बिहार की सियासत में मुकेश सहनी क्या 'दो नावों की सवारी' कर रहे हैं? क्या वह फिर से दूसरे गठबंधन में जाने की तैयारी में हैं? जानिए उनकी रणनीति, संभावित समीकरण और आगे की दिशा।
आरजेडी और महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव के साथ मछली पार्टी और हेलीकॉप्टर यात्रा से चर्चा में बने रहने वाले विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी क्या एक बार फिर पलटी मारने वाले हैं?
पटना के राजनीतिक गलियारे में गुरुवार को यह चर्चा खूब रही कि मुकेश सहनी की भारतीय जनता पार्टी के एक शीर्ष नेता से बिहार के एक विवादित पत्रकार ने मुलाकात करवाई है। यह दावा भी किया गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी की जाति ‘निषाद’ के लिए आरक्षण की घोषणा करेंगे और इसी बहाने मुकेश सहनी एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी की शरण में जाकर एनडीए में शामिल हो जाएंगे।
इससे एक दिन पहले महागठबंधन की कोऑर्डिनेशन कमिटी की बैठक में मुकेश सहनी शामिल नहीं हुए जिसमें सीट शेयरिंग पर चर्चा की गई थी। ठीक उसी दिन हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के संरक्षक और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी के बेटे और पार्टी के अध्यक्ष संतोष कुमार सुमन ने मुकेश सहनी को एनडीए में आने का ऑफर दिया था। उन्होंने कहा था कि लगता है कि मुकेश सहनी का मन महागठबंधन से भर गया है। सुमन ने यह भी कहा कि मुकेश सहनी के लिए एनडीए बेहतर है और यह उनके समाज को आगे बढ़ा सकता है। उन्होंने यह दावा भी किया कि मुकेश सहनी का समाज भी एनडीए की विचारधारा के साथ है।
इधर, खुद मुकेश सहनी ने कहा कि एनडीए उनकी ताक़त समझ रहा है, इसलिए वीआईपी की ‘नाव’ का सहारा एनडीए के लोग लेना चाह रहे हैं। हालाँकि संतोष सुमन के ऑफर पर उन्होंने कहा कि उनकी ताक़त महागठबंधन के लिए शुभ है लेकिन साथ ही यह भी कहा कि बिहार के निषादों को भी अनुसूचित जाति का आरक्षण का लाभ केंद्र सरकार दिला दे तो सभी निषादों का समर्थन भाजपा को मिल जाएगा। उनका कहना है कि पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में निषाद-मल्लाह अनुसूचित जाति में शामिल हैं।
पिछले दिनों मुकेश सहनी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को अपना राजनीतिक गुरु भी बताया था। हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान मुकेश सहनी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तीखी आलोचना की थी।
चूँकि राजनीति में पिछली बातों को नहीं बल्कि आज की सच्चाई को देखा जाता है, इसलिए मुकेश सहनी के ताजा बयान को उनके अगले कदम के तौर पर देखा गया।
महागठबंधन को फायदा या नुक़सान?
इन परिस्थितियों के बीच बहुत से लोग यह मानकर चल रहे हैं कि मुकेश सहनी जल्द ही तेजस्वी यादव और महागठबंधन का साथ छोड़ेंगे। ऐसे में यह सवाल उठता है कि मुकेश सहनी अपनी पार्टी की नाव की चर्चा तो कर रहे हैं लेकिन वह खुद दो नावों पर सवार होकर कहां पहुंचेंगे। यह सवाल भी है कि पिछले कई वर्षों से महागठबंधन में तेजस्वी के साथ चर्चा में बने रहने के बाद उनका बीजेपी के साथ जाना महागठबंधन के लिए राहत की बात होगी या उसे नुकसान होगा?
