loader

पश्चिम बंगाल चुनाव: धर्म का तड़का, फ़ायदा किसका?

ममता बनर्जी ख़ुद को हिंदू साबित करने के लिए कभी मंदिर की शरण लेती हैं, कभी चुनावी रैली के मंच से चंडी पाठ करती है तो कभी खुद को ब्राह्मण की बेटी बताती हैं। ये सारी क़वायद ममता बनर्जी को अपने हिंदू वोटरों को जोड़े रखने के लिए करनी पड़ रही है। इसकी वजह यह है कि उन पर बीजेपी की तरफ से लगने वाले मुसलिम तुष्टीकरण के आरोपों की वजह से इनके खिसकने का ख़तरा लगातार बना हुआ है।
यूसुफ़ अंसारी

पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, चुनावी सरगर्मियाँ बहुत तेज़ हो चुकी हैं। लेकिन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण पश्चिम बंगाल का चुनाव माना जा रहा है। पश्चिम बंगाल बीजेपी ने ममता बनर्जी की 10 साल पुरानी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया हुआ है, वहीं ममता बनर्जी भी अपनी सरकार बचाकर जीत की हैट्रिक बनाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहीं हैं। 

चुनाव प्रचार में धर्म का तड़का

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में धर्म के तड़के ने चुनावी मुद्दों को बदल कर रख दिया है। आम आदमी से जुड़े मुद्दे हाशिए पर चले गए हैं। धार्मिक पहचान और धार्मिक अस्मिता सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है। धर्म के इस तड़के से किसे फ़ायदा होगा और किसे नुक़सान, सबकी निगाहें इसी पर टिकी हुई हैं।

ख़ास ख़बरें

'जय श्रीराम' 

बीजेपी ने अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत 'जय श्रीराम' के नारे के साथ की थी। इसके मुक़ाबले पहले ममता बनर्जी ने 'जय सिया राम' का नारा दिया और बाद में 'जय  माँ दुर्गा’ का नारा दिया। राज्य के चुनाव में ऐसा लग रहा है कि जैसे 'जय श्री राम' और 'जय माँ दुर्गा' के बीच ज़बरदस्त मुक़ाबला है।

ममता पर दबाव

बीजेपी के 'रामराग' के जवाब में ममता को 'चंडी पाठ' इसलिए करना पड़ा क्योंकि बीजेपी ने उन पर ख़ुद को हिंदू साबित करने का दबाव बना दिया है। ग़ौरतलब है कि बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भी ममता बनर्जी पर मुसलिम तुष्टीकरण का आरोप लगाकर चुनाव लड़ा था। तब भी बीजेपी ने राम मंदिर के साथ हिंदू अस्मिता और दुर्गा पूजा पर पाबंदी का सवाल उठाया था। बीजेपी ममता बनर्जी को लेकर यह प्रचार करती रही है कि वह मुसलमान हो गई हैं और उनका नया नाम मुमताज है। इससे बीजेपी को लोकसभा चुनाव में 18 सीटें मिली थीं।

ममता ख़ुद को हिंदू साबित करने के लिए कभी मंदिर की शरण लेती हैं, कभी चुनावी रैली के मंच से चंडी पाठ करती है तो कभी खुद को ब्राह्मण की बेटी बताती हैं। ये सारी क़वायद हिंदू वोटरों को जोड़े रखने के लिए करनी पड़ रही है।

 इसकी वजह यह है कि उन पर बीजेपी की तरफ से लगने वाले मुसलिम तुष्टीकरण के आरोपों की वजह से इनके खिसकने का ख़तरा लगातार बना हुआ है। निश्चित तौर पर ममता बनर्जी को इस बात का ख़तरा बना हुआ है कि अगर उसके हिंदू वोटर छिटके तो अकेले मुसलिम वोटरों के भरोसे वह अपनी सत्ता को बरकरार नहीं रख पाएंगी। ममता बनर्जी ये भरोसा करके चल रहीं हैं कि जिन मुसलमानों की ख़ातिर वे बदनाम हुईं हैं, वो इस संकट की घड़ी में उन्हें छोड़कर कहीं और नहीं जाएंगे।

मौलाना अब्बास और ओवैसी की चुनौती

यह सच है कि इस चुनाव में ममता बनर्जी को अपने मुसलिम वोट बरक़रार रखने के लिए फुरफुरा शरीफ़ के मौलाना अब्बास और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसिलीमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। हालाँकि पहले असदुद्दीन ओवैसी ने मौलाना अब्बास के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। दोनों के बीच कई दौर की मुलाक़ात के बाद इस पर सहमति भी बनी थी, लेकिन बाद में मौलाना ने वाम दलों का दामन थाम लिया। ऐसे में असदुद्दीन ओवैसी अकेले ही 10 सीटों पर ताल ठोक रहे हैं।

west bengal assembly elections 2021 : west bengal bjp raises hindutva - Satya Hindi

