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अमेरिका-ईरान में जंग हुई तो भारत को होगा कितना बड़ा नुक़सान?

विश्व में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत पश्चिम एशिया ख़ासकर ईरान और इराक़ में युद्ध जैसी हलचल के चलते वैश्विक हितों में टकराव की स्थिति है। पश्चिम एशिया के तेल प्रधान 10 देशों में पूरी दुनिया का 48 प्रतिशत तेल रिज़र्व और 38 प्रतिशत प्राकृतिक गैस भंडार है। ज़ाहिर-सी बात है कि जब भी पश्चिमी एशिया में हितों का टकराव होगा तब-तब वैश्विक भू-राजनीतिक और आर्थिक स्थिति स्वाभाविक रूप से प्रभावित होगी। इससे भारत भी अछूता नहीं रहेगा। इसलिए जैसे ही अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान के शीर्ष जनरल क़ासिम सुलेमानी को मारने का फ़ैसला किया वैसे ही भारत के हाथ-पाँव फूल गए। बता दें कि ईरान भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों में से एक है। भारतीय उपमहाद्वीप और फारस की खाड़ी में मज़बूत वाणिज्यिक, ऊर्जा, सांस्कृतिक और लोगों के बीच संबंध हैं।

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आज़ादी के बाद भारत और ईरान के बीच 15 मार्च 1950 में राजनयिक संबंध स्थापित हुआ। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी और डॉ. मनमोहन सिंह के समय तक ईरान के साथ संबंध गहरे होते रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में भी अच्छे रिश्ते बने हुए हैं। नरेंद्र मोदी 22-23 मई, 2016 में ईरान गए और दोनों देशों के बीच 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। उसके बाद ईरान के राष्ट्रपति डॉ. हसन रूहानी फ़रवरी 2018 में प्रधानमंत्री मोदी के आमंत्रण पर भारत की पहली यात्रा पर हैदराबाद आए। इसमें दोनों देशों के बीच 13 समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। ईरान-भारत के बीच सांस्कृतिक संबंध भी घनिष्ठ हैं। नई दिल्ली में ईरान का अपना दूतावास है। इसके अलावा भारत में ईरान के दो महावाणिज्य दूतावास मुंबई व हैदराबाद में और नई दिल्ली और मुंबई में दो सांस्कृतिक केंद्र हैं।

भारत की तेल आपूर्ति में ईरान 

ईरान भारत को प्रमुख रूप से तेल, उर्वरक और रसायन निर्यात करता है, जबकि भारत से अनाज, चाय, कॉफ़ी, बासमती चावल, मसाले और जैविक रसायन आयात करता है। 2018-19 में ईरान को भारत का निर्यात 3.51 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जबकि आयात 13.52 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। व्यापार असंतुलन मुख्य रूप से ईरान से भारत में तेल का आयात कम होने के कारण है।

भारत अपनी तेल की ज़रूरतों का 80 प्रतिशत से अधिक आयात करता है और प्रतिदिन 4.5 मिलियन बैरल तेल आयात करता है। भारत अपने शीर्ष आपूर्तिकर्ता इराक़ के साथ ही खाड़ी से अपने कच्चे तेल का दो-तिहाई हिस्सा खरीदता है। भारत ने 2018-19 में 207.3 मिलियन टन कच्चे तेल का आयात किया है। केयर (CARE) रेटिंग्स के एक विश्लेषण के अनुसार कच्चे तेल की क़ीमतों में बढ़ोतरी से भारत का वार्षिक तेल आयात बिल 1.6 बिलियन डॉलर से अधिक हो जाएगा।

तेल की क़ीमतों में बढ़ोतरी को आमतौर पर मुद्रास्फ़ीति के मुख्य कारणों में से एक माना जाता है और इससे आर्थिक विकास में गिरावट आती है।

भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के अनुसार, राजकोषीय घाटे के मामले में, कच्चे तेल की क़ीमतों में 10 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी से 12.5 बिलियन डॉलर का अतिरिक्त भार पड़ता है। यदि करों में कोई बदलाव नहीं होता है तो तेल उपभोक्ताओं को अधिक क़ीमत चुकानी पड़ती है।

अब यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि खाड़ी भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए कितना महत्वपूर्ण है। यह एक स्पष्ट कारक है कि नई दिल्ली अपने तेल और गैस की ज़रूरतों का 80 प्रतिशत आयात करता है। साथ ही इस क्षेत्र में क़रीब 8-9 मिलियन भारतीय प्रवासी रहते हैं जो भारत की अर्थव्यवस्था में योगदान भी करते हैं।

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चाबहार बंदरगाह पर असर

संयुक्त राज्य अमेरिका और ईरान के बीच तनाव के बीच संभावित किसी घटना से निपटने के लिए भारतीय नौसेना ने खाड़ी क्षेत्र में अपने युद्धपोत तैनात कर दिए हैं। भारतीय नौसेना ने यह सब भारत की समुद्री व्यापार की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किया। इस बीच, भारत में ईरान के राजदूत अली चेगेनी ने कहा कि वर्तमान स्थिति से चाबहार बंदरगाह का विकास प्रभावित नहीं होगा। उन्होंने यह भी कहा कि ईरान संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ तनाव को कम करने के लिए भारत द्वारा किसी भी शांति पहल का स्वागत करेगा। चेगेनी ने कहा ‘चाबहार पोर्ट भारत, ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, राष्ट्रमंडल के सदस्य, यूरोप, पूरे फारस की खाड़ी के बीच बहुत अच्छी दोस्ती का प्रतीक है। इसका संबंध केवल ईरान और भारत से नहीं है। इस बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है’।

विश्लेषण से ख़ास

दिलचस्प बात यह है कि बीते दिसंबर में संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत को एक लिखित आश्वासन दिया था कि वह चाबहार बंदरगाह को विकसित करने के लिए भारत को उपकरणों की ख़रीद के लिए वैश्विक बैंकों से 85 मिलियन डॉलर का वित्त पोषण करने में सहायता करेगा। नवंबर 2018 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने फारस की खाड़ी के देशों पर लगाए गए प्रतिबंधों से बंदरगाह को छूट प्रदान की थी। बता दें कि ईरान के दक्षिण-पूर्वी तट (फ़ारस की खाड़ी के बाहर) पर चाबहार बंदरगाह अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशिया के लिए क्षेत्रीय समुद्री पारगमन यातायात के विकास के लिए एक बड़ा रणनीतिक महत्व रखता है।

साफ़ है कि ईरान और भारत के बीच एक लम्बे समय से बेहतरीन सम्बन्ध है और इसका प्रमाण है, हाल ही ईरान का आया वह बयान जिसमें उसने कहा है कि 'अमेरिका से तनाव कम करने में भारत की किसी भी शांति की पहल का हम स्वागत करेंगे'। ऐसे में भारत और अमेरिका ख़ासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के पल-पल बदलते समीकरणों के बीच ईरान-भारत के पारस्परिक संबंधों को सहेजने की कोशिश होती रहनी चाहिए।

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बीना पाण्डेय
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