एक पुराने समाजवादी ने सोशल मीडिया के एक पोस्ट में समाजवादियों को ‘कायर मरघिल्ला याचक‘ बताया है। इसी से आहत होकर यह आलेख लिखना पड़ा है। नीतीश कुमार समेत कई समाजवादी जिस बहादुरी से संघ परिवार के खेमे में बैठ कर लोहिया, जेपी और कर्पूरी जी का नाम जप रहे हैं, वह क्या मामूली है? ऐसे कई बहादुर हैं। कोई नरेंद्र मोदी जी की कृपा से किसी अन्य पार्टी में रह कर तो कोई सीधे भाजपा में प्रवेश कर संसद, विधानमंडल या किसी और जगह  देश सेवा का मौका हासिल कर रहा है। बिहार के एक खांटी समाजवादी हुकमदेव नारायण जी भाजपा के टिकट पर सांसद बने थे। लोकसभा में डॉ. लोहिया पर उन्हें बोलते सुना तो जी जुड़ा गया। उन्होंने सिद्ध किया कि मोदी जी, भाजपा और आरएसएस ही लोहिया के असली वारिस हैं और वे ही उनके सपनों को पूरा करेंगे। ये तो एक उदाहरण है। नानाजी देशमुख में गांधी जी और अटलबिहारी वाजपेयी में नेहरू ढूंढने वाले कई समाजवादी भी मिल जाएंगे।  नीतीश जी को ही देख लीजिए। मोदी जी की पार्टी को लोकसभा चुनावों में बहुमत नहीं मिला तो किस बहादुरी से उनके समर्थन में खड़े हो गए। उनकी ऐसी हौसला अफजाई भाजपा के किसी नेता ने भी नहीं की। नीतीश जी ने ठीक चुनाव के पहले इंडिया गठबंधन से बाहर निकलने का जो ऐतिहासिक काम किया है उसने समाजवादियों का माथा ऊंचा कर दिया है।