेमाल करके, और इसराइल को सैन्य समर्थन देकर अमेरिका वैश्विक न्याय को कमज़ोर कर रहा है।

अगर दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र कहलाने वाला देश संयुक्त राष्ट्र और ICJ का सम्मान नहीं करेगा तो इस ग्रह को युद्ध और अराजकता से कौन बचाएगा? अमेरिका की यह नीति मानवता की सभ्यता को पीछे ले जा रही है। गज़ा की त्रासदी सिर्फ एक क्षेत्र की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की नैतिकता और न्याय की परीक्षा है। सवाल सामने है कि क्या हम फिर से "जंगल के कानून" की ओर बढ़ रहे हैं, जहाँ ताकत ही सही-गलत तय करती है?