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आनंद मोहन सिंह

बिहारः आनंद मोहन जेल से बाहर निकले, अगले कदम का इंतजार

बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह आज सुबह जेल से बाहर आ गए। उन्हें बिहार सरकार के जेल नियमों में बदलाव का फायदा मिला है। हालांकि  जेल नियमों में बदलाव को लेकर विवाद जारी है। बीजेपी मुश्किल में है। बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने आनंद मोहन को छोड़ने का समर्थन किया है तो बीजेपी के सुशील मोदी ने विरोध किया है। तमाम दलों में आनंद मोहन सिंह के समर्थक हैं।

एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1994 में एक आईएएस अधिकारी की हत्या के लिए उकसाने के आरोप में 15 साल जेल में बिताने वाले आनंद मोहन सिंह की मौजूदा स्थिति का पता नहीं है। यानी रिहा होने के बाद वो कहां गए। उनके बेटे और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के विधायक चेतन आनंद से फोन पर संपर्क नहीं हो पा रहा है और सहरसा में परिवार के घर पर ताला लगा हुआ है।

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गैंगस्टर से राजनेता बने आनंद मोहन को शुरू में सुबह सात बजे रिहा किया जाना था। लेकिन कथित तौर पर मीडिया से बचने के लिए योजना में अचानक बदलाव किया गया था। वो अपने बेटे की शादी के लिए 15 दिन की पैरोल पर बाहर आए थे। बीच में उन्होंने मीडिया से बात की थी। लेकिन वो कल ही जेल लौट आए थे।

पूर्व सांसद की जेल से रिहाई बिहार में नीतीश कुमार सरकार द्वारा जेल नियमों में बदलाव के बाद हुई है। इससे पहले, ड्यूटी पर लोक सेवक की हत्या के संबंध में दोषी ठहराया गया कोई भी व्यक्ति सजा में छूट का पात्र नहीं था। इस नियम को बिहार सरकार ने बदल दिया। इससे सिंह सहित 27 दोषियों की रिहाई का रास्ता खुला। ऐसे कैदी जिन्होंने 14 साल या उससे अधिक समय तक सलाखों के पीछे बिताए हैं, वे रिहा हो जाएंगे।

बिहार में इस कदम से बड़ा विवाद छिड़ गया है, जिसे विपक्षी भाजपा भड़का रही है। भाजपा के सांसद सुशील कुमार मोदी, जो बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री भी हैं, ने कहा है कि नीतीश कुमार ने सहयोगी आरजेडी के समर्थन से सत्ता में बने रहने के लिए कानून का त्याग किया है।
लोकसभा में आरजेडी का प्रतिनिधित्व करने वाले आनंद मोहन सिंह को एक प्रमुख राजपूत चेहरा माना जाता है। और उनकी रिहाई को 2024 के आम चुनाव में बिहार के सवर्ण वोटों को आकर्षित करने के कदम के तौर पर देखा जा रहा है। यह रिहाई 2024 में बिहार में भाजपा को घेरने के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है। जेडीयू नेता नीतीश कुमार इस समय एक संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए तमाम नेताओं से संपर्क कर रहे हैं।
आनंद मोहन सिंह को 1994 में एक दलित आईएएस अधिकारी, जिला मजिस्ट्रेट जी कृष्णय्या की हत्या के लिए भीड़ को उकसाने का दोषी पाया गया था। सिंह को 2007 में एक निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन पटना हाईकोर्ट ने बाद में इस सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया।
दिवंगत आईएएस अधिकारी की पत्नी ने सिंह की रिहाई पर निराशा जताई है। एनडीटीवी से बात करते हुए, उमा कृष्णैया ने कहा, हम इस कदम से सहमत नहीं हैं। यह एक तरह से अपराधियों को प्रोत्साहित कर रहा है। यह एक संदेश देता है कि आप अपराध कर सकते हैं और जेल जा सकते हैं, लेकिन फिर मुक्त हो जाएं और राजनीति में शामिल हो जाएं। इससे अच्छा तो मृत्युदंड होता है।

देश में नौकरशाहों की शीर्ष संस्था सेंट्रल आईएएस एसोसिएशन ने भी इस कदम की निंदा की है। उसने कहा कि सरकार के इस तरह से कमजोर पड़ने से लोक सेवकों का मनोबल टूटता है, सार्वजनिक व्यवस्था कमजोर होती है और न्याय के प्रशासन का मजाक बनता है। 

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बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने भी बिहार सरकार के इस कदम की आलोचना की है, जिसने सिंह की रिहाई का रास्ता साफ किया। मायावती ने इसे "दलित विरोधी" कदम बताया।

अपने पैरोल ब्रेक के दौरान मीडिया से बात करते हुए, आनंद मोहन सिंह ने अपनी रिहाई पर हंगामे का जवाब दिया था। उन्होंने भाजपा पर निशाना साधते हुए व्यंग्यात्मक लहजे में कहा था, क्या गुजरात में नीतीश कुमार और आरजेडी के दबाव में फैसला लिया गया है। वहां कुछ लोगों को रिहा कर माला पहनाकर उनका अभिनंदन किया गया है। यह पूछे जाने पर कि क्या वह बिलकिस बानो गैंगरेप मामले का जिक्र कर रहे हैं, उन्होंने कहा, 'हां, मैं वही बात कर रहा हूं। बता दें कि गुजरात में बीजेपी सत्ता में है।

उन्होंने कहा था कि जिन 27 लोगों के नाम सजा में छूट के लिए सूची में हैं, उन्होंने जेल में अपना समय पूरा कर लिया है। ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार लोगों को ऐसे ही घूमने दे रही है। सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है।

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क़मर वहीद नक़वी
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