अयोध्या से मेरा निजी, सांस्कृतिक, धार्मिक और भावनात्मक रिश्ता रहा है। बाप-दादा वहीं के रहने वाले थे, इसलिए अयोध्या मेरे संस्कारों में है। वह मन से उतरती नहीं। अयोध्या मेरे लिए श्रद्धा का वह स्तर है कि मेरी दादी कभी अयोध्या नहीं कहती थीं। उनके मुँह से हरदम ‘अयोध्या जी’ ही निकलता था।