पिछले कुछ वर्षों से स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर 14 अगस्त को सरकारी स्तर पर "विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस" मनाने की शुरुआत की गई है। यानी 15 अगस्त की सुबह बँटने वाले लड्डुओं से पहले एक कसैली शाम गुज़रती है। यह निर्णय 2021 में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लिया गया। सवाल उठता है कि आखिर विभाजन के 74 साल बाद इसकी स्मृति को कैलेंडर में क्यों दर्ज किया गया? क्या इसका मक़सद स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की गैर-मौजूदगी की शर्म को ढँकना है? या फिर यह स्वतंत्रता संग्राम के नेतृत्व का श्रेय लेने वाली कांग्रेस को गुनहगार ठहराना है। सवाल ये भी है कि बीजेपी के वैचारिक स्रोत समझे जाने वाले आरएसएस या सावरकर की विभाजन में क्या भूमिका थी। वे विभाजन की ज़मीन तैयार करने वाले जिन्ना और मुस्लिम लीग के साथ क्यों खड़े थे?