12 दिसंबर को दिल्ली के कालकाजी इलाके में एक ही परिवार के 3 लोगों ने आर्थिक तंगी की वजह से आत्महत्या कर ली। जान देने वालों में अनुराधा कपूर (52) और उनके दो बेटे आशीष कपूर (32) और वैभव कपूर (27) शामिल थे। यह परिवार पिछले कई महीनों से मकान का 25 हजार रुपए मासिक किराया नहीं चुका पा रहा था। मकान मालिक ने उन्हें बेदखल करने के लिए अदालत का रुख किया था। अदालत ने घर ख़ाली करने की मियाद जिस दिन तक के लिए तय की थी, उसी दिन सब ने ख़ुदकुशी कर ली।

देश की राजधानी में हुई यह दर्दनाक घटना सिर्फ़ एक परिवार की कहानी नहीं है। यह भारत के उस मध्यवर्ग की कहानी है जो बीते बीस-पच्चीस साल पहले अचानक समृद्ध होने की ओर बढ़ा था और लेकिन बीते कुछ सालों में उसकी स्थिति ख़राब होती जा रही है। चूँकि मध्यवर्ग के अंदर प्रतिष्ठा को लेकर बहुत चिंता होती है तो अक्सर वो दिखावे का सहारा लेता है, चाहे क़र्ज़ ही लेना पड़े, पर अंदर-अंदर खोखला होता जाता है। कपूर परिवार भी पच्चीस हज़ार रुपये महीने किराये के मकान पर रहता था तो समझ सकते हैं कि कुछ साल पहल इसकी कमाई कितनी रही होगी और क्या वो बेबसी रही होगी कि एक माँ और दो जवान बच्चों ने मर जाना बेहतर समझा।
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वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट में क्या

यह कहानी बताती है कि वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट- 2026 में जो कहा गया है, वह महज़ आँकड़ा नहीं है। एक भयावह सच्चाई है जिससे मुँह चुराना मौत को दावत देना हो सकता है। यह रिपोर्ट वर्ल्ड इनइक्वालिटी लैब जारी करती है, जो पेरिस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से जुड़ी है। इसमें 200 से अधिक वैश्विक विद्वान शामिल हैं। 10 दिसंबर को वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट-2026 जारी की गयी है। 2018 और 2022 के बाद यह तीसरी रिपोर्ट है। इस रिपोर्ट में दुनिया भर में बढ़ती भीषण असमानता को लेकर गहरी चिंता जतायी गयी है।

रिपोर्ट के मुताबिक़ विश्व स्तर पर असमानता "बेहद चरम स्तर" पर बनी हुई है। टॉप 10% के पास 75% धन है और बॉटम 50% के पास केवल 2%। टॉप 0.001% (60,000 से कम लोग) बॉटम 50% के लोगों से तीन गुना अधिक धन रखते हैं। इसमें लिंग असमानता को लेकर कहा गया है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में प्रति घंटा 61% कम कमाती हैं।

वैश्विक स्तर का यह आँकड़ा जिन देशों की वजह से इतना ख़राब है, उनमें एक भारत भी है। वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट- 2026 में भारत की स्थिति के बारे में गहरी चिंता ज़ाहिर की गयी है और इसके लिए नीतियों को ज़िम्मेदार ठहराया गया है। रिपोर्ट कहती है—
  • भारत के सबसे धनी 10% लोगों के पास कुल संपत्ति का 65% हिस्सा है।
  • शीर्ष एक फ़ीसदी लोगों के पास देश की 40% संपत्ति है।
  • नीचे के 50% लोगों के पास संपत्ति का 6.4% है।
  • मध्य आय वर्ग के 40% लोगों के पास 28.6% संपत्ति है।
रिपोर्ट कहती है कि बीते दस सालों में असमानता की स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है। भारत की कुल आय का 58 फ़ीसदी केवल दस फ़ीसदी लोगों की कमाई है। नीचे के पचास फ़ीसदी लोग कुल आय का महज़ पंद्रह फ़ीसदी कमा रहे हैं।
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दुनिया में भारत की स्थिति

यूँ तो भारत सरकार चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दम भरती है लेकिन प्रति व्यक्ति आय को देखते हुए भारत काफ़ी पीछे छूटता दिख रहा है। पीपीपी (Purchasing Power Parity) या क्रय शक्ति क्षमता को देखते हुए ये तस्वीर सामने आती है। प्रति व्यक्ति औसत राष्ट्रीय आय (डॉलर में)-
  • अमेरिका- 69,603
  • जर्मनी- 59,423
  • यूके- 53,028
  • जापान- 45,082
  • चीन- 21,552
  • भारत- 9, 095
आय के हिसाब से भारत बांग्लादेश के बराबर है और नामीबिया जैसे देशों से पीछे है। यानी जीडीपी के लिहाज़ से चौथी या तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के पीछे आबादी की विशालता है। एक अरब चालीस करोड़ लोगों के एक दिन के खाने का खर्च ही कुछ देशों की जीडीपी से ज़्यादा हो सकता है।

किसी देश की तरक़्क़ी और ख़ुशहाली को नापने के लिए उस देश के लोगों की आय और असमानता की स्थिति देखी जानी चाहिए।

बीजेपी के पास रिकॉर्ड पैसा!

बहरहाल, भारत के बारे में चिंताजनक ख़बरों के बीच बीजेपी के पास ख़ुश होने की बड़ी वजह है। बीजेपी के खाते में इतना पैसा आ गया है कि सारे रिकॉर्ड टूट गये हैं। आज तक किसी भी पार्टी के खाते में इतना पैसा नहीं जमा हुआ जितना बीजेपी के खाते में है। एक गरीब देश में इतनी अमीर पार्टी का होना अविश्वसनीय लगता है, लेकिन सच है। और यह कमाई अब संसद की रिकॉर्ड का हिस्सा है।

11 दिसंबर को कांग्रेस सांसद अजय माकन ने राज्यसभा में एक चौंकाने वाला आँकड़ा दिया। उन्होंने कहा कि 2004 से 2024 के बीच बीजेपी और कांग्रेस की आर्थिक क्षमता में भारी असमानता पैदा हो गई है। उनके अनुसार, 2004 में बीजेपी का बैंक बैलेंस 87.96 करोड़ रुपए था, जो अब बढ़कर 10,107.2 करोड़ रुपए हो गया है। वहीं कांग्रेस का बैलेंस 38.48 करोड़ रुपए से केवल 133.97 करोड़ रुपए हुआ। उन्होंने हर चुनावी साल का विवरण देते हुए बताया-
  • 2004: कांग्रेस – 38 करोड़ और बीजेपी – 88 करोड़
  • 2009: कांग्रेस – 221 करोड़ और बीजेपी – 150 करोड़
  • 2014: कांग्रेस – 390 करोड़ और बीजेपी – 295 करोड़
  • 2019: कांग्रेस – 315 करोड़ और बीजेपी – 3,562 करोड़
  • 2024: कांग्रेस – 133 करोड़ और बीजेपी – 10,107 करोड़
यानी सत्ताधारी दल के पास मुख्य विपक्ष दल से क़रीब 76 गुना ज़्यादा पैसा है। यह असमानता किसी भी लोकतंत्र के लिए घातक है। मोदी सरकार पर आरोप है कि यह स्थिति जानबूझकर पैदा की गयी है।

कांग्रेस पर आयकर कार्रवाई

राज्यसभा में बताया गया कि 2024 के चुनाव की घोषणा 16 मार्च को हुई लेकिन एक माह पहले 13 फरवरी को कांग्रेस के खाते सील हो गये। आयोग से पूछने पर जवाब नहीं मिला और आयकर विभाग ने कांग्रेस को 210 करोड़ रुपए का नोटिस दिया। अजय माकन के मुताबिक़ कांग्रेस के बैंक खाते से 133 करोड़ रुपए का आयकर काट लिया गया और फिर 23 मार्च को खाते खोले गये। यानी प्रमुख विपक्षी दल को पंगु बना दिया गया।
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यानी जनता भी गरीब, विपक्षी दल भी गरीब पर सत्ताधारी दल मालामाल। इस बीच देश देश भी क़र्ज़ के दुश्चक्र में फँसता गया। आँकड़े बताते हैं कि-
  • 2014 में केंद्र सरकार का कुल विदेशी क़र्ज़ था 58.6 लाख करोड़ था।
  • 2025 में (मार्च 2025 के अंत में): केंद्र सरकार का कुल कर्ज ₹185.11 लाख करोड़ तक पहुँचा।
  • 2026 में कर्ज़ बढ़कर ₹200.16 लाख करोड़ होने का अनुमान है।
भारत का हर व्यक्ति 1.32 लाख का क़र्ज़दार है।

यानी देश का हर व्यक्ति क़र्ज़दार है, देश क़र्ज़दार है, विपक्षी दलों के पास पैसा नहीं लेकिन सत्ताधारी दल के खाते में दस हज़ार करोड़ से ज़्यादा जमा हैं। उधर, सत्ताधारी दल के वैचारिक स्रोत आरएसएस की आर्थिक तरक़्क़ी भी देखने लायक़ है।

त्याग और सादा जीवन के दावों से जुड़े आरएसएस का अत्याधुनिक मुख्यालय दिल्ली में बनकर इसी बीच तैयार हुआ। चार एकड़ में फैले इस दफ़्तर में तीन 12 मंज़िला इमारतें हैं। लागत आयी है डेढ़ सौ करोड़। उद्घाटन इसी साल फरवरी में हुआ और ताज़ा ख़बर है कि इसकी पार्किंग के लिए सदियों पुराने एक मंदिर को ढहा दिया गया है।

सवाल है कि आरएसएस और बीजेपी की तरक़्क़ी देश के लोगों की तरक़्क़ी के समानुपाति क्यों नहीं है?…दोनों की दिशा अलग क्यों है?