हैदराबाद में पुलिस के साथ कथित मुठभेड़ में बलात्कार और हत्या के चार अभियुक्तों की मौत के बाद इससे जुड़े सवाल भी उठ रहे हैं। पहला सवाल तो यही है कि यह मुठभेड़ आखिर हुई कैसे? पुलिस की अपनी कहानी है, अपना तर्क है, जिसमें कई छेद हैं, जिन पर यक़ीन करना वाकई मुश्किल है।
इन अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 375 (बलात्कार) और 372 (अपहरण) के आरोप लगाए गए थे। इन मामलों की सुनवाई के लिए फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बनाया गया था।
पुलिस ने इस मुठभेड़ के बारे में जो कुछ बताया, वह दिलचस्प है। उसने जो घटनाक्रम दिया है, वह कुछ इस तरह है।
लेकिन पुलिस की बातों से ही कई सवाल खड़े होते हैं, और उनकी कार्यशैली पर सवाल उठते हैं। रात के अंधेरे में मैका-ए-वारदात पर अभियुक्तों को ले जाना और वारदात के दृश्य की कल्पना करना ही शक पैदा करता है। रात के अंधेरे में उस जगह को पहचानने में दिक्क़त होती और पूरी वारदात को दुहराने जैसा काम करने में दिक्क़त होती।
पुलिस ने अभियुक्तों के इशारों से कैसे समझ लिया कि वे उन पर हमला करने वाले हैं?अभियुक्त पुलिस कस्टडी में थे। अभियुक्तों के पास हथियार नहीं थे तो पुलिस को उनसे क्या ख़तरा था? निहत्थों से पुलिस को क्या ख़तरा था कि उन्होंने आत्मरक्षा में गोलियाँ चलाईं?ज़ाहिर है, पुलिस के पास फ़िलहाल इन सवालों के जवाब नहीं हैं।
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