बॉलीवुड में स्टेज डिजाइनर के तौर पर अपना करियर बनाने वाले मुकेश सहनी ने बीजेपी के साथ जाने और साथ छोड़ने का एक सिलसिला बना रखा है। उन्होंने 2013 में भारतीय जनता पार्टी के साथ अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की और 2014 के लोकसभा चुनाव और 2015 के विधानसभा चुनाव में उसके लिए खुलकर प्रचार भी किया। कहा जाता है कि जब भारतीय जनता पार्टी में उनकी महत्वाकांक्षा पूरी नहीं हुई तो 2018 में उन्होंने अपनी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) बनाई। इसके लिए उन्होंने निषाद आरक्षण की मांग को बहाना बनाया।
मुकेश ने 2019 में राजद के साथ मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। 2020 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने राजद से अपना गठबंधन तोड़ दिया और बीजेपी से समझौते के तहत 11 उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा। इनमें से चार को जीत मिली हालांकि खुद मुकेश सहनी सिमरी बख्तियारपुर से राजद के यूसुफ सलाउद्दीन से हार गए। मुकेश सहनी को थोड़े समय के लिए विधान परिषद का सदस्य बनाया गया और वह मंत्री भी बने लेकिन उनका विधान परिषद का कार्यकाल खत्म होते ही उन्हें मंत्री पद से बहुत ही असम्मानजनक स्थिति में इस्तीफा देना पड़ा और उनके तीन विधायकों ने भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया। मुकेश की पार्टी के एक विधायक का निधन हो गया था।
मंत्री पद से बेइज्जती के साथ हटाए जाने के बाद मुकेश सहनी ने दोबारा राजद के साथ महागठबंधन का दामन थाम लिया और लोकसभा चुनाव में अपने तीन उम्मीदवार खड़े किए लेकिन उनमें से कोई नहीं जीता। इस तरह दो नावों की सवारी करने वाले मुकेश सहनी के बारे में कहा जा रहा है कि वह एक बार फिर भाजपा के पास जाने वाले हैं। उनको दिए जाने वाले ऑफर की भी चर्चा है लेकिन अभी इसके बारे में बात करने से पहले थोड़ा इंतजार करना बेहतर होगा।
इस तरह मुकेश सहनी का महागठबंधन छोड़ने का इरादा बहुत से राजनीतिक विश्लेषकों को महागठबंधन के लिए बेहतर लगता है। दरअसल, महागठबंधन में शामिल दूसरे दलों को इस बात की शिकायत रही है कि तेजस्वी यादव ने मुकेश सहनी को गैर जरूरी अहमियत दी और बाकी नेताओं को ओझल रखा। पिछले कुछ दिनों से मुकेश सहनी खुद को उपमुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में पेश कर रहे थे और अपनी पार्टी के लिए 60 सीटों की मांग कर रहे थे।
महागठबंधन छोड़ने का बहाना ढूंढ रहे?
तेजस्वी यादव के साथ मछली पार्टी करना अलग बात है लेकिन ऐसी मांग के साथ महागठबंधन में बने रहना मुकेश सहनी के लिए किसी भी तरह मुमकिन नहीं था। कई लोगों को यह लगता है कि मुकेश सहनी ने जानबूझकर ऐसी मांग रखी ताकि उनकी मांग ठुकराई जा सके और उन्हें महागठबंधन छोड़ने का एक बहाना मिल सके। राजनीतिक विश्लेषक इस बात पर हैरत जताते हैं कि मुकेश सहनी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में सहनी या निषाद समुदाय का वोट महागठबंधन में ट्रांसफर करने में नाकाम रहे, फिर भी उन्हें तेजस्वी यादव ने इतनी ज्यादा अहमियत क्यों दी। उनका मानना है कि सहनी समुदाय को भारतीय जनता पार्टी ने अपने साथ कर रखा है और इसमें सेंध लगाने में मुकेश सहनी पूरी तरह नाकाम रहे।
ऐसे में अगर मुकेश सहनी महागठबंधन छोड़कर भारतीय जनता पार्टी के साथ जाते हैं तो यह माहौल बनाने की कोशिश ज़रूर होगी कि महागठबंधन का साथ एक और नेता ने छोड़ दिया ‘जिससे सहनी समुदाय का वोट उसे नहीं मिलेगा।’ लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि मुकेश सहनी की मांगों को पूरा करना महागठबंधन के लिए नामुमकिन था और उनके जाने से सहनी समुदाय के वोट पर अब और फर्क नहीं पड़ेगा। दूसरी तरफ़ महागठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर अब सहजता बन सकती है और मुकेश सहनी के लिए सीट देने पर एनडीए का टेंशन बढ़ सकता है।