अब्बास-ओवैसी पर आरोप

मौलाना अब्बास की पार्टी का नाम है इंडियन सेक्युलर फ्रंट। इस चुनाव में वह वामपंथी और कांग्रेस के साथ गठबंधन में क़रीब 40 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। 10 सीटों पर असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी चुनाव लड़ रही है। ज़ाहिर है, इन दोनों पार्टियों के उम्मीदवार मुसलिम बहुल इलाकों में ही खड़े होंगे और उन्हें मुसलमानों के वोट ही मिलेंगे।

इन दोनों पार्टियों पर इसलामी कट्टरपंथ को बढ़ावा देने और आगे चलकर देश में इसलामी शरीयत लागू करने के एजेंडे पर चलने का आरोप है। ये आरोप सिर्फ़ बीजेपी की तरफ से नहीं लग रहे हैं, कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने भी अपनी पार्टी के आलाकमान मौलाना अब्बास की पार्टी से गठबंधन  करने पर गंभीर सवाल उठाए हैं। इन्होंने भी वही आरोप लगाए हैं जो बीजेपी लगा रही है। 

west bengal assembly elections 2021 : west bengal bjp raises hindutva - Satya Hindi
अब्बास सिद्दीक़ी, नेता, इंडियन सेक्युलर फ़्रंट

नफ़रत की राजनीति?

बीजेपी की हिंदुत्व की राजनीति और मौलाना अब्बास ओवैसी और असम में बदरुद्दीन अज़मल की राजनीति में बुनियादी फ़र्क़ है। बीजेपी मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंदू समाज के बड़े तबके में नफ़रत भर के एक के बाद एक राज्य में चुनाव जीतने के एजेंडे पर चल रही है। बीजेपी के बड़े नेताओं की तरफ से मुसलमानों को लेकर दिए गए बयानों से देश में सांप्रदायिक माहौल बिगड़ा है।

मौलाना अब्बास, असदउद्दीन ओवैसी और बदरुद्दीन अज़मल मुसलिम हितों की बात करते हैं। संसद और विधानसभाओं में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने की बात करते हैं, उनका शैक्षिक और आर्थिक स्तर सुधारने की बात करते हैं, लेकिन हिंदू समाज के प्रति नफ़रत नहीं फैलाते।

यह हमेशा संविधान के दायरे में रहकर ही मुसलमानों के विकास की बात करते हैं। इस चुनाव में या इससे पहले किसी चुनाव में इन नेताओं ने कभी भी भारत को इसलामी राज्य बनाने की बात नहीं की है।

लेकिन मीडिया में मुसलिम हितों की बात करने वाले इन नेताओं को कट्टरपंथी और संप्रदायिक बताकर विलेन के रूप में पेश करता रहा है। वहीं बीजेपी के नेताओं के सांप्रदायिक और नफ़रत भरे बयानों पर उतना आक्रामक नहीं होता।  मीडिया का यह दोहरा चरित्र देश में लगातार बढ़ते जा रहे सांप्रदायिक वैमनस्य के लिए ज़्यादा ज़िम्मेदार है।

मुसलिम हितों की बात करने वाले हर नेता में मीडिया जिन्ना ढूंढने लगता है। जिन्ना से उसकी तुलना करने लगता है। इससे उनके मुद्दे तो गौण हो जाते हैं और देश की बहुसंख्यक आबादी को एक नया विलेन मिल जाता है।

यह माहौल बहुसंख्यक हिंदू समाज के बड़े तबके को बीजेपी की तरफ ले जाता है। 

चुनाव में धर्म से फ़ायदा किसे?

यूँ तो चुनाव में सभी राजनीतिक पार्टियाँ अपने- अपने हिसाब से धर्म का इस्तेमाल कर रही हैं, लेकिन धर्म के इस तड़के से सबसे ज्यादा फ़ायदा बीजेपी को होता दिख रहा है। पिछले चार दशक के लोकसभा और विधानसभा चुनाव के इतिहास को उठाकर देखें तो धार्मिक मुद्दे उठाकर बीजेपी ने केंद्र की सत्ता के साथ-साथ देश के ज्यादातर राज्यों में सत्ता हासिल कर ली है।

बीजेपी धर्म की राजनीति की चैंपियन मानी जाती है। धार्मिक मुद्दे उठाकर वोट हासिल करने में बीजेपी को महारत हासिल हो चुकी है। बीजेपी नेता जिस योजनाबद्ध तरीके से, जिस आक्रामक अंदाज में धार्मिक मुद्दे उठाते हैं उसकी काट दूसरी पार्टियों के पास नहीं होती।

दूसरी पार्टियों के नेताओं पर ख़ुद को हिंदू साबित करने का दबाव बढ़ जाता है। वो भी बीजेपी के 'कट्टर हिंदुत्व' के जवाब में 'सॉफ्ट हिंदुत्व' की राजनीति करने पर मजबूर हो जाते हैं। मोटे तौर पर तो अभी बीजेपी को ही धार्मिक मुद्दे उठाने का सीधे तौर पर फ़ायदा होता दिख रहा है। यह फायदा कितना होगा यह चुनावी नतीजे बताएँगे।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
यूसुफ़ अंसारी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विश्लेषण से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें