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दिल्ली में सक्रिय होकर क्या एनटीआर की ग़लती दोहरा रहे हैं नायडू?

चंद्रबाबू नायडू पिछले कुछ दिनों से दिल्ली में काफ़ी सक्रिय हैं। नायडू नरेंद्र मोदी विरोधी मोर्चे को मज़बूत करने में लगे हुए हैं। उन्होंने एलान किया हुआ है कि उनका सबसे बड़ा लक्ष्य नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी से हटाना है। नायडू कई बार कह चुके हैं कि कोई भी नेता मोदी से बेहतर प्रधानमंत्री हो सकता है। 
चेन्नई में चंद्रबाबू ने कहा था कि डीएमके नेता स्टालिन, मोदी से बेहतर प्रधानमंत्री हो सकते हैं। इसी तरह से दिल्ली में उन्होंने आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल का नाम लिया था।

‘अपने’ ही नेता छोड़ रहे पार्टी

चंद्रबाबू, मोदी विरोधी नेताओं की हर बैठक और सभा में नज़र आ रहे हैं। लेकिन उनके लिए परेशानी अपने ही राज्य आंध्र प्रदेश से खड़ी हो रही है। नायडू जहाँ केंद्र की राजनीति में व्यस्त हैं, वहीं उनकी पार्टी के बड़े नेता वाईएसआर कांग्रेस की तरफ़ रुख कर रहे हैं। 

जगन का पकड़ रहे हाथ

हाल ही में तेलगु देशम पार्टी (तेदेपा) के लोकसभा सांसद अवंती कृष्णा ने चंद्रबाबू का साथ छोड़ दिया और जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस में शामिल हो गए। कृष्णा से पहले विधानसभा में तेदेपा के सचेतक मल्लिकार्जुन रेड्डी ने भी चंद्रबाबू को ऐन मौक़े पर झटका दे दिया। एक और ताक़तवर विधायक आमंचि कृष्ण मोहन भी तेदेपा छोड़कर जगन की पार्टी में शामिल हो गए।

टीडीपी छोड़ने वाले नेताओं ने चंद्रबाबू की जमकर आलोचना की और बताया कि कई बड़े नेता चंद्रबाबू से नाराज़ हैं और वे भी कुछ दिनों में तेलगु देशम का साथ छोड़कर जगन की पार्टी में शामिल हो जाएँगे।

सूत्रों का कहना है कि तीन और सांसद चंद्रबाबू से नाता तोड़कर जगन की पार्टी में जा सकते हैं। बदलते माहौल को ध्यान में रखते हुए तेदेपा के कुछ बड़े नेताओं ने चंद्रबाबू को दिल्ली की बजाय आंध्र की राजनीति पर ज़्यादा ध्यान देने की हिदायत दी है।

राजनीति के जानकारों का कहना है कि 1989 में जो ग़लती टीडीपी के संस्थापक और आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एन. टी. रामा राव (एनटीआर) ने की थी, वही ग़लती अब चंद्रबाबू भी कर रहे हैं।

एनटीआर को मिली थी क़रारी हार

एनटीआर ने 1989 में राजीव गाँधी के ख़िलाफ़ विपक्ष के नेताओं को एकजुट करने और कांग्रेस के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय मोर्चा बनाने में एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। एनटीआर केंद्र की राजनीति में इतने व्यस्त हो गए थे कि आंध्र की राजनीति पर ज़्यादा ध्यान नहीं दे पाए और इसी वजह से 1989 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की क़रारी हार हुई।

  • कुछ विश्लेषकों का कहना है कि अगर जगन मोहन चाहते तो वह भी दिल्ली में अपना दमख़म दिखा सकते हैं, लेकिन उन्होंने आंध्र में सत्ता में आने के लक्ष्य पर ही ध्यान देने का फ़ैसला किया है। जबकि चंद्रबाबू ख़ुद को राष्ट्रीय नेता के तौर पर पेश करते हुए उस छवि का फ़ायदा राज्य की राजनीति में उठाने की कोशिश में हैं। ऐसी ही कोशिश में एनटीआर ने सत्ता गँवा दी थी।

नायडू-रेड्डी के बीच है सीधी लड़ाई

तेलगु देशम के पुराने नेता चंद्रबाबू को एनटीआर वाला उदाहरण देते हुए आंध्र की राजनीति पर पूरा ध्यान देने की सलाह दे रहे हैं। इन नेताओं का यह भी कहना है कि इस बार जगन के रूप में विरोधी काफ़ी ताक़तवर है और चंद्रबाबू की आंध्र में ग़ैरमौज़ूदगी का वह पूरा फायदा उठा सकते हैं। और तो और, इस बार आंध्र प्रदेश में सत्ता की लड़ाई सीधे चंद्रबाबू नायडू और जगन मोहन रेड्डी के बीच है। 

हाल ही में हुए एक ओपिनियन पोल के नतीजे भी चंद्रबाबू के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं। सर्वे के निष्कर्षों को सही मानें तो चंद्रबाबू की लोकप्रियता कम हो रही है और टीडीपी का जनाधार भी कम हो रहा है।
अब सवाल यही है कि क्या चंद्रबाबू अपनी रणनीति बदलेंगे और सत्ता बचाए रखने की कोशिश पर ज़्यादा ध्यान देंगे। या फिर, मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी से उतारने की कोशिश में कहीं चंद्रबाबू की मुख्यमंत्री की कुर्सी ही न चली जाए।
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अरविंद यादव
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