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एनआरसी का ख़ौफ़: असम में मुसलिम क्यों चाहते हैं बीजेपी की सदस्यता?

जिस असम में एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर लागू हुआ है वहाँ एक अजीब-सी स्थिति दिख रही है। बीजेपी की सदस्यता के लिए मुसलिमों की तादाद में एकाएक ज़बरदस्त बढ़ोतरी हुई है। पिछले तीन महीने में क़रीब चार लाख मुसलिमों ने बीजेपी की प्राथमिक सदस्यता के लिए 'मिस्ड कॉल' किया है। उससे पहले और 2015 के बाद 2 लाख लोगों ने 'मिस्ड कॉल' किया था। मुसलिमों की यह संख्या (कुल मिलाकर छह लाख) राज्य में बीजेपी को आए ऐसे कुल 47 लाख 'मिस्ड कॉल' की 13 फ़ीसदी है।

यह आँकड़ा अजीब स्थिति को इसलिए दिखाता है कि एनआरसी को लागू कराने को तत्पर सबसे ज़्यादा बीजेपी है और माना जा रहा है कि एनआरसी से सबसे ज़्यादा प्रभावित मुसलिम ही हुए हैं। बीजेपी के नेता अक्सर ऐसी बयानबाज़ी करते रहे हैं जिसका संदेश मुसलिमों में यह जाता है कि उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। सितंबर 2018 में राजस्‍थान में बीजेपी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अमित शाह ने कहा था कि घुसपैठियों को चुन-चुन कर निकाल बाहर किया जाएगा। उन्होंने कहा था, 'बीजेपी का संकल्प है कि एक भी बांग्लादेशी घुसपैठिया को भारत में रहने नहीं देंगे, चुन-चुन कर निकाल देंगे।' इसके बाद भी वह इस बात को बार-बार दोहराते रहे हैं।

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इसके साथ ही बीजेपी ने यह भी कहा है कि एनआरसी लागू होने के बावजूद किसी हिन्दू को राज्य के बाहर नहीं जाने दिया जाएगा। यही बात केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी असम में कह चुके हैं। इसके लिए नागरिकता संशोधन क़ानून पास कराया जाएगा। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के ग़ैर-मुसलिमों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक को मंज़ूरी दे दी है। इस संशोधन के पारित होने का एक मतलब यह भी होगा कि एनआरसी से बाहर रह गए हिंदू, सिख, ईसाई, मुसलिम आदि धर्म के लोगों में से मुसलिमों को छोड़कर बाक़ी सभी को नागरिकता संशोधन क़ानून के तहत उन्हें नागरिकता दी जा सकती है।

इतने ऊँचे स्तर पर इस तरह की बात चलेगी तो मुसलिमों में ख़ौफ़ होना लाज़िमी है। तो क्या मुसलिम बीजेपी में इस डर से शामिल होना चाह रहे हैं कि उन्हें कुछ हद तक सुरक्षा मिलेगी? क्या यही वह कारण है जिससे मुसलिमों ने बीजेपी को मिस्ड कॉल देकर सदस्य बनने की इच्छा जताई है?

हालाँकि, 'न्यूज़ 18' की रिपोर्ट में कहा गया है कि असम के मुसलिमों में बीजेपी की सदस्यता के लिए बढ़ते रुझान के कई कारणों में से एक यह भी है कि बीजेपी ने सदस्यता के लिए ‘मिस्ड कॉल’ अभियान चलाया। पहली बार 2015 में और फिर इसी साल जुलाई में। बीजेपी 'मिस्ड कॉल' से सदस्य बनाने का अभियान चलाती है जिसके तहत मिस्ड कॉल मारने वाले से स्थानीय कार्यकर्ता संपर्क करता है और फ़ॉर्म भरवाकर सदस्य बनाया जाता है। हालाँकि, मिस्ड कॉल मारने वाले सभी लोग सदस्य बनने की औपचारिकता पूरी नहीं कर पाते। 

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2015 से पहले नहीं जुड़े थे मुसलिम!

रिपोर्ट के अनुसार, सदस्यता अभियान के बाद यह संख्या 27 लाख से बढ़कर 47 लाख हो गई है। इसमें मुसलिम भी शामिल हैं। 'न्यूज़ 18' के मुताबिक़, असम बीजेपी के उपाध्यक्ष विजय गुप्ता कहते हैं कि 2015 से पहले असम में मुश्किल से ही किसी मुसलिम ने सदस्यता के लिए आवेदन किया था। उनका कहना है कि बीजेपी सदस्यता के लिए 'मिस्ड कॉल' के मामले में भले ही उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में मुसलिमों की संख्या अधिक है, लेकिन असम में ऐसे मुसलिमों का प्रतिशत कहीं ज़्यादा है।

2015 का यही वह वक़्त था जब एनआरसी पर हलचल तेज़ हुई थी। इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने एनआरसी को मुद्दा बनाया था। इसके बाद इसमें तेज़ी ही आती गई। 2019 में तो आख़िरी सूची जारी होने के बाद भी 19 लाख लोग एनआरसी से बाहर रह गए। इसमें बड़ी संख्या में हिंदू भी शामिल हैं।

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मिस्ड कॉल मारने वाले कौन?

बहरहाल, जिन छह लाख मुसलिमों ने ‘मिस्ड कॉल’ दिया है उनकी यह संख्या राज्य की कुल मुसलिम जनसंख्या की 5 फ़ीसदी है। राज्य में कुल मुसलिम आबादी 1.68 करोड़ है। 2011 की जनगणना के अनुसार, मुसलिमों की जनसंख्या असम की कुल जनसंख्या की 34.22 फ़ीसदी है। राज्य की कुल जनसंख्या 3.12 करोड़ है। 'न्यूज़ 18' के मुताबिक़ ज्वाइंट स्टेट हज कमिटी ऑफ़ नॉर्थईस्ट के पूर्व चेयरमैन हमिम कुतुब जावेद अहमद कहते हैं कि बीजेपी के प्रति आकर्षण मुख्य तौर पर बारपेटा, ढुबरी, गोलपारा, और नागाँव में बांग्लादेशी मूल के मुसलमानों में है। वह कहते हैं, 'बीजेपी केंद्र और राज्य में सत्ता में है और इससे उन्हें लगता है कि पार्टी में शामिल होने पर उन्हें सुरक्षा कवच मिल जाएगा। वे लोग पहले ही अपना नाम एनआरसी में जुड़वा चुके हैं और उन्हें इसका शिकार होने का डर नहीं है।' हालाँकि बीजेपी के कार्यकर्ताओं का कहना है कि लोग इसलिए बीजेपी में शामिल होना चाहते हैं कि उनको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'सबका साथ सबका विकास' में विश्वास है।

राज्य में तीन तरह के मुसलिम हैं। एक तो असम के मुसलिम हैं, दूसरे वे जो बंग्लादेशी मूल के हैं और तीसरे वे जो बिहार-उत्तर प्रदेश के हिंदी बोलने वाले मुसलिम। ये सभी पहले असम गण परिषद यानी एजीपी, कांग्रेस और एआईयूडीएफ़ को वोट करते रहे हैं। लेकिन हाल के रुझान दिखाते हैं कि राज्य के मुसलिम बीजेपी से जुड़ने लगे हैं। तो इनकी बीजेपी में दिलचस्पी क्यों बढ़ रही है? क्या यह एनआरसी का डर नहीं है? क्या वे अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं, इसलिए ऐसा कर रहे हैं? और क्या बीजेपी में शामिल होने से उनका एनआरसी का डर ख़त्म हो जाएगा?
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क़मर वहीद नक़वी